कोविड के खिलाफ जंग में सरकारें समाज और अर्थव्यवस्था के हर मुमकिन जरिए से संसाधनों को तैनात कर रही हैं. सैन्य बलों से पहले ही कहा जा चुका है कि वे अपने रिटायर्ड डॉक्टरों को काम पर वापस बुलाएं ताकि आम लोग उनसे मदद ले सकें.
कर्नाटक सरकार भी ऐलान कर चुकी है कि वह मेडिसिन, पैरामेडिकल और नर्सिंग कोर्सेज के अंतिम साल के छात्रों को कोविड मरीजों के इलाज में तैनात करेगी. अब इसी कड़ी में पश्चिम बंगाल सरकार ने अप्रशिक्षित मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के बड़े नेटवर्क को इस काम में लगाने का फैसला किया है.
इन अप्रशिक्षित प्रैक्टिशनर्स की संख्या 2.5 लाख से ज्यादा है. ये लोग ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में कोविड मरीजों का इलाज करेंगे.
ममता बनर्जी प्रशासन इन्हें ब्लॉक, सब डिवीजन और जिला अस्पतालों में एक शॉर्ट कोर्स करा सकता है और इन्हें कोविड मरीजों के इलाज के लिए स्किल्स मुहैया कराएगी.
जिन NGO ने इनमें से कुछ को प्रशिक्षण दिया है उनका कहना है कि ये अप्रशिक्षित मेडिकल प्रैक्टिशनर्स कोविड के खिलाफ जंग में प्रभावी तौर पर काम आ सकते हैं.
सत्य अक्सर कड़वा होता है. कई राज्यों में ये मेडिक्स ग्रामीण स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की रीढ़ हैं. 2016 में WHO ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में एलोपैथी के 57 फीसदी तक डॉक्टर कभी किसी औपचारिक मेडिकल ट्रेनिंग से नहीं गुजरे हैं.
इसके साथ ही शहरी और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या में अंतर हालात को और गंभीर बना रहा है. कुल हेल्थ वर्कर्स में से शहरी इलाकों में 59.2 फीसदी मौजूद हैं, जबकि इन जगहों पर केवल 27.8 फीसदी आबादी रहती है.
दूसरी ओर, ग्रामीण इलाकों में 40.8 ही स्वास्थ्य कर्मचारी मौजूद हैं. जबकि इन इलाकों में 72.2 फीसदी आबादी रहती है.
सभी राज्यों के पास इस तरह के अप्रशिक्षित डॉक्टरों का एक बड़ा तबका मौजूद है. अलग-अलग राज्यों में मौजूद बड़ी ग्रामीण आबादी के लिए ये मेडिकल प्रैक्टिशनर्स मरीजों के लिए मदद का पहला जरिया बन सकते हैं. लेकिन, इन्हें जंग के मैदान में उतारने से पहले इन्हें वैक्सीन लगाई जानी चाहिए ताकि ये इस घातक संक्रमण का शिकार न हो सकें.