कोरोना वायरस की तीसरी लहर का खतरा पूरे देश पर मंडरा रहा है. ऐसे में राज्य सरकारों को युद्ध स्तर पर मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना चाहिए ताकि इस चुनौती का सामना किया जा सके.
देश के पास PPP मॉडल का अच्छा-खासा अनुभव है. इसके तहत सरकारें और निजी कंपनियां मिलकर हॉस्पिटल और दूसरी कैपेसिटी तैयार कर सकती हैं.
PPP मॉडल के जरिए राज्य जमीन मुहैया करा सकते हैं और सभी तरह की दूसरी सहूलियतें मुहैया करा सकते हैं. दूसरी ओर, प्राइवेट सेक्टर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर और स्टाफ मुहैया करा सकता है. इसके जरिए ये इकाइयां चलाई जा सकती हैं.
सरकारें अपनी तरफ ये मांग कर सकती हैं कि PPP मॉडल के तहत बने अस्पतालों में एक निश्चित हिस्सा गरीबों के इलाज के लिए रहेगा.
1990 के दशक में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से ही अलग-अलग सरकारों ने घरेलू और विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की है. इन सभी का अलग-अलग इनवेस्टर्स समुदायों में एक सक्रिय नेटवर्क है. स्वास्थ्य राज्य का विषय है और महामारी के चलते हालात बिगड़ने के साथ ही ये सभी राज्य सरकारों की टॉप प्रायोरिटी में आ गया है.
इस वक्त देश की सभी राज्य सरकारों को अपने सभी चैनल्स को सक्रिय कर देना चाहिए. इन्हें पब्लिक हेल्थ के लिए अपने पूरे संसाधन झोंक देने चाहिए. साथ ही निजी कंपनियों को हॉस्पिटल और दूसरे हेल्थकेयर आधारित सामानों के उत्पादन के लिए लगाना चाहिए.
ये जरूरी नहीं है कि नए हॉस्पिटल बिलकुल नए सिरे से बनाए जाएं. सभी सरकारों के पास ऐसी तमाम बिल्डिंग्स होंगी जो कि ज्यादा इस्तेमाल नहीं आ रही हैं.
इन बिल्डिंग्स को निजी कंपनियों को सौंपा जा सकता है ताकि इनमें अस्पताल और अस्थाई इकाइयां खोली जा सकें.
हर राज्य में बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां होंगी जिनमें बिजली और पानी जैसे इंतजाम होंगे. इनका इस्तेमाल भी कई तरह से किया जा सकता है. मसलन, इनमें हेल्थकेयर में काम आने वाले उत्पाद बनाए जा सकते हैं साथ ही लोगों को ट्रेनिंग भी दी जा सकती है. निजी कंपनियों को इस काम के लिए आमंत्रित करना चाहिए. लेकिन, ऐसा करने के लिए पहले लाल फीताशाही को खत्म करना होगा.