Farm Cess सिवाय सरकारों को छोड़ किसी को पसंद नहीं. करदाताओं की नाराजगी होती है तो केंद्र की ओर से लगाए जाने वाले किसी भी नए सेस से राज्यों की परेशानी और भी बढ़ती है, क्योंकि उनके हाथ से कमाई बढ़ने का एक रास्ता तो निकल जाता है.
मामूली फेरबदल के साथ आप इस बयान को आम बजट 2021-22 में घोषित खेती बारी के लिए नए सेस (Agriculture Infrastructure Development Cess or AIDC) के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. फेरबदल ये कि इस बार सेस का लगना बहिखाते में पैसे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने तक की सीमित है, आम आदमी पर कोई बोझ नहीं बढ़ेगा.
आम बजट में करीब डेढ़ दर्जन उत्पादों पर Cess लगाने का प्रस्ताव है. इसी के साथ इनमें से कई पर मौलिक सीमा शुल्क यानी बेसिक कस्टम ड्यूटी (बीसीडी) में कमी की गई. पेट्रोल-डीजल के मामले में तो दो तरह के उत्पाद शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी में कमी कर दी गई. अब यहां पर गणित का खेल हुआ. BCD या फिर उत्पाद शुल्क में जितनी कमी हुई, उसी के बराबर कमोबेश सेस लगा दिया गया. कुछ में तो तो सेस कम ही रहा. मतलब ये कि हमें आपको कुछ ज्यादा खर्ज नहीं करना होगा, सोना-चांदी के मामले में तो फायदा भी हो सकता है.
यह कैसे हुआ?
अब सोना व चांदी को लीजिए. अभी इन पर बीसीडी 12.5 फीसदी है, लेकिन अब ये दर 7.5 फीसदी होगी, यानी पांच फीसदी की कमी. लेकिन ये कमी कम होकर 2.5 फीसद ही रह जाएगी, क्योंकि ढ़ाई फीसदी की दर से Cess लगा दिया गया. फिर भी कुल मिलाकर टैक्स 10 फीसदी ही होगा. मतलब सोना-चांदी पर ढ़ाई फीसद तक टैक्स का बोझ कम होगा. मतलब दाम कम हो सकते हैं.
लेकिन पेट्रोल-डीजल में ऐसा नहीं होगा.
दोनों पर बेसिक एक्साइज ड्यूटी (BED) के अलावा विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क यानी SAED को घटा दिया गया. पेट्रोल पर BED 2.98 रुपए से घटाकर अब 1.40 रुपए और एसएईडी 12 रुपए से घटाकर 11 रुपए कर दी गई. इसी तरह डीजल पर BED 4.83 रुपए से घटाकर 1.80 रुपए और एसएईडी को 9 रुपए से घटाकर 8 रुपए प्रति लीटर कर दिया गया. लेकिन खुश ना होइए। पेट्रोल पर 2.5 रुपये प्रति लीटर की दर से सेस और डीजल पर 4 रुपये प्रति लीटर की दर से सेस लगा दिया गया. मतलब एक लीटर पेट्रोल या डीजल के लिए आपको उतने ही पैसे देने होंगे, जितना आप दे रहे हैं.
शराब की बात कर लीजिए. आयातित शराब पर बेसिक Custom duty की दर 150 फीसदी थी, जिसे घटाकर 50 फीसदी कर दी गई. लेकिन इसकी जगह 100 फीसदी की दर से सेस लगा दिया गया. पाम ऑयल को ले लीजिए, वहां पर बीसीडी अब 15 फीसदी की दर से ही लगाई जाएगी, लेकिन 17.5 फीसदी की दर से सेस भी लगेगा. यानी कुल मिलाकर दाम वहीं का वहीं.
कुछ ऐसी ही कहानी सोयाबीन व सूरजमुखी तेल (20 फीसदी की दर से सेस) सेव (35 फीसदी की दर से सेस), मटर (40 फीसदी की दर से सेस), काबुली चना (30 फीसदी की दर से सेस), मसूर (20 फीसदी की दर से सेस) और कपास (5 फीसदी की दर से सेस) लगेगा.
अब सवाल उठता है जब मिला कुछ नहीं तो ऐसा किया क्यों फिर?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको संविधान के अनुच्छेद 270 व 271 को पढ़ना होगा. इन दो अनुच्छदों के जरिए केंद्र को खास मकसद से सेस व सरचार्ज लगाने का अधिकार मिलता है. लेकिन इसका पैसा राज्यों के साथ बांटना नहीं पड़ता. इसे यूं समझ लीजिए. 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक केंद्र सरकार को विभिन्न तरह के टैक्स जैसे इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स या फिर ड्यूटी जैसे कस्टम ड्यूटी या सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी का 41 फीसदी राज्यों के साथ साझा करना होता है, लेकिन सेस या सरचार्ज के मामले में ऐसी कोई अनावश्यकता नहीं. मतलब अगर केंद्र ने टैक्स या ड्यूटी की जगह सेस या सरचार्ज का प्रावधान किया तो उतना पैसा खास मकसद के लिए उसके पास उपलब्ध होगा.
पैसा नहीं बंटेगा तो राज्यों की नाराजगी तो होगी है. अभी बजट पूर्व तैयारियों के सिलसिले में खास तौर पर दक्षिण के दो राज्य तमिलनाडु और तेलंगाना के वित्त मंत्रियों ने साफ तौर पर कहा कि सेस की जगह टैक्स की दर बढा दे, क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उनके लिए कमाई कम होगी. बहरहाल केंद्र ने AIDC के लिए यह नहीं माना.
अब आप समझे कि केंद्र ने एआईडीसी का प्रावधान क्यों किया. कृषि के लिए बुनियाद सुविधाएं विकसित करने के लिए अतिरिरक्त पैसा चाहिए. इसके लिए सरकारी खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़े और मौजूदा व्यवस्था में ही कोई जुगाड़ हो जाए, यही कदम उठाया गया. मतलब राज्यों की नाराजगी बनी रहेगी. बस ग्राहक नाराज नहीं होंगे. सोना-चांदी खरीदने वाले तो खुश होंगे.
(लेखक आर्थिक पत्रकार हैं)
Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.