बजट 2020-21 (Budget 2021) की सबसे अच्छी बात ये रही कि इसमें निवेशकों के लिए किसी तरफ की नकारात्मकता नहीं, जो पहले से ही काफी परेशान थे. इसका एक साधारण कारण है. नॉर्थ ब्लॉक से वित्त मंत्री का साफ निर्देश था कि जनता को किसी प्रकार का कोई झटका नहीं देना है. ताकि कोरोना के बाद जो अर्थव्यवस्था में रिकवरी हो रही है, उस पर कोई असर न पड़े.
यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, अनगित मौकों पर विचार करते हुए वित्त मंत्री ने इस तस्वीर को बजट (Budget) स्पष्ट कर दिया. ये तेजी से सामान्य की तरफ बढ़ रही हमारी अर्थव्यवस्था के उस मोड पर हुआ है, जब कोई भी नकारात्मक फैसला पटरी पर वापस लौटती अर्थव्यस्था के सपने को चकनाचूर कर देता.
इस बजट (Budget 2021) में पॉलिसी के स्तर पर एक और बड़ा फैसला लिया गया कि डायरेक्ट टैक्स में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया ताकि सकारात्मक भावनाओं पर असर न पड़े.
इस बजट (Budget 2021) में अमीरों पर टैक्स लगाने या राजस्व के लिए इक्विटी बाजार को निचोड़ने की आशंका भी दूर हो गई. अतिरिक्त टैक्स का बोझ न डालने से आने वाले महीनों में खपत को बनाए रखने में मदद करेगा. बेशक, 2.5 लाख रुपए से अधिक सालाना कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) अंशदान पर मिलने वाली ब्याज के प्रस्ताव का अगले साल से ज्यादा आय वालों के रिटर्न पर प्रभाव पड़ेगा.
संसद में फाइनेंस बिल, 2021-22 (Finance Bill) के विचार के दौरान इस प्रस्ताव के लिए एक मोड़ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. टैक्स एक्सपर्ट का तर्क है कि इस आदेश में अस्पष्टता है कि क्या यह कदम अपने महत्वाकांक्षी पब्लिक प्रॉविडेंट फंड योगदान डूब जाएगा?
केंद्र सरकार की सालाना अकाउंटिंग एक्सरसाइज के अर्थशास्त्र की बारीकियों से परे, भारत की विस्तृत अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ सामान्य बड़े सवाल हैं.
अभी तक क्यों अर्थव्यवस्था पूरी सामान्य स्थिति तक नहीं पहुंच पाई है? इसका उत्तर है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी अलग-अलग स्टेक होल्डरों के लिए अलग-अलग चीज़ें हैं. उनके लिए जिनकी नौकरी चली गई है, नौकरी दोबारा मिलना रिकवरी है. जिनके पास नौकरी है, उनके लिए रिकवरी का मतलब उनकी कटी हुई सैलरी का दोबारा मिल जाना है.
छोटे उत्पादकों के लिए (देश का बड़ा हिस्सा) के लिए रिकवरी के मायने लगातार डिमांड से है, जिसे उसे बढ़ती कीमतों के बीच मुनाफा हो. कुछ खास क्षेत्र जैसे अस्पताल, एंटरटेनमेंट, ट्रेवल, फूड एंड बेवरेज के लिए रिकवरी के मायने अलग हैं.
साफ-तौर पर इस पर कोई दो राय नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था को बड़े जोर की जरूरत है. बेहतर रिकवरी के साथ सतत ग्रोथ के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को खर्च बढ़ाना होगा.
यूनियन बजट (Budget 2021) में सकारात्मक पहलू है. सरकार की कमाई और खर्च के बीच की खाई यानि फिस्कल डेफेसिट को पूरी पारदर्शिता के साथ पाटने की जरूरत है. इसके लिए कठिन राजनीतिक इच्छाशक्ति का स्वागत होना चाहिए. यह आत्म-विश्वास और दृढ़ विश्वास का वसीयतनामा है जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति साफ दिखाई देती है. यह याद रखने लायक है कि, एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकारों ने, केंद्र की राजकोषीय स्थिति का वास्तविकता बताने का प्रयास किया था.
साथ ही इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि वित्त मंत्री का पेश किया बजट 2020 (Budget) भी आत्मनिर्भर भारत पैकेज (Aatmanirbhar Bharat) की सीरीज का एक हिस्सा है. वास्तव में, बजट ने कुछ वित्तीय प्रोत्साहन भी दिए हैं, 2026 तक घाटे का विस्तार किया है. भारत की विशाल आबादी के लिए महत्वपूर्ण वैक्सीन प्रोग्राम के लिए पैसा आवंटित किया है. साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकार की भागीदारी को कम करके एक बड़े सुधार का वादा किया है.
ऐसे कई और सकारात्मक उपाय देश में कॉरपोरेट रिकवरी और वृद्धि की संभावनाओं को बढ़ाएंगे. नौकरियों पर सबसे अधिक दबाव वाले सवाल के लिए, लोकसभा में पीएम मोदी ने वेल्थ क्रिएटर्स ने और निजी क्षेत्र के उद्यमों के महत्व का मजबूत, भरपूर समर्थन देने का संकेत दिया है. इससे 2021 और उसके बाद एक धीमी और स्थिर रिकवरी की शुरुआत होगी.
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