कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए ऐलान किया है कि वह पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए सभी पब्लिक रैलियां और रोडशो कैंसिल कर रही है. पार्टी ने ऐसा देश में बढ़ते कोविड-19 के मामलों को देखते हुए किया है. देश में कोविड की दूसरी लहर बेहद तेजी से फैल रही है और इससे अर्थव्यवस्था को 2020 जैसा नुकसान होने का खतरा पैदा हो रहा है.
हालांकि, बंगाल में बेहद कांटे के चुनावों में बीजेपी, टीएमसी और कम्युनिस्ट पार्टी समेत सभी पार्टियां जी-जान से जोर लगा रही हैं, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने रैलियां न करने का ऐलान करके खुद को दूसरों से अलग साबित किया है. पार्टी अब प्रचार के लिए सोशल मीडिया और दरवाजे-दरवाजे जाकर कैंपेनिंग करेगी.
हालांकि, कम्युनिस्ट पार्टी (एम) ने अन्य पार्टियों से भी अनुरोध किया है कि वे भी रैलियां न करें और भीड़ न जुटाएं, लेकिन दूसरी पार्टियों पर इस अपील का असर होना मुश्किल जान पड़ता है. पश्चिम बंगाल में भले ही हालात महाराष्ट्र जैसे खराब नहीं हैं, लेकिन यहां भी संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में रैलियां और रोड शो लोगों में संक्रमण फैलने का एक बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं. कभी भी यहां कोविड-19 का विस्फोट हो सकता है.
डॉक्टर और महामारी विज्ञानी लोगों को लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि वे लापरवाही से बचें, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस सबका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है.
इस वक्त यह बेहद जरूरी है कि इलेक्शन कमीशन (चुनाव आयोग) अपने हाथ में इसकी कमान ले. आदर्श रूप में चुनाव आयोग को सभी पब्लिक मीटिंग्स और भीड़भाड़ पर रोक लगा देनी चाहिए थी.
कम से कम आयोग को मीटिंग्स के लिए सख्त गाइडलाइंस जारी करनी चाहिए थीं और इनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराना चाहिए था. साथ ही अगर कोई इन नियमों को नजरअंदाज करके ऐसे कार्यक्रम करता तो आयोग को इसके आयोजकों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
राजनीतिक पार्टियों के लिए एक एक दुर्लभ मौका है और वे स्वैच्छिक रूप से रैलियों और रोडशो को रोककर एक मिसाल पेश कर सकते हैं. अगर सभी पार्टियां एकसाथ ऐसा तय कर लें तो ये हर किसी के लिए एक समान माहौल पैदा करेगा.
अगर ये पार्टियां ऐसा करती हैं तो देश लंबे वक्त तक इस मौके पर दिखाई गई एकजुटता को याद रखेगा.