आप जो मैंगो जूस पीते हैं क्या वह वास्तव में आम से बना है? क्या आप जो बटर बिस्कुट खाते हैं, क्या वह वास्तव में मक्खन से बना है. या फिर आप जो ऑरेंज टॉफी खाते हैं क्या वह वास्तव में संतरे से बनी है? बिल्कुल नहीं! वास्तव में हम पैकेट पर जिन फलों की तस्वीरें देखते हैं उसका इन्ग्रीडिएंट उससे एकदम जुदा होता है. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह बात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानि आईसीएमआर (ICMR) ने कही है. आईसीएमआर ने सावधान करते हुए कहा है कि पैकेज्ड वस्तुओं पर लगे खाद्य लेबल भ्रामक हो सकते हैं. आईसीएमआर के मुताबिक उपभोक्ताओं को पैकेट के पीछे लिखी जानकारी को ध्यान से पढ़ना चाहिए.
कैसे छल कर रही हेल्दी और पैकेज्ड फूड कंपनियां?
वैसे देखा जाए तो भारत में पैकेज्ड फूड का घालमेल अब खुलकर सामने आने लगा है. कंपनियां किस तरह हेल्दी और नैचुरल फूड के रूप में आपको घनचक्कर बना रही थीं, भारतीय और विदेशी एजेंसियां इन्हें लेकर रोज रोज खुलासे कर रही हैं. इस साल सबसे पहले बच्चों को दिए जाने वाले नेस्ले कंपनी के बेबी फूड्स को लेकर खुलासा हुआ जिनमें बच्चों के लिए हानिकारक स्तर तक चीनी पाई गई. इसके बाद भारतीय लोगों को करीब 30 से 40 साल बाद पता चला कि बॉर्नविटा बूस्ट या हॉलिक्स जैसे हैल्थ ड्रिंक सेहत को फायदा नहीं पहुंचाते, ये सिर्फ चॉकलेट और चीनी का घोल हैं. इसके बाद परतें खुलीं भारतीय मसालों की जिनमें पेस्टिसाइड पाए जाने के बाद भारत की काफी बदनामी हो रही है.
ICMR ने बताई पैकेज्ड प्रोडक्ट्स की असलियत
अब चलते हैं पैकेट बंद उत्पादों की ओर. पहले आईसीएमआर की बात समझ लेते हैं. आईसीएमआर ने कहा है कि उसकी जांच में सामने आया है कि कई खाद्य पदार्थ जो शुगर-फ्री होने का दावा करते हैं, असल में उनमें वसा की मात्रा अधिक हो सकती है. इसी तरह से अधिकतर डिब्बाबंद फलों के रस में केवल 10 प्रतिशत तक ही फलों का पल्प हो सकता है. हाल ही में जारी अपने आहार दिशानिर्देशों में आईसीएमआर ने कहा कि पैक्ड फूड पर स्वास्थ्य संबंधी दावे उपभोक्ताओं का ध्यान खींचने और उन्हें यह समझाने के लिए डिजाइन किए जाते हैं कि उत्पाद हेल्दी हैं लेकिन असल में ये कितने हेल्दी हैं इसपर अपने विवेक से ध्यान देना जरूरी है.
पैकेज्ड ड्रिंक्स की वास्तविकता
इस मामले में Money9 ने भी बाजार में मिल रहे कुछ ड्रिंक की पड़ताल की है. सबसे पहले बाजार में सबसे लोकप्रिय फ्रूटी की बात कर लेते हैं, जिसके डिब्बे पर आपको आम ही आम दिखाई देंगे. कंपनी इसे कहती भी मैंगो ड्रिक ही है लेकिन क्या आपको पता है कि इसमें मैंगो पल्प कितना है? सिर्फ 11.2 फीसदी! इंग्रीडिएंट टेबल भी देख लें तो पानी, चीनी के बाद मैंगो पल्प का नंबर आता है. यानि इसमें भरभर कर चीनी है. कंपनी ने चीनी की जानकारी भी डिब्बे पर दी है. इसके प्रत्येक 100 मिली में 15 ग्राम शुगर है. यानि 1 लीटर की बोतल में 150 ग्राम चीनी लेकिन लोग इसे पढ़ते ही नहीं और मैंगो ड्रिंक समझकर पी जाते हैं.
अब एक अन्य प्रोडक्ट की बात कर लेते हैं. वह है 100 प्रतिशत फलों के रस से बना डाबर रियल एक्टिव. इस प्रोडक्ट में भी 6.8 प्रतिशत मिक्स फ्रूट कंसन्ट्रेट है. यानि यहां भी असली जूस की जगह कंसन्ट्रेट, वह भी पानी और चीन के मुकाबले तीसरे नंबर पर. अब टैंग की बात कर लें तो यहां मैंगो फ्रूट पाउडर मात्र 0.09 प्रतिशत है यानि 1 फीसदी से भी कम.
इसके अलावा हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान यानि एनआईएन ने भी नैचुरल फूड को लेकर दावों को झूठा बताया है. एनआईएन ने कहा कि किसी खाद्य उत्पाद को ‘प्राकृतिक’ तभी कहा जा सकता है जब इसमें ऊपर से रंग और स्वाद या कृत्रिम पदार्थ नहीं मिलाए गए हों. ये भ्रामक हो सकता है इसलिए लोगों को सामग्री और अन्य जानकारी को ध्यान से पढ़ना जरूरी है.
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