7th pay commission: किसी भी वित्तीय संकट में सैलरीड मिडल क्लास, खासतौर पर सरकारी कर्मचारियों पर सबसे तगड़ी चोट पड़ती है. गरीबों की तरह इन्हें लुभाया नहीं जाता और अमीरों की तरह से इनके पास मोटी पूंजी नहीं होती है. केंद्र सरकार के कर्मचारी खुद को कुछ ऐसे ही हालात में फंसा हुआ पा रहे हैं. पिछले साल 1 जनवरी से इनका महंगाई भत्ता (DA) रुका हुआ है. इस साल 1 जुलाई से इस पर लगी रोक हटने की उम्मीद है. लेकिन, भले ही ये रोक हटा ली जाएगी, फिर भी इन्हें एरियर का भुगतान नहीं किया जाएगा.
ये पूरी अवधि भारी वित्तीय उथल-पुथल भरी रही है. कंज्यूमर प्राइस आधारित महंगाई अक्सर 6 फीसदी के पार चली गई जो कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की दिशा तय करने वाली ऊपरी सीमा है. तकरीबन सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम, ज्यादातर खाद्य वस्तुओं और खाद्य तेलों के दाम तेजी से ऊपर चढ़े हैं. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों ने इस महंगाई में राहत मिलने के आसार कम कर दिए हैं.
परिभाषा के मुताबिक, महंगाई भत्ते (DA) का भुगतान महंगाई के असर को कम करने और कर्मचारियों को मिलने वाली वास्तविक सैलरी को बचाने के लिए किया जाता है. डीए को रोकना एक तरह से सरकार का जानबूझकर कर्मचारियों की सैलरी को कम करने की इजाजत देने जैसा है.
सैद्धांतिक तौर पर हालांकि, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी लोगों की कमाई बढ़ाने की बात करती है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के प्रचार में बीजेपी के नेता वादा कर रहे हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो कर्मचारियों को 7 वें वेतन आयोग (7th pay commission) की सिफारिशों का लाभ दिया जाएगा. गौरतलब है कि राज्य के कर्मचारियों को अभी छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों का भी पूरा फायदा नहीं मिल रहा है.
गुजरे कई महीने सरकारी कर्मचारियों के लिए मुश्किल भरे रहे हैं इनमें से कई कर्मचारियों को अपने सरकारी कामकाज के दौरान कोविड संक्रमण का शिकार होना पड़ा है और अपनी जिम्मेदारियों के चलते वे इससे बच भी नहीं सकते थे. ऐसे में इन कर्मचारियों को कम से कम वित्तीय रूप से मुआवजा देना सरकार का दायित्व बनता है.