Budget 2021- तेल पर तो अच्छे-अच्छे फिसल जाते हैं फिर हमारे-आपके बजट की क्या बिसात. दिक्कत तो और भी बढ़ जाती है जब तेल का मामला पेट्रोल और डीजल से कहीं ज्यादा बड़ा हो जाए. अब आप कहेंगे कि और कौन से तेल हैं. बस अपने रसोई घर पर नजर डालिए, कई और तेल दिखेंगे. मसलन, सरसों का तेल, बदाम का तेल, सूरजमुखी का तेल, वनस्पति, ताड़ का तेल (पाम ऑयल). ऐसा लग रहा है कि ये सभी तेल भी कीमत के मामले में पेट्रोल-डीजल के साथ दौड़ रहे है.
कभी आपने सोचा कि आपके महीने का किरयाने का बिल कितना बढ़ा? कोविड काल में तो यह खल ही रहा होगा, खास तौर पर निजी क्षेत्र में काम करने वालों के लिए जिनमें से जिनकी नौकरी बची हुई है उनमें से ज्यादात्तर की तनख्वाह में कटौती हुई और कइयों की तो नौकरी भी चली गयी. अब जब कभी आपको प्याज रुलाए और आलू परेशान करे, ऐसे में खाने के तेल का दाम बढ़ना जायका बिगड़ने से कम नहीं था.
बात आगे बढ़ाए, उसके पहले एक नजर डब्बाबंद (टिन, शीशे या प्लास्टिक का बोतल, पाउच या ट्रेटा पैक में बेचा जाने वाला) तेल के दाम पर.
22 जनवरी, 2020 को सरसों तेल देश के अलग-अलग शहरों में 85 रुपये से लेकर 164 रुपये प्रति किलो (करनूल) के बीच पर बिक रहा था. इस दिन बादाम तेल का भाव 75-190 रुपये/किलो, वनस्पति 62-131 रुपये/किलो, सोया तेल 75-131 रुपये/किलो, सूरजमुखी तेल 83-170 रुपये/किलो और ताड़ के तेल का भाव 44-120 रुपये/किलो पर था.
22 जुलाई, 2020 को सरसो तेल 90-170 रुपये/किलो पर पहुंचा तो बादाम तेल 85-200 रुपये/किलो, वनस्पति 60-164 रुपये/किलो, सोया तेल 77-142 रुपये/किलो, सूरजमुखी तेल 85-170 रुपये/किलो और ताड़ के तेल की कीमत 65-148 रुपये पर पहुंची.
अब 22 जनवरी, 2021 को भाव का हाल देखिए. सरसो तेल 110 रुपये से लेकर 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा, वहीं बादाम तेल तो 109 रुपये से 208 रुपये के बीच, वनस्पति 49 से 168 रुपये, सोया तेल 88 से 160 रुपये, सूरजमुखी 109 से 182 रुपये, और ताड़ के तेल के भाव 76 से 145 रुपये पर पहुंचे. सीधे-सीधे कहिए तो पैक्ड खाने का तेल 22 जनवरी, 2020 से 22 जनवरी 2021 के बीच डब्बाबंद सरसो का तेल करीबू 22 फीसदी, बादाम का तेल करीब साढ़े नौ फीसदी, वनरस्पति 28 फीसदी से ज्यादा, सोया तेल 22 फीसदी से ज्यादा, सूरजमुखी तेल 7 फीसदी से ज्यादा और ताड़ का तेल करीब 21 फीसदी चढ़ा. लूज बिकने वाले तेल के भाव भी चढ़े, लेकिन इतना ज्यादा नहीं.
कीमत क्यों बढ़ी? तीन वजह रही. पहली बात, सरसो के तेल की मांग बढ़ी. मांग इसलिए भी बढ़ी क्योंकि इसमें कोविद के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का एक हथियार माना गया. दूसरी बात देशबंदी के दौरान और देशबंदी के बाद भी घर का ही खाना ज्यादात्तर खाने का चलन बढ़ा. घर पर खाना बनाने के लिए और खास तौर पर पूर्व व उत्तर भारत में सरसो तेल की ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हुआ. और तीसरी बात, तेल की पेड़ाई के लिए पर्याप्त मात्रा में सरसो उपल्बध नहीं था. बाजार से जुड़े लोग कहते हैं कि खाने के सभी तेल में एक तरह का चलन होता है, तेजी तो तेजी, मंदी तो मंदी. हां एक ज्यादा बढ़ेगा, दूसरा कम बढ़ सकता है.
घर का ज्यादातर सामान हुआ महंगा गौर करने की बात ये है कि बीते एक साल के दौरान और खास तौर पर कोविद काल में घर का ज्यादात्तर सामान महंगा ही हुआ है. यहां तक कि जो लोग सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलिंडर का इस्तेमाल करते हैं, उनके लिए सब्सिडी करीब-करीब खत्म ही हो गयी है. अब सोचिए कि अगर खाने के तेल पर अगर 30 फीसदी तक का खर्च बढ जाए, फल-सब्जियों का दाम आसमान छूने लगे, प्रोटिन युक्त खाद्य सामग्री जैसे दाल-अंडा-मछली-मांस वगैरह में उबाल आ जाए तो आपका ही नहीं आपके जेब का का भी जायका बिगड़ेगा.
फिलहाल, एक राहत भरी खबर ये है कि सरसों की नयी फसल बस बाजार पहुंचने वाली है, वहीं मलयेशिया से कूटनीतिक संबंधों में तल्खी की वजह से ताड़ के तेल के आयात में कमी आयी है. इन सब के चलते आने वाले महीनों में खाने के तेल के भाव में नरमी के संकेत हैं. लेकिन पेट्रोल-डीजल के मामले में ऐसी कोई राहत नहीं दिखती. रसोई गैस के मामले में भी.
मतलब, तेल के एक समूह से बच भी जाएं तो पेट्रोल-डीजल के जोड़े पर फिसलने की आशंका तो बनी ही रहती है.
ख्याल रखिएगा अपना और अपने घर के बजट का.
(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हैं.)
Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.
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