कोविड से भारत में अब तक 3 लाख से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है. राज्य सरकारें ऐसे परिवारों को मदद दे रही हैं. जिन परिवारों ने घर के कमाने वाले व्यक्ति को खोया है उनके लिए सरकारें पेंशन और मुआवजे से लेकर बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने जैसी स्कीमें शुरू कर रही हैं. लेकिन, मदद का रास्ता डेथ सर्टिफिकेट पर ‘कोविड से मौत’ के जाल से होकर गुजरता है.
सवाल ये भी है कि जो लोग कोविड के बाद की जटिलताओं से मर रहे हैं उनके परिवार को कैसे राहत मिलेगी? दरअसल, कोविड-19 निगेटिव टेस्ट के बाद स्वास्थ्य से जुड़ी किसी जटिलता से हुई मौत को कोविड डेथ नहीं माना जाता.
कोविड-19 डेथ सर्टिफिकेट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 मई को हुई एक सुनवाई में केंद्र सरकार से पूछा है कि इस पर कोई यूनिफॉर्म पॉलिसी है या नहीं.
बेंच ने केंद्र से कोविड-19 मरीजों की मौत के डेथ सर्टिफिकेट को लेकर ICMR की गाइडलाइन सौंपने के लिए भी कहा है. कोर्ट का कहना है कि इस तरह के दस्तावेज जारी करने के लिए एक जैसी पॉलिसी होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में जिस जनहित याचिका पर सुनवाई की जा रही है उसमें कहा गया है कि डेथ सर्टिफिकेट पर ये जानकारी नहीं लिखी गई कि मौत कोविड-19 की वजह से ही हुई है. इस कारण परिवारों को मुआवजा पाने में दिक्कतें हो रही हैं.
याचिका में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कोविड-19 संक्रमण की वजह से जान गंवाने वाले लोगों को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मुआवजा मिलना चाहिए.
केंद्र को अपना जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है.
बीमा कंपनियों ने भी क्लेम की प्रक्रिया को आसान बनाया है और कागजी बोझ कम किया है. देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी LIC ने महामारी की स्थिति के मद्देनजर इसी महीने इंश्योरेंस क्लेम के लिए डेथ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को खत्म किया है. क्लेम सेटलमेंट में तेजी के लिए डेथ सर्टिफिकेट के बजाय अस्पताल की ओर से जारी अन्य साक्ष्य कबूले जाएंगे.
कोविड-19 की से भावनात्मक और आर्थिक नुकसान झेल रहे परिवारों को आर्थिक मदद के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर ना काटने पड़े. कोविड के बाद अगर किसी की एक निश्चित अवधि के भीतर मौत होती है तो उसे कोविड से मौत माना जाए और ऐसे परिवारों को सरकारी मुआवजा दिया जाए.
ये वक्त लोगों को झंझटों से बचाने का है, न कि उन्हें उलझाने का.
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