सरकार प्रॉविडेंट फंड (PF) और पेंशन खातों को अलग-अलग कर सकती है. ये दोनों अभी एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (EPFO) के तहत आते हैं. मिंट की एक खबर में इस बात का जिक्र किया गया है. ऐसा मंथली पेंशन पेआउट्स को सुरक्षित रखने के लिए किया जा रहा है. इस रिफॉर्म के आने के बाद अकाउंट होल्डर्स प्रॉविडेंट फंड के साथ अपना पेंशन फंड नहीं निकाल पाएंगे. एक्सपर्ट्स इस कदम को अच्छा बता रहे हैं और उनका कहना है कि इससे एंप्लॉयीज के रिटायरमेंट को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी.
RSM इंडिया के फाउंडर सुरेश सुराना कहते हैं, “इस तरह कदम से अकाउंट होल्डर्स अपने पेंशन फंड में कोई छेड़छाड़ किए बगैर PF का पैसा निकाल पाएंगे. लंबे वक्त के लिए ये एक अच्छा कदम है.”
फायदे और नुकसान
इसका मुख्य फायदा ये है कि सब्सक्राइबर्स अपने रिटायरमेंट फंड को कोई चोट पहुंचाए बगैर अपना प्रॉविडेंट फंड निकाल सकेंगे. इन अकाउंट्स को अलग-अलग करने से सब्सक्राइबर्स अपने पेंशन फंड को जारी रख सकेंगे.
कोविड-19 के चलते राहत देने के मकसद से सरकार ने सब्सक्राइबर्स को अपने प्रॉविडेंट फंड से एडवांस निकालने की इजाजत दी है. इस वजह से कई PF होल्डर्स के PF बकाया की रकम कम हो गई है.
इनवेस्टोग्राफी की फाउंडर और CFP श्वेता जैन कहती हैं, “हालांकि, कोई भी फाइनेंशियल प्लानर कहेगा कि पेंशन फंड तक पहुंच बेहद सीमित होनी चाहिए ताकि रिटायरमेंट सुरक्षित रहे, लेकिन मौजूदा हालात में लोग सैलरी कट और नौकरी जाने के चलते मुश्किलों में हैं. कई लोगों के पास इस वक्त केवल EPF का ही सहारा है.”
सुराना कहते हैं, “हालांकि, रिफॉर्म के बाद सब्सक्राइबर्स अपनी पेंशन सेविंग्स को नहीं छू पाएंगे. लोग इमर्जेंसी के हालात में भी इस पैसे का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.”
क्या हैं मौजूदा नियम?
एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड (EPF) स्कीम सभी ऐसे कर्मचारियों पर लागू होती है जिनके ऑर्गनाइजेशंस EPFO के दायरे में आते हैं. ये ऐसी कंपनियां होती हैं जिनमें 20 से ज्यादा एंप्लॉयीज हैं.
15,000 रुपये महीने तक की तनख्वाह वाले एंप्लॉयीज के लिए ये स्कीम अनिवार्य है, जबकि इससे ऊपर वेतन वाले कर्मचारियों के लिए EPF स्कीम्स को चुनना वैकल्पिक है.
हर महीने सैलरी से 24% के कुल EPFO योगदान (एंप्लॉयर और एंप्लॉयी) में EPS (एंप्लॉयी पेंशन स्कीम) में 8.33 फीसदी योगदान होता है, जबकि बकाया रकम EPF में जाती है.
क्या अलग-अलग करना जरूरी है?
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ये अब से एक या दो साल बाद चीजों के सामान्य होने पर एक अच्छा आइडिया हो सकता है. जैन कहती हैं, “मौजूदा माहौल से निकलने के बाद लोगों के पास फिर से बेहतर रिटायरमेंट फंड तैयार करने का मौका मिलेगा. इस वक्त कोशिश होनी चाहिए कि लोग कर्ज में न डूबें.”
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