सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइज (MSME) की याचिका को खारिज कर दिया है. याचिका में इनकम टैक्स एक्ट के तहत एक नियम को चुनौती दी गई थी. नए नियम के तहत बिजनेसेज को 45 दिनों से ज्यादा के लिए खरीदारों को उधार नहीं दे सकते हैं.
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 43B(h) का उद्देश्य MSME के बीच कर्ज बांटने की प्रथाओं को विनियमित करना, समय पर भुगतान सुनिश्चित करना और वर्किंग कैपिटल की कमी को दूर करना है.
समय पर भुगतान न करने के नुकसान
पैसा चुकाने में देरी आर्थिक रूप से बहुत भारी पड़ सकती है. नियम के मुताबिक जुर्माने की रकम को भी तय किया गया है. इसके अनुसार समय-सीमा का पालन न करने पर, रिजर्व बैंक की तरफ से तय बैंक रेट से तीन गुना चक्रवृद्धि ब्याज के बराबर जुर्माना लगाया जाएगा. इसके अलावा, वे अपनी टैक्सेबल इनकम से MSEs को किए गए भुगतान में कटौती करने की क्षमता को भी खो सकते हैं.
MSME की चिंता
यह प्रावधान तब लागू होता है जब कोई बिजनेस माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइज डेवलपमेंट एक्ट,2006 (MSME) विकास अधिनियम, 2006 (MSMED एक्ट) के तहत रजिस्टर्ड बिजनेस से सामान खरीदता है या सेवाएं लेता है. कुछ MSME ने चिंता जताई है कि इस प्रावधान से बड़े खरीदार छोटे और मीडियम सप्लायर्स को नजरअंदाज कर सकते हैं और इसके बजाय ऐसे एंटरप्राइज से खरीदारी कर सकते हैं जो रजिस्टर्ड नहीं है.
हाई कोर्ट की ओर रुख
शीर्ष अदालत ने MSME की ओर से याचिका दायर करने वाले फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल को याचिका वापस लेने और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी. फरवरी में, व्यापारियों के निकाय कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के प्रतिनिधियों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी और क्लॉज के लागू करने को अप्रैल 2025 तक टालने का अनुरोध किया था.
टालने का अनुरोध
वित्त मंत्रालय को एक ज्ञापन में, CAIT ने सरकार के फैसले के लिए समर्थन व्यक्त किया, जिसमें व्यापारियों को 45 दिनों के भीतर MSME क्षेत्र को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया गया. हालाँकि स्पष्टता की कमी का हवाला देते हुए CAIT ने सरकार से इस खंड के लागू करने को तब तक निलंबित करने का आग्रह किया जब तक कि स्पष्टीकरण और सूचना का पूरे देश में प्रसार नहीं हो जाता.