भारत में इन दिनों आम लोग हर दिन पेट्रोल और डीजल की कीमतें चेक करते हैं. यह कुछ वैसा ही है जैसे लोग स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव देखते हैं.
लेकिन, आम लोगों की इसमें कोई गलती नहीं है. इस साल दूसरी दफा देश के कुछ हिस्सों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये लीटर को पार कर गए हैं. दूसरी तरफ डीजल 90 रुपये प्रति लीटर पर बिक कर रहा है. महंगे तेल का असर ऐसे लोगों पर भी पड़ रहा है जिनके पास गाड़ियां नहीं हैं.
डीजल का इस्तेमाल माल ढुलाई करने वाली गाड़ियों में होता है. ऐसे में लगातार कीमतों में बढ़ोतरी से ढुलाई की लागत बढ़ती है और इससे जरूरी चीजों के दाम ऊपर जाते हैं. अगर पेट्रोल और डीजल महंगे होते हैं तो इसका अप्रत्यक्ष रूप से असर समाज के हर तबके पर पड़ता है.
ऐसे में अब तेल को GST के दायरे में लाने की बेहद सख्त जरूरत है. GST को टैक्स स्ट्रक्चर में सुधार और पूरे देश में एकसमान टैक्स के मकसद से लाया गया था.
दुनिया भर में ईंधन पर भारत में सबसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता है. पेट्रोल की रिटेल कीमत का करीब 60 फीसदी और डीजल का करीब 55 फीसदी हिस्सा टैक्स के रूप में केंद्र और राज्य सरकारें वसूलती हैं.
हैरानी की बात ये है कि हर सरकार और पार्टी इसे GST में लाने की बात करती है, लेकिन कोई भी इस मसले को GST काउंसिल की बैठक में नहीं उठाता है.
ये तर्क दिया जाता है कि अगर तेल को GST के दायरे में लाया गया तो राज्यों को करीब 2 लाख करोड़ रुपये सालाना का नुकसान होगा. लेकिन, खजाने को भरने का क्या ये एक सही तरीका है? सरकारों को ग्रोथ में तेजी लानी चाहिए और इस तरह से रेवेन्यू बढ़ाना चाहिए.
आम लोगों की जेब से पैसा निकालकर खजाना भरना किसी लिहाज से उचित नहीं माना जा सकता है.