देश की शीर्ष आईटी कंपनियों में इनदिनों प्रतिस्पर्धा की होड़ लगी हुई है. इसी के चलते कर्मचारी पुरानी कंपनियों को छोड़ नए खिलाड़ी कॉग्निजेंट का रुख कर रहे हैं. मगर ये बात विप्रो के बाद अब इंफोसिस को भी नागवार गुजरी है. यही वजह है कि इंफोसिस ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कॉग्निजेंट पर अनैतिक अवैध रणनीति अपनाने का आरोप लगाया है. इंफोसिस का आरोप है कि प्रतिद्वंद्वी कंपनी गलत तरीके से उनकी कंपनी के प्रमुख कर्मचारियों को तोड़ने का काम कर रही है. इस सिलसिले में इंफोसिस ने कॉग्निजेंट को पत्र लिखकर चेतावनी भी दी है.
इससे पहले विप्रो ने अपने पूर्व सीएफओ जतिन दलाल के कॉग्निजेंट में शामिल होने और इस तरह गैर-प्रतिस्पर्धा नियमों का उल्लंघन करने के खिलाफ अदालत में केस दर्ज कराया था. दलाल के के अलावा, विप्रो ने मोहम्मद हक के खिलाफ भी अमेरिका में मुकदमा दायर किया है, जो हाल ही में कॉग्निजेंट में शामिल हुए हैं. विप्रो की कोर्ट फाइलिंग की Fe ने समीक्षा की है. इंफोसिस ने भी उसी फर्म को ऐसे अनैतिक कदमों के खिलाफ आगह किया है. बता देें जनवरी में पदभार संभालने के बाद, कॉग्निजेंट के सीईओ और इंफोसिस के पूर्व दिग्गज रवि कुमार ने बीस से अधिक कार्यकारी उपाध्यक्षों और चार वरिष्ठ उपाध्यक्षों को नियुक्त किया है, जिनमें से कई विप्रो और इंफोसिस से हैं. इंफोसिस ने पिछले बारह महीनों में लगभग आठ अधिकारियों को बाहर कर दिया है, वहीं विप्रो ने इस कैलेंडर वर्ष में उनमें से लगभग 10 को खो दिया है, जो सभी प्रतिद्वंद्वी आईटी कंपनियों में शामिल हो गए हैं.
क्या है विशेषज्ञ की राय?
एक उद्योग विशेषज्ञ का कहना है कि गैर-प्रतिस्पर्धा धाराएं आम तौर पर अदालतों में लागू नहीं होती हैं. इस प्रकार इंफोसिस का खत लिखना या विप्रो का कोर्ट में मामला दायर करना प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के लिए प्रतिरोध की तरह दिखता है. दलाल के खिलाफ विप्रो का मामला प्रतिस्पर्धी में शामिल होने से पहले कूल-ऑफ अवधि का पालन नहीं करने से संबंधित हो सकता है. दलाल ने सितंबर में इस्तीफा दे दिया था और उन्हें कॉग्निजेंट ने तुरंत इसी महीने अपना सीएफओ नियुक्त कर दिया था. आम तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों के पास किसी भी प्रतिस्पर्धी में शामिल होने से पहले लगभग 6-12 महीने की कूलिंग ऑफ अवधि होती है.