एक टर्म है – ‘फोमो’ (FOMO). एक कहानी है धीरे-धीरे गरम होते पानी में मेंढ़क की. दरअसल यह कहानी कम उपमा ज्यादा है. आप कहेंगे कि इन दो का आज क्या मतलब है? जवाब है कि शेयर बाजार की अभी जो चाल है, उनमें छोटे और नए निवेशकों का हाल बताने के लिए यह दो बातें काफी अहम हैं.
इन दो बातों की गहराई में ले चलें, उसके पहले शेयर बाजार का ताजा हाल ले लीजिए. शुक्रवार, 11 जून को बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स हो या फिर एनएसई का 50 शेयरों वाला निफ्टी, दोनों ही रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए. बाजार में तेजी का हाल है कि महज दो दिनों के भीतर निवेशकों की पूंजी सवा तीन लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गयी. है ना बेहद लुभाने वाली बात.
जाहिर है ऐसे में कई लोग ‘फोमो’ के शिकार हो रहे हैं. ‘फोमो’ यानी Fear of Missing Out (FOMO). हर दूसरे को लग रहा है कि पहले ने बाजार की तेजी में खूब कमाई कर ली और वह पीछे रह गया. यह एक आम व्यवहार है. आज शेयर बाजार को लेकर ऐसी ही कहानी हो रही है. कई अगर यह बताने वाले हैं कि बाजार की तेजी के बीच उसे अमुक शेयर में इतना फायदा हुआ और अमुक शेयर में तो पैसा तीन गुना हो गया तो बाजार से दूर रहे व्यक्ति का मन डूबने को हो आता है. यही तो है ‘फोमो’.
अब पीछे रह जाने का भय औकात से ज्यादा कुछ कर जाने की सोच को जन्म देता है. यही से कहानी बनती है उस मेंढ़क की, जिसे अगर सीधे खौलते हुए पानी में छोड़ा जाए तो वो उछल कर निकलने की कोशिश करेगा और हो सकता है कामयाब भी हो जाए. लेकिन अब माहौल बदलते हैं. एक बरतन में पानी भरें और उसमे मेंढक को छोड़ दें. मेंढ़क निकलने की जुगत नहीं करेगा.
अब बरतन को धीरे-धीरे गरम करना शुरु कर दीजिए. शुरु-शुरु में मेंढ़क कोई खास दिक्कत नहीं महसूस करेगा और वो पानी में टिका रहेगा. लेकिन एक समय ऐसा आएगा कि जब पानी उबलने लगेगा और फिर मेंढ़क के लिए निकलने का रास्ता नहीं बचेगा. मतलब…समझ रहे हैं ना.
कई लोगों की शेयर बाजार में इन दिनों ऐसी ही हालत हो गयी है, खास तौर पर वो जिन्होंने तेजी के दौर में कदम रखा. घाटे की सीमा यानी स्टॉप लॉस की बात तो हर जानकार करते हैं लेकिन बिरले ही ऐसे मिले, जो कहते होंगे कि मुनाफे की यह सीमा तय कर लो. याद आती है सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी की एक नसीहत. वो कहते थे कि हर कोई यह तो तय कर लेता है कि उसे कितनी रोटी खानी है या फिर चावल कितना खाना है, लेकिन कभी भी यह तय नहीं करता कि कितना पैसा कमाना है, कितना मुनाफा कमाना है. बस लक्ष्य यही होता है कि खूब कमाना है. यही होती है परेशानी की जड़.
बाजार में कई छोटे निवेशक को शुरु-शुरु में जब थोड़ा मुनाफा होता है तो वह वसूली नहीं करता, बल्कि इंतजार करता है कि थोड़ा और बढ़ जाए. यह तो सरल सी बात है कि कोई भी शेयर हमेशा चढ़ता नहीं है, उसमें गिरावट भी होती है. गिरावट हो गयी, उस छोटे निवेशक को लगता है कोई बात नहीं, फिर चढ़ेगा. दूसरी बार चढ़ा, लेकिन मनमाफिक नहीं, फिर रुक गए. अब बड़ी गिरावट, घाटा काफी ज्यादा. अब क्या करें?
धैर्य रखना होगा. बाजार नहीं चढ़ा तो क्या करेंगे. पैसा डूबने का अफसोस ही ना. ध्यान रहे कि हर कोई बाजार में पैसा नहीं कमाता. कुछ कमाते हैं, कई गंवाते हैं. इनमे से कई की स्थिति उस मेंढ़क की तरह जो गुनगुने पानी के हिसाब से अपने आप को बाजार में टिकाए रहने की कोशिश करता है, लेकिन पानी जब खौलने लगे यानी घाटा बहुत ही बढ़ जाए और मुनाफे के बजाए मूल ही डूबने का खतरा बन जाए तो क्या करेंगे? ज्यादातर लोग किसी भी भाव पर शेयर बेचना ही बेहतर समझेंगे, चाहे मूल में ही बट्टा क्यों ना लग जाए.
अब दो तथ्यों पर गौर करें. पहली बात तो यह कि केवल शेयरों में निवेश नहीं करें, बल्कि धैर्य में ही निवेश करें. दूसरी बात यह कि रफ्तार पकड़ती रेलगाड़ी में चढ़ने की कोशिश में गिरने और चोट खाने का खतरा भी होता है. मतलब जब बाजार तेज हो और खासे उतार-चढ़ाव का दौर भी चल रहा हो तो दाखिल होने का बिल्कुल सही समय नहीं.
माना कि अर्थशास्त्र में कह गया है कि मुनाफा जोखिम का प्रतिफल है, लेकिन यह नहीं कहा गया कि जोखिम कितना उठाए. यह आप से बेहतर कोई तय नहीं कर सकता, क्योंकि आप अपने बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं.
अंत में बस इतना ही कि पैसा आपका अपना है, उससे और पैसा बनाना है तो कई कानूनी रास्ते हैं, सिर्फ शेयर बाजार ही नहीं.
Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.
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