जब आप असाधारण मुश्किल का सामना कर रहे हों तो उस वक्त असाधारण फैसले भी लेने पड़ते हैं. जब जो बाइडन ने डोनाल्ड ट्रंप को शिकस्त देकर राष्ट्रपति पद के लिए जीत हासिल की तो उन्होंने सबसे पहले एक कोविड-19 एडवाइजरी बोर्ड का गठन किया. इसमें शामिल एक्सपर्ट्स में से ज्यादातर लोग सरकारी तंत्र से बाहर के थे.
भारत में हम एक ऐसी ही मुश्किल घड़ी में पहुंच गए हैं, जहां हमें कुछ असाधारण फैसले करने होंगे.
महज 18 दिनों में कोविड के मामले 3 लाख से बढ़कर 9 लाख पर पहुंच गए हैं. पिछले साल वायरस को इस आंकड़े पर पहुंचने में 59 दिन का वक्त लगा था.
इसके बावजूद कि हमारे डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के पास इस वायरस के बारे में पहले से ज्यादा जानकारी मौजूद है, हेल्थकेयर सेक्टर अभी भी भारी संख्या में आ रहे मरीजों को हैंडल करने में नाकाम साबित हो रहा है.
इस साल लोग भी ज्यादा जागरूक हैं और वैक्सीनेशन भी पूरी रफ्तार से जारी है, लेकिन वायरस हमें लगातार एक तगड़ी चुनौती दे रहा है.
शायद अब वह मौका आ गया है जबकि सरकार को पारपंरिक तौर पर फैसले लेने की सोच से बाहर निकलना होगा और देश के बेहतरीन लोगों को इस जंग में शामिल करना होगा. इसमें सरकार को अपनी मशीनरी से बाहर निकलकर निजी सेक्टर के लोगों को साथ लाना होगा.
ऐसा इसलिए जरूरी है कि ये वायरस एक बार फिर से हमारी अर्थव्यवस्था और लोगों की जिंदगियों के सामने बड़ा संकट पैदा कर रहा है.
सरकार को तुरंत एक टास्क फोर्स गठित करने पर विचार करना चाहिए. इसकी अगुवाई खुद पीएम मोदी को करनी चाहिए. इस टास्क फोर्स में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, नंदन नीलेकणि, आर सी भार्गव, सैम पित्रोदा, ई श्रीधरन जैसे बेहतरीन लोगों को शामिल करना चाहिए.
सरकार पहले ही ऊंचे पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए प्रोफेशनल्स को निर्णय लेने वाली पोजिशंस में ला रही है. ऐसे में कोविड से जंग लड़ने के लिए निजी सेक्टर के दिग्गजों को लाने में कोई दिक्कत की बात नहीं होनी चाहिए.