Budget 2021: वैसे तो कुछ लोगों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की एक टिप्पणी के आधार पर इस बार “अभूतपूर्व बजट” की आशा लगा ली है, पर वस्तुतः यह बजट अभूतपूर्व परिस्थितियों में प्रस्तुत किया जा रहा है. सीआईआई पार्टनरशिप समिट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने कहा था, “मुझे आप अपने सुझाव दें ताकि हम बजट पेश कर सकें, जो ऐसा बजट है जो एक तरह से अभूतपूर्व है.” इस बात को अधिकांश मीडिया ने इस रूप में प्रस्तुत किया कि वित्त मंत्री ने एक अभूतपूर्व बजट (Budget 2021) प्रस्तुत करने का वादा किया है.
लेकिन वित्त मंत्री ने ऊपर के वाक्य के ठीक बाद क्या कहा, इस पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया. उन्होंने आगे कहा था, “भारत ने बीते 100 वर्षों में कभी इस तरह की महामारी के बाद बजट पेश होते नहीं देखा है.” स्पष्ट है कि वित्त मंत्री ने अभूतपूर्व स्थितियों में लाये जा रहे बजट की बात की थी, न कि अभूतपूर्व बजट (Budget 2021) लाने की घोषणा की थी. पर मजेदार बात यह है कि वित्त मंत्री उनके बयान को गलत समझे जाने का स्पष्टीकरण भी नहीं दे सकतीं, क्योंकि फिर उस स्पष्टीकरण के ही दसियों मतलब निकाले जाने लगेंगे!
इस बार का बजट (Budget 2021) पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है अर्थव्यवस्था की विकास दर को वापस तेज करने की. इसके लिए जरूरी है मांग को तेज करना. इसीलिए उद्योग संगठन फिक्की ने अपने बजट-पूर्व सुझाव देते हुए कहा है कि ‘हमें वृद्धि को तेज करने एवं मांग को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ नये तरह के उपाय करने होंगे.’
विकास दर तेज करने के लिए फिक्की के मुख्य सुझावों में शहरी गरीबों के लिए मनरेगा जैसी एक नयी योजना, आवासीय ऋणों (Housing Loan) पर 3-4 साल के लिए 3-4% ब्याज छूट (Subvention), कर्मचारियों का EPF योगदान स्वैच्छिक बनाना और बुनियादी ढांचा निवेश की गति को तेज करना शामिल हैं. फिक्की ने कहा है कि नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) की पांच साल की योजना के तहत आने वाली परियोजनाओं का 40-50% हिस्सा अगले दो साल में पूरा किया जाये.
उद्योग संगठनों को पता है कि महामारी के कारण देश में आयी मंदी से सरकार का राजस्व संग्रह भी बेहद दबाव में है, इसलिए उनकी माँगों की सूची में इस बार कर रियायतों की बातें कम या नहीं ही हैं. इसके बदले उन्होंने सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिए सुझाव दिये हैं. वहीं सरकार को भी यह अहसास होगा कि मंदी और महामारी के बीच करों की दरें बढ़ा कर राजस्व बढ़ाने का प्रयास करने के विपरीत परिणाम मिल सकते हैं. सबसे पहले तो बाजार और अर्थ-जगत के फिर से जगते उत्साह को ही बड़ी चोट लग जायेगी. काफी चर्चा कोविड सेस लगने की है, और खजाने की हालत देखते हुए शायद सरकार ऐसा कर भी दे. लेकिन अगर यह सेस लगता है तो उसके हटने की समय-सीमा भी स्पष्ट होनी चाहिए. स्पष्ट समय-सीमा के बिना सेस लगाना बाजार धारणाओं को चोट पहुंचाने वाला कदम हो सकता है.
आम मध्यम वर्ग के लिहाज से आय कर के संबंध में कोई विशेष उपहार मिलने की आशा करना इस समय निरर्थक होगा. पिछले बजट में ही केंद्र सरकार ने दो अलग तरह की आय कर व्यवस्थाएँ लागू की हैं, एक बिना किसी छूट के कम आय कर दरों वाली और दूसरी व्यवस्था रियायतों के साथ अधिक आय कर वाली. इस व्यवस्था में थोड़ी-बहुत छेड़-छाड़ हो सकती है, पर कोई बदलाव अभी संभावित नहीं लग रहा है.
(लेखक- आर्थिक पत्रकार हैं. हिंदी की कारोबारी पत्रिका ‘निवेश मंथन और आर्थिक समाचार पोर्टल शेयर मंथन के संपादक हैं.)
Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.