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उपज की ई-मार्केटिंग से बदलेगी किसानों की किस्मत

Agri Reform: ई-नाम (eNAM) के सफलतापूर्वक लागू होने के बाद कोई भी ट्रेडर एक ही लाइसेंस से राज्य की सभी मंडियों में कारोबार कर सकेगा.

  • Team Money9
  • Last Updated : March 16, 2021, 12:19 IST
Picture: eNAM
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Agri Reform: भारत के कृषि सेक्टर की एक बड़ी अनोखी बात है. आजादी के बाद पिछले 75 सालों में जहां एक सेक्टर के तौर पर हमने कृषि में एक लंबा सफर तय किया है, वहीं बात जब किसानों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति की आती है, तो लगता है जैसे वक्त ठहर गया है. कृषि क्षेत्र ने लगातार प्रगति के नए प्रतिमान गढ़े हैं, वहीं इससे अपनी आजीविका हासिल करने वाले किसानों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई है.

आज भी किसान अपनी उपज कमीशन एजेंट के हाथों बेचने को मजबूर है. ज्यादातर मामलों में कमीशन एजेंट गांव का ही महाजन होता है, जो किसानों को खाद, बीज से लेकर शादियों और श्राद्ध तक के खर्च निपटाने के लिए आर्थिक मदद देता है. ऐसे में किसान के पास इस बात की संभावना बहुत कम बचती है कि वह उस कमीशन एजेंट या कच्चे आढ़तिये से अपनी उपज के लिए मोलभाव कर सके. जो किसान गांव के महाजन से बच कर APMC (कृषि उत्पाद विपणन समिति) की मंडी तक पहुंचने में कामयाब होते हैं, उनके माल का ऑक्शन होता है. ऑक्शन में मंडी के ही कुछ कारोबारी आपस में मिलकर तय करते हैं कि किसी किसान के माल की कीमत क्या होनी चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया में किसान की बेबसी को इस तरह समझा जा सकता है कि वह दुनिया में शायद अकेला ऐसा विक्रेता होता है, जिसके माल की कीमत तय करने में उसकी राय कोई नहीं पूछता.

इस पूरी प्रक्रिया का नतीजा है कि भारत में उपज की मात्रा, उसकी गुणवत्ता और उसकी कीमत तो साल-दर-साल बढ़ती गई है, लेकिन उसे पैदा करने वाला किसान लगातार गरीबी और कर्ज के दलदल में धंसता गया है. इतना कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCDR) के मुताबिक 1997 के बाद से 2017 तक करीब 20 साल में कुल 1.82 लाख से ज्यादा किसानों ने निराशा के गर्त में पहुंचकर मौत को गले लगा लिया.

Agri Reform: इस स्थिति को बदलने के लिए कृषि को बाजार से जोड़ने की आवश्यकता है. सरकार ने कृषि सुधारों से जुड़े जो कानून पेश किए हैं, वे तो महत्वपूर्ण हैं ही, लेकिन इस दिशा में पहले 2016 में ही शुरू हो गई थी, जब 14 अप्रैल को देश के 8 राज्यों में 21 मंडियों ई-नाम (eNAM)यानी इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार की शुरुआत हुई. मार्च 2021 तक देश भर की 1000 बड़ी मंडियों को ई-नाम (eNAM) के तहत आपस में जोड़ दिया गया है और 2021-22 के बजट में सरकार ने 1000 और मंडियों को इससे जोड़ने की योजना का खुलासा किया है. इन सब मंडियों के आपस में जुड़ जाने के बाद देश के किसी भी हिस्से में बैठा कोई भी व्यापारी अपने कम्प्यूटर पर इन 2000 मंडियों में आने वाले हर कमोडिटी की मात्रा और गुणवत्ता रियल टाइम में देख सकेगा और उस पर अपनी बोली भी लगा सकेगा. राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रयोग भले ही नया और काल्पनिक सा लग रहा हो, लेकिन देश के कई हिस्सों में स्थानीय स्तर पर इस तरह के सफल प्रयोग पहले से ही चल रहे हैं.

इसकी शुरुआत हुई थी 2014 में जब कर्नाटक सरकार ने राष्ट्रीय ई-मार्केट्स लिमिटेड (REMS) की शुरुआत की. इसके तहत पूरे राज्य की मंडियों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की शुरुआत की गई. इस कोशिश में सबसे पहले APMC एक्ट में सुधार कर ट्रेडर लाइसेंस हासिल करने की ईकाई मंडी से बदल कर राज्य कर दी गई. यानी पहले कोई ट्रेडर अगर 4 मंडियों में कारोबार करना चाहता, तो उसे 4 लाइसेंस लेने की जरूरत होती. लेकिन अब वह कर्नाटक राज्य के एक लाइसेंस से राज्य की सभी डेढ़ सौ से ज्यादा मंडियों में कारोबार कर सकता है. इसके साथ ही वह अपने ऑफिस में बैठ कर ही इन सभी मंडियों में आने वाली सभी कमोडिटी की जानकारी हासिल कर सकता है क्योंकि कर्नाटक के इस एकीकृत बाजार प्लेटफॉर्म (यूएमपी) के तहत हर मंडी के गेट पर आने वाली कमोडिटी का रजिस्ट्रेशन होता है और इसके साथ ही उसका पूरा डाटा सिस्टम में फीड हो जाता है. इसके बाद कोई भी कारोबारी पूरे राज्य से इस पर बोली लगा सकता है. इस सिस्टम के लागू होने के बाद से कर्नाटक की मंडियों में किसानों को मिलने वाला भाव अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है और प्रति लॉट बोलियों की औसत संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई है. कर्नाटक से प्रभावित होकर आंध्र प्रदेश ने एनसीडीईएक्स के सहयोग से पहले ही कई मंडियों को जोड़ने की शुरुआत कर दी थी. वहीं तेलंगाना में निजामाबाद जैसी मंडियां भी थीं, जो हालांकि किसी और मंडी से जुड़ी नहीं थीं, लेकिन खुद में ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रही थीं.

ई-नाम (eNAM) के सफलतापूर्वक लागू होने के बाद कोई भी ट्रेडर एक ही लाइसेंस से राज्य की सभी मंडियों में कारोबार कर सकेगा. हर किसान को अपनी फसल के लिए घर बैठे पूरे देश के खरीदारों की बोलियां मिलेंगी. इलेक्ट्रॉनिक तौल अनिवार्य होने से वजन में होने वाले 5-8 प्रतिशत तक के नुकसान से किसान को निजात मिलेगी और बढ़िया गुणवत्ता वाली फसलों की मांग के कारण उनमें क्लीनिंग, ग्रेडिंग को लेकर जागरूकता भी फैलेगी. देश के इतिहास में पहली बार है, जब किसी सरकार ने कृषि क्षेत्र (Agri Reform) की प्रगति को सीधे किसानों से जोड़ा है. इस दिशा में ई-मार्केटिंग की पहल एक क्रांतिकारी कदम है, जिसकी सफलता ग्रामीण भारत की प्रगति में एक मील का पत्थर साबित होगी.

(लेखक आर्थिक और कृषि मामलों के जानकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)

Published - March 16, 2021, 11:04 IST

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