आम बजट 2021-22 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और इसके साथ ही यह हिसाब-किताब भी शुरू हो गया है कि किस सेक्टर को या किस इंडस्ट्री को बजट में क्या मिल सकता है. जिस आर्थिक पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन (Nirmala Sitharaman) यह बजट (Budget 2021) पेश करने जा रही हैं, उसमें यह स्वाभाविक ही है कि हर सेक्टर अपने लिए कुछ ख़ास की उम्मीद कर रहा है. एक ओर तो मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर हैं, जो कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के जानलेवा झटके से उबरने के लिए वित्त मंत्री के भाषण पर कान लगाए बैठेंगे, वहीं दूसरी ओर आम लोग हैं, जो बीते साल छंटनी, वेतन कटौती, धंधे में कमी और ऐसी ही दूसरी मुश्किलों से जूझने के बाद सीतारमन की ओर उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं. लेकिन कृषि क्षेत्र (Agriculture) की स्थिति इन सबसे अलग है. इसके बावजूद कि मौजूदा परिदृश्य में किसान देश का सबसे उद्वेलित समूह दिख रहा है, तथ्य यही है कि कृषि क्षेत्र ने कोरोना की चुनौतियों का सबसे बेहतर तरीके से मुकाबला किया और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जब पूरी अर्थव्यवस्था 23.9% सिकुड़ गई, उस दौरान भी भारत के कृषि क्षेत्र ने 3.4% की वृद्धि दर्ज की.
कृषि क्षेत्र (Agriculture) का यह शानदार प्रदर्शन महज़ इत्तेफाक़ नहीं है. नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले दौर से ही कृषि (Agriculture) को लेकर एक ख़ास नीतिगत रुख़ अख़्तियार किया. सरकार ने अपना फोकस कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने और मार्केटिंग के तरीकों में गुणात्मक परिवर्तन करने पर रखा. साल 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू करने के बाद से इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम), इलेक्ट्रॉनिक निगोशिएबल वेयरहाउसिंग रिसीट (ENWR), मॉडल लैंड लीजिंग एक्ट, मॉडल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक मार्केटिंग एक्ट, मॉडल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, रेल किसान और सबसे हाल में कृषि सुधार से जुड़े तीन कानूनों तक ऐसी योजनाओं की एक लंबी फ़ेहरिस्त है, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में कृषि के हर पहलू को बुनियादी तौर पर मजबूत करने की कोशिश की है.
लेकिन मोदी सरकार के 7 वर्षों के इतिहास का एक संकेत यह भी है कि आम बजट अमूमन एक नीतिगत संकेतक के तौर पर ही इस्तेमाल किए गये हैं. किसान सम्मान निधि (Kisan Samman Nidhi) जैसे एकाध अपवादों को छोड़ दें, तो बजट में कृषि से संबंधित कोई बड़ी घोषणा अब तक नहीं दिखी है. मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना ई-नाम 2016 में अंबेडकर जयंती के दिन शुरू हुई थी और कृषि कानूनों को लॉकडाउन के दौरान लागू किया गया. लेकिन इन कानूनों और योजनाओं के संकेत बजट दस्तावेजों में बराबर मिलते रहे.
ऐसे में सवाल यह है कि 2021-22 के बजट में सरकार से क्या कोई बड़ी उम्मीद की जा सकती है? दो कारणों से इसका जवाब हां है. यह साफ है कि मोदी सरकार कृषि कानूनों पर किसानों के दबाव में है. बजट में निर्मला सीतारमन की कोशिश होगी कि देश भर के किसानों को यह संकेत दिया जा सके कि नरेंद्र मोदी उनके हित में पूरी तरह तत्पर है. इस लिहाज से एक तो किसान सम्मान निधि को 6000 रुपये से बढ़ाकर 8000 रुपये किया जा सकता है. लेकिन राजस्व घाटे पर अत्यधिक दबाव के कारण ज्यादा व्यावहारिक फैसला खाद सब्सिडी ख़त्म करने के तौर पर लिया जा सकता है. कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से खाद सब्सिडी को खत्म कर सब्सिडी की रकम डीबीटी के ज़रिए सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर करने की वकालत करते रहे हैं. इस एक फैसले से खजाने पर बिना अतिरिक्त बोझ बढ़ाए किसानों के लिए फील-गुड तैयार किया जा सकता है.
दूसरा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 साल में किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य से जुड़ा है. स्वयं प्रधानमंत्री ने 5 साल की जो समय सीमा तय की थी, उसका यह अंतिम बजट है. मोदी सरकार 1.0 के 5 सालों में कृषि की औसत वृद्धि दर 3% रही, 2.0 के शुरुआती दो सालों में भी यह दर 4% के ऊपर नहीं जा सकी है. इससे यह तो निश्चित है कि 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने का लक्ष्य हासिल नहीं होने जा रहा.
इस पृष्ठभूमि में यदि 2021-22 के बजट की विशलिस्ट खंगाली जाए, तो सरकार की चुनौतियां जाहिर हो जाती हैं. इसलिए 1 फरवरी को निर्मला सीतारमन को अपने बजट में लंबी अवधि की नीतिगत घोषणाओं के साथ किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था भी देनी होगी, जिससे किसानों को तुरंत लाभ हो और उसकी आमदनी में जल्दी से जल्दी बढ़ोतरी का रास्ता खुले.
किसान के लिए इनपुट का खर्च कृषि की कुल लागत का 40-50 प्रतिशत होता है, जबकि कीटनाशकों में कंपनियां और खुदरा व्यापारी 100 से लेकर 1000 प्रतिशत तक मुनाफाखोरी करते हैं. यदि इंसानों की दवाओं के MRP को लागत मूल्य से जोड़ा जा सकता है, तो पौधों की दवाओं के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता. यदि सरकार यह कर सके, तो इससे किसानों की जेब से निकलने वाले अरबों रुपयों को उनकी बचत में बदला जा सकेगा. इसके अलावा कोविड-19 के दौर में अप्रैल-सितंबर तिमाही के दौरान कृषि निर्यात में हुई 43% वृद्धि ने एक बार फिर साफ किया है कि सरकार को किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए कृषि (Agriculture) उत्पादों के निर्यात पर फोकस करने की जरूरत है. साल 2018 की कृषि निर्यात नीति में 2022 तक कृषि उपज का निर्यात 60 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार 2021-22 के बजट में कुछ विशेष निर्यात केंद्रित सुधारों की भी घोषणा कर सकती है.
कुल मिलाकर यह बजट इस मायने में अलग हो सकता है कि इसमें कृषि (Agriculture) के आधारभूत ढांचे में सुधार की जगह जल्दी परिणाम देने वाले ऐसे कदम सामने आ सकते हैं, जो किसानों को तुरंत राहत देने के साथ मोदी सरकार के प्रति किसानों में नया भरोसा भी जगा सके.
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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