भारत की पहचान मजबूत लोकतंत्र है. अब भारतीय वित्तीय बाजारों की बारी है, खासतौर पर स्टॉक मार्केट में लोकतंत्र का मजबूत पक्ष दिखाई दे रहा है.
भारतीयों को आमतौर पर एक रूढ़िवादी, जोखिम से बचने वाले निवेशकों के तौर पर देखा जाता है. लेकिन, ये धारणा अब तेजी से बदल रही है और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि कोविड-19 के तूफान के बीच पिछले साल शेयर बाजारों में आम लोगों ने जमकर पैसे लगाए हैं.
फरवरी 2020 में सेंसेक्स 42,273.87 पर था, इसके बाद ये 23 मार्च को गिरकर 25,638.90 पर आ गया. इस तरह से इसमें 39.35 फीसदी की गिरावट आई. इसके बाद इसमें ऐसे वक्त पर फिर तेजी आने लगी जबकि अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर में है और बड़ी तादाद में लोगों की नौकरियां गई हैं, सैलरी में कटौती हुई है और कारोबार बर्बाद हुए हैं.
16 फरवरी 2021 को मार्केट 52,425.89 के लेवल पर पहुंच गया.
इसके बाद के हफ्तों में उत्साही निवेशकों के बाजार में टिके रहने से मार्केट में पिछले साल जैसा क्रैश नहीं आया. ऐसा तब हुआ है जबकि कोविड की दूसरी लहर ने पहली के मुकाबले ज्यादा तबाही मचाई है.
निश्चित तौर पर इसके लिए पूरा श्रेय रिटेल इनवेस्टर्स की भागीदारी को जाता है. अब मार्केट के ट्रेडिंग टर्नओवर में इस सेगमेंट की हिस्सेदारी 45 फीसदी है जो कि 2016 में 33 फीसदी थी.
एक वक्त पर मार्केट में दबदबा रखने वाले विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी अब घटकर महज 11 फीसदी रह गई है.
डेरिवेटिव्स मार्केट में भी रिटेल इनवेस्टर्स ने इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स को पीछे छोड़ दिया है.
लॉकडाउन के दौरान भारत में लोगों ने इक्विटी का स्वाद चखा है और इस भूख में फिलहाल कोई कमी आती नहीं दिख रही है. आवाजाही और एंटरटेनमेंट पर लगी पाबंदियों से लोगों के पास पैसे बचे हैं और उन्होंने इसे निवेश किया है.
आने वाले दिनों में भी रिटेल इनवेस्टर्स का मार्केट में निवेश बढ़ने की ही उम्मीद है. नई पीढ़ी खासतौर पर मिलेनियल्स इक्विटी मार्केट्स में आगे बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और ये तबका म्यूचुअल फंड्स से पैसा निकालकर स्टॉक मार्केट्स में लगा रहा है.
स्टॉक मार्केट्स में 4 फीसदी से भी कम भारतीय पैसा लगाते हैं, ऐसे में इसमें ग्रोथ की भारी संभावनाएं हैं.