नागरिकता कानून पर कांग्रेस का भ्रम भाजपा को लाभ दे रहा है

Congress- कांग्रेस पार्टी के नेता स्थानीय स्तर पर भयानक बिखराव का शिकार दिखते हैं और शीर्ष नेतृत्व के तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका उस बिखराव को रोकने में निष्प्रभावी दिख रहे हैं.

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चार राज्यों और एक केंद्रशासित राज्य के चुनावों पर टिप्पणी करते राजनीतिक विश्लेषक असम और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के नतीजों को अभी से तय मानते दिखते हैं. तमिलनाडु में हर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन की परंपरा उसकी बड़ी वजह मानी जा रही है, लेकिन असम में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार दोबारा आने का अनुमान ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक लगा रहे हैं और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस का मुद्दों और नेतृत्व के मामले में भ्रम और बिखराव की स्थिति होना है.

कांग्रेस पार्टी के नेता स्थानीय स्तर पर भयानक बिखराव का शिकार दिखते हैं और शीर्ष नेतृत्व के तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका उस बिखराव को रोकने में निष्प्रभावी दिख रहे हैं. सिलकर से सांसद सुष्मिता देव और पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई अलग-अलग भाषा में बोलते दिख रहे हैं. सिलकर सांसद सुष्मिता देव के कांग्रेस छोड़ने की अफ़वाहें लगातार हवा में तैरती रहीं, हालांकि सुष्मिता देव अभी भी कांग्रेस में हैं और कांग्रेस के लिए प्रचार करती हुई राज्य में राजनैतिक सत्ता के बदलाव की बात कर रही हैं, लेकिन अभी सुष्मिता देव ने यह कहकर कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी कि बराक घाटी में लोग नागरिकता क़ानून के पक्ष में हैं और यहां तक कि एक कार्यक्रम में सुष्मिता देव ने “नो सीएए” का गमछा पहनने से इनकार कर दिया.

राहुल गांधी ने कांग्रेस घोषणापत्र का ऐलान करते हुए जिन 5 गारंटी की बात कही है, उसमें एक गारंटी राज्य में सरकार आने के बाद नागरिकता क़ानून को रद्द करना है. हालाँकि, इस मामले में तथ्यपूर्ण बात यही है कि केंद्र सरकार के पारित क़ानून को राज्य सरकार रद्द नहीं कर सकती, लेकिन इस तथ्य को छोड़ भी दें तो नागरिकता क़ानून के मुद्दे पर कांग्रेस के भीतर का यह बिखराव पार्टी का संकट सामने ला देता है.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सुष्मिता देव के बयान के बाद स्पष्ट किया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो नागरिकता क़ानून ख़त्म करेगी. पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे और कांग्रस सांसद गौरव गोगोई ने भारतीय जनता पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में नागरिकता क़ानून लागू करने की घोषणा जोर-शोर से करती है, लेकिन असम में इस मुद्दे पर चुप हो जाती है. यह कहकर गौरव गोगोई ने भाजपा की उस कमजोर कड़ी को उजागर करने की कोशिश की, जिससे भाजपा रणनीतिक तौर पर असहज हो सकती थी, लेकिन गौरव गोगोई ने यह कहकर कि कांग्रेस सीएए पूर्व और सीएम पश्चात वाली पार्टी में बंटी हुई है और ऐसे हम चुनाव नहीं जीत सकते. इसके लिए पूरी कांग्रेस को एकजुट होना होगा.

गौरव गोगोई ने कहाकि नागरिकता क़ानून का एक पहलू राष्ट्रीय है और दूसरा स्थानीय. दरअसल, कांग्रेस का यही भ्रम है, जिसकी वजह से दोधारी तलवार जैसे नागरिकता क़ानून का निर्णय लेने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी को नुक़सान होता नहीं दिख रहा है. नई पीढ़ी के दोनों कांग्रेस नेता- गौरव गोगोई और सुष्मिता देव- राज्य में बदलाव से ज़्यादा कांग्रेस के पीढ़ीगत बदलाव में अपनी भूमिका मज़बूत करने में ज़्यादा रुचि ले रहे हैं. दूसरी तरफ़ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोबारा सर्बानंद सोनोवाल बैठेंगे या फिर हिमंत बिस्वसरमा, इस असहज करने वाले सवाल के बीच भारतीय जनता पार्टी ने बड़े सलीके से जनता को कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल के बीच हुए समझौते पर अंटका दिया है. भाजपा सवाल पूछ रही है कि जिस बदरुद्दीन अजमल के लिए राज्य में सबसे ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता तरण गोगोई कहते थे कि “हू इज बदरुद्दीन”, उसी बदरुद्दीन अजमल का साथ तरुण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई सेक्युरिज्म को बचाने के लिए ज़रूरी बता रहे हैं.

नागरिकता क़ानून पर सबसे पहले और बड़ा विरोध असम में ही शुरू हुआ था और यह माना जा रहा था कि भारतीय जनता पार्टी को इसका भारी नुक़सान चुनावों में उठाना पड़ सकता है, लेकिन चुनाव आते भारतीय जनता पार्टी ने सर्बानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्वसरमा के साथ स्थानीय नेताओं को एकजुट करने में सफलता हासिल कर ली और कांग्रेस के नेतृत्व और नागरिकता क़ानून पर भ्रम में रहने को अपना हथियार बना लिया है. भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ भी मिलता दिख रहा है. भाजपा का मुख्यमंत्री कौन, इस असहज करने वाले सवाल को भारतीय जनता पार्टी का हर छोटा-बड़ा नेता टाल देता है, लेकिन अब जनता के बीच यह संदेश देने में भाजपा कामयाब रही है कि चुनाव के बाद सर्बानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्वसरमा में से कोई एक दिल्ली जाएगा.

कहा जा रहा है कि हिमंत बिस्वसरमा को मोदी कैबिनेट विस्तार में जगह भी मिल सकती है. पहले भी हिमंत बिस्वसरमा ने लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली थी, लेकिन मोदी-शाह हिमंत को राज्य के चुनाव से पहले केंद्र में लाने को ठीक नहीं मान रहे थे. शीर्ष से लेकर राज्य नेतृत्व तक भारतीय जनता पार्टी हर निर्णय को दीर्घकालिक लाभ-हानि के तौर पर तय कर रही है और पीढ़ीगत बदलाव के लिए सहज ज़मीन तैयार कर रही है, दूसरी तरफ़ कांग्रेस मुद्दों पर भ्रम की शिकार दिखती है और इसकी बड़ी वजह शीर्ष से लेकर राज्य नेतृत्व में स्पष्टता का न होना है और असम के चुनाव में कांग्रेस पर यही भारी पड़ता दिख रहा है.

Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.

Published - March 24, 2021, 07:02 IST