मुख्तसर सी जिंदगी के अजब से अफसाने हैं यहां तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचाने हैं.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) के सामने इस Budget में कितनी विकट चुनौती है, यह शेर उसकी एकदम सटीक झलक दिखाता है.
कोरोना से कराहती अर्थव्यवस्था (Indian economy) तरह-तरह के खर्चों की पूरी लिस्ट लेकर सामने खड़ी है. और खर्च भी ज्यादातर ऐसे जो टाले नहीं जा सकते. कोरोना का टीका, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की ज़रूरत, गरीब की जेब में पैसा, मिडिल क्लास को राहत का नुस्खा, बाजार में डिमांड पैदा करने और रोजगार बढ़ाने के लिए उद्योग व्यापार को बढ़ावा, और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च. लिस्ट और भी लंबी है. लेकिन, इतना गिनाने में ही सांस फूलने लगती है.
दूसरी तरफ कमाई का हाल ऐसा कि जोड़ना भी मुश्किल है. इस साल सरकार को जो आमदनी होने की उम्मीद थी उससे करीब सात लाख करोड़ रुपए यानी 26.58 परसेंट कम होने की आशंका है. इसकी सबसे बड़ी वजह तो लॉकडाउन और कमज़ोर कारोबार की वजह से GST में आई गिरावट है. डायरेक्ट टैक्स का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. दिसंबर के अंत तक टैक्स और दूसरे रास्तों से जो कमाई हुई वो तो डराने वाली है. हालांकि, इसके बाद वसूली में तेजी आई है. GST एक महीने में डेढ़ लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड तक भी पहुंचा. फिर भी अनुमान यही है कि साल पूरा होने पर टैक्स की कमाई में करीब पांच लाख करोड़ की कमी रह जाएगी.
उधर, डिसइन्वेस्टमेंट के रास्ते भी जो दो लाख करोड़ रुपए आने थे उसका आधा तो क्या चौथाई भी अभी तक नहीं मिला है. बाज़ार का हाल अच्छा है, इसलिए उम्मीद है मगर सरकार इतनी जल्दी लक्ष्य पूरा कर पाएगी इसमें शक है. पिछले Budget में कुल मिलाकर करीब तीस लाख करोड़ रुपए के खर्च का हिसाब लगाया गया था. कमाई इतनी नहीं थी इसलिए लगभग आठ लाख करोड़ रुपए के घाटे की भरपाई का भी इंतजाम होना था, कर्ज लेकर या दूसरे रास्तों से. और अब कमाई में सात लाख करोड़ की कमी एकदम कोढ़ में खाज जैसी हालत बना देगी.
इसके बावजूद सरकार हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकती. इतिहास की सबसे बड़ी मुसीबत से निकलने का रास्ता तो बनाना ही होगा. और यह चुनौती वित्तमंत्री ने स्वीकार की है. उन्होंने CII की बैठक में यही कहा कि ऐसा Budget बनाया जा सकता है जो उस चुनौती का सामना करे जैसी चुनौती सौ साल में किसी के सामने नहीं आई थी. यह बात हौसला दिखाती है. और इस वक्त देश को अगर कुछ चाहिए, अर्थव्यवस्था को कुछ चाहिए तो उसकी लिस्ट में हौसला ही पहले नंबर पर है.
इंडस्ट्री को हौसला चाहिए कि वो नया पैसा लगाकर कारोबार बढ़ाए. इसके लिए ज़रूरी है कि खरीदार को हौसला हो कि उसकी नौकरी बनी रहेगी, कमाई न सिर्फ बची रहेगी बल्कि उसके बढ़ने के रास्ते खुलेंगे. रोजगार में लगे या रोजगार तलाश रहे लोगों को हौसला चाहिए कि नौकरी का हाल बेहतर होगा या फिर बिना नौकरी के भी कमाई करना आसान हो जाएगा. फ्री लांसिंग, जॉब वर्क, कॉन्ट्रैक्ट पर काम करनेवालों या नए दौर में मनमर्जी का काम करनेवाले लोगों का हौसला भी बढ़ गया तो सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा. बैंकों से कर्ज भी उठेगा और घरों से लेकर कारों और दूसरी चीजों की बिक्री भी बढ़ेगी. यानी इकोनॉमी रफ्तार पकड़ेगी.
लेकिन यह हौसला सिर्फ जुबानी जमाखर्च से नहीं आने वाला है. इसके लिए सरकार को जी कड़ा करके अपने खजाने के दरवाजे खोलने होंगे और बड़े पैमाने पर ऐसा खर्च करना पड़ेगा जिससे लोगों के दिलो दिमाग पर छाए डर और आशंका को मिटाया जा सके.
उम्मीद करनी चाहिए कि वित्तमंत्री का भाषण खत्म होने तक सुननेवालों में नए उत्साह की लहर दौड़ने लगेगी. हालांकि बहुत से विद्वान यह सलाह दे रहे हैं कि इस Budget से बहुत उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. लेकिन इस हालत में अगर Budget उम्मीदों पर पूरी तरह पानी न फेर दे तब भी उसे उम्मीदों का बजट ही माना जाएगा.
लेखक CNBC-आवाज़ के पूर्व संपादक हैं और अपना यू ट्यूब चैनल 1ALOKJOSHI चलाते हैं. Twitter @1ALOKJOSHI
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