मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि रेस्टोरेंट्स से टेकअवे या पार्सल वाले ऑर्डर्स पर सर्विस टैक्स लागू नहीं होता है. रेस्टोरेंट्स बिना किसी हक के जो पैसा कंज्यूमर्स से ले रहे थे उसकी बचत से अब खाने-पीने के शौकीन फूले नहीं समा रहे होंगे.
परिभाषा के हिसाब से रेस्टोरेंट सर्विस में कई गैर-फूड चीजें भी चीजें भी आती हैं. इनमें रेस्टोरेंट में सीटिंग, एयर कंडीशनिंग, टेबल पर सर्विस, लाइव म्यूजिक और बेहतर सत्कार शामिल हैं. इस तरह की सुविधाएं तब मौजूद नहीं होतीं जब ये ट्रांजैक्शंस टेकअवे वाले होते हैं. बल्कि, सर्विस टैक्स को केवल एयर कंडीशंड रेस्टोरेंट्स तक ही सीमित रखना चाहिए.
यहां यह समझना मौजूं है कि कोविड से पहले के दौर में भी जो रेस्टोरेंट्स डाइन इन और टेकअवे ऑफर कर रहे थे. उनके यहां टेकअवे के लिए अलग काउंटर थे और इनमें एयर कंडीशनर नहीं था. ऐसे में ये निश्चित तौर पर किसी तरह की ऐसी सर्विस नहीं दे रहे थे जिसके लिए कंज्यूमर्स को अलग से पैसे देने हों.
2017 में GST लागू होने के बाद से सर्विस टैक्स का दौर गुजर गया था. लेकिन, GST के ऊपर सर्विस चार्ज वसूलने की आजादी इन रेस्टोरेंट्स के हाथ थी. ये एक मनमानी थी जो अब इस ऑर्डर के साथ खत्म हो गई है.
हालांकि, कंज्यूमर्स खुश हैं, लेकिन ये कदम हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के लिए भी खुद को फिर से खड़ा करने में मददगार साबित होगा. सर्विस टैक्स पर होने वाली बचत से अब और ज्यादा लोग रसोई में खाना बनाने की बजाय रेस्टोरेंट का खाना मंगाने के लिए उत्साहित होंगे.
भारत को अर्थव्यवस्था में फिर से जान डालने के लिए खर्च को बढ़ाने की जरूरत है. ज्यादा ऑर्डर्स का मतलब है कि हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में और ज्यादा बिजनेस आएगा. कोविड की मार से ये सेक्टर बुरे हालात से गुजर रहा है.
इसके अलावा, टेकअवे का रेस्टोरेंट में खाने की बजाय सस्ता होना इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि ये महामारी का दौर है और लोगों का खाने-पीने के लिए बाहर निकलना अभी जोखिम भरा है.
ऐसे में सर्विस टैक्स पर होने वाली बचत का जश्न मनाया जाना चाहिए.