ब्रिगेड मैदान पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अच्छी रैली करके पश्चिम बंगाल में राजनीतिक सफलता के सबसे बड़े पैमाने पर अपनी साख कायम करके पश्चिम बंगाल के लोगों और राजनीतिक विश्लेषकों को यह भरोसा दे दिया है कि पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी भी ठीक उसी तरह से तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटाकर आ सकती है, जैसे 2011 में तृणमूल कांग्रेस (TMC), वामपंथी शासन को खत्म करके सत्ता में आई थी, लेकिन ब्रिगेड मैदान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सत्ता में आने के साथ बंगाल के लोगों की आँखों में चमक की एक बड़ी उम्मीद जगाने की कोशिश की है. और, वह उम्मीद है कि बंगाल के पुराने आर्थिक वैभव के साथ बंगालियों की समृद्धि की पहचान कायम करना.
करीब साढ़े तीन दशक के वामपंथी शासन और उससे पहले कांग्रेस के शासन के समय से ही पश्चिम बंगाल औद्योगिक क्षमता के बूते बंगालियों की समृद्धि की अपनी पहचान खोने लगा था और कमाल की बात यह रही कि तृणमूल कांग्रेस ने तो क़तई इस दिशा में सोचा ही नहीं कि बंगाल में औद्योगिक समृद्धि फिर से लाई जा सकती है और इसने सबसे ज़्यादा नुक़सान पश्चिम बंगाल के उन लोगों का किया जो, क़तार में सबसे पीछे खड़े थे.
2007 से शुरू हुए किसानों की जमीन बचाने के आंदोलन के आधार पर जिस नंदीग्राम में उद्योगों को भगाने की बुनियाद डाली गयी और उसी पर 2011 में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सरकार आई, उसने तय कर दिया था कि वामपंथी शासनकाल में उद्योगों को रिझाने की थोड़ी बहुत कोशिश आखिरी समय में हुई भी, उसे भी तृणमूल के आने के बाद पूरी तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा. वामपंथी शासन की शुरुआत के साथ ही 1977 से वामपंथी शासन के अंत तक पंचायती राज की प्राथमिकता के नाम पर शुरुआती दौर में भूमि सुधार से कतार में पीछे खड़े कुछ लोगों को भले लाभ हुआ हो, लेकिन आगे चलकर पंचायती राज के सशक्तिकरण के नाम पर सबकुछ पार्टी को सशक्त करके सिंडिकेट का राज मजबूत करने के लिए ही वामपंथी पार्टियों ने किया और जब 2011 में तृणमूल सत्ता में आई तो एक बार लगा कि अब उद्योगों को लाने में कामयाबी मिल सकेगी और पश्चिम बंगाल की पुरानी समृद्धि वापस लौटी तो एक बार फिर से देश भर के लोगों के लिए पश्चिम बंगाल रोजगार के बड़े मौके देने वाली जगह बनेगा और पश्चिम बंगाल फिर से महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे तेजी से औद्योगिक विकास करने वाले राज्यों के साथ खड़ा होगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
बावजूद इसके कि ममता बनर्जी उद्योग संगठन FICCI के सेक्रेटरी जनरल रहे अमित मित्रा को अपना वित्त मंत्री बनाकर ले गयीं. उद्योग संगठन से आकर वित्त मंत्री बनने के बावजूद अमित मित्रा उद्योगों में भरोसा पैदा नहीं कर सके. पंचायती राज, भूमि सुधार के नाम पर वामपंथियों ने उद्योगों के प्रति गहरी अविश्वास की खाई पैदा कर दी थी और नंदीग्राम ने तृणमूल शासन की शुरुआत से ही पश्चिम बंगाल से दूर रहने का अनकहा आदेश दे दिया था. पश्चिम बंगाल छोड़ते देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति रतन टाटा की डबडबाई आँखें तृणमूल कांग्रेस (TMC) की उद्योग विरोधी छवि का प्रतीक बन गईं.
नंदीग्राम में ममता बनर्जी और उनके विश्वस्त सिपहसालार रहे शुभेंदु के बीच सीधा मुकाबला होने जा रहा है. शुभेंदु ने उद्योग विरोधी आंदोलन के लिए अफसोस भी जताया है. तृणमूल से भाजपा (BJP) में जाने की जरूरी शर्त के तौर पर इसे देखा जा सकता है. उद्योगों के साथ आने वाला रोजगार और समृद्धि भी इसी शर्त से जुड़ी हुई है. और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिगेड मैदान की रैली पर खेला खत्म विकास शुरू का एलान करते हुए कहा कि, “आज कल तो हमारे विरोधी भी कहते हैं कि मैं दोस्तों के लिए काम करता हूं. मैं गरीबी में पला-बढ़ा हूं, उनका दुख-दर्द क्या है ये जानता हूं. इसलिए मेरे दलित, पिछड़े, पीड़ित, शोषित, वंचित, सभी दोस्तों को केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिला है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार की योजनाओं के जरिये कतार में पीछे खड़े लोगों को लाभ देने की बात कर रहे हैं जबकि राहुल गांधी और कांग्रेस लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उद्योगपति दोस्तों की मदद का आरोप लगाती रहती है. कतार में पीछे खड़े व्यक्ति को सरकारी योजनाओं के जरिये और औद्योगिक विकास के जरिये बेहतर रोजगार और तरक्की का मॉडल दिखाकर ब्रिगेड मैदान से प्रधानमंत्री ने बंगाल के लोगों को लुभाने की कोशिश की है. 60 के दशक में देश में सबसे ज्यादा तरक्की वाले राज्य से आज पश्चिम बंगाल के लोग, देश के गरीब राज्यों की श्रेणी में खड़े हो गए हैं. उद्योग विरोधी छवि के आधार पर ममता बनर्जी को दो बार मिली सत्ता ने सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं लोगों का कर दिया, जिन्होंने वामपंथी शासन खत्म करके तृणमूल (TMC) की सत्ता लाने में मदद की थी. ब्रिगेड मैदान पर रैली के दौरान दलित, पिछड़े, पीड़ित, शोषित, वंचित दोस्तों की बात कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आकर्षित करने की कोशिश की है.
इससे पहले अमित शाह ने कोलकाता में प्रेस कांफ्रेंस करके और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बंगाल के किसानों को प्रधानमंत्री कृषि सम्मान निधि का लाभ न मिलने की बात कहकर भी उसी भावना को उभारने की कोशिश की थी और जब ममता बनर्जी की सरकार ने चिट्ठी लिखकर सम्मान निधि की रकम राज्य सरकार को देने को कहा तो भाजपा (BJP) हमलावर होकर तोलाबाजी यानि कमीशनखोरी का आरोप जोर से लगाने लगी.
वैभवशाली बंगाल की बात भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एजेंडे में सबसे ऊपर रहती है और ध्यान से देखने पर समझ आता है कि वैभवशाली बंगाल की बात भारतीय जनता पार्टी सिर्फ सांस्कृतिक नजरिये से नहीं बल्कि औद्योगिक, आर्थिक नजरिये से भी करती है.
अब उद्योगपति दोस्तों से लेकर दलित, पिछड़े, पीड़ित, शोषित, वंचित तबके के लोगों से एक साथ दोस्ती की प्रधानमंत्री मोदी की बात बंगाल के लोगों को कैसे समझ में आएगी, इसी से इस बार का चुनाव तय होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)
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