विदेशी निवेशकों का चीन छोड़कर जाने का सिलसिला लगातार बना हुआ है. दुनिया के दूसरे देशों में ज्यादा ब्याज दर की वजह से निवेश पर अधिक रिटर्न और भूराजनयिक तनाव की वजह से विदेशी निवेशक चीन को छोड़ रहे हैं. सितंबर तिमाही के दौरान चीन की डायरेक्टर निवेश देनदारियां घटकर 11.8 अरब डॉलर पर आ गई है, इस आंकड़े से पता चलता है कि 1998 के बाद पहली बार चीन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट आई है.
चीन के वाणिज्य विभाग के आंकड़े भी बताते हैं कि इस साल जनवरी से सितंबर के दौरान चीन में FDI में 8.4 फीसद की गिरावट आई है, चीन के वाणिज्य विभाग ने ये आंकड़े वहां की करेंसी यूआन में रिकॉर्ड किए हैं, और इन आंकड़ों को अगर डॉलर में देखें तो FDI में गिरावट ज्यादा बड़ी हो सकती है.
बीते 2 वर्षों के दौरान दुनियाभर में महंगाई बढ़ने की वजह से दुनियाभर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाने में लगे हुए हैं. अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप सहित भारत के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर बढ़ाकर कर्ज महंगे किए हैं. वहीं दूसरी तरफ चीन का केंद्रीय बैंक अपनी अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए या तो ब्याज दरों को घटा रहा है या निचले स्तर पर बरकरार रखा है. ऐसे में विदेशी निवेशकों को चीन छोड़ दुनिया के दूसरे हिस्सों में डेट मार्केट में ज्यादा बेहतर रिटर्न मिल रहा है.
चीन की अर्थव्यवस्था में कोरोना के बाद से वैसी रिकवरी भी नहीं आई है जैसी उम्मीद जताई जा रही थी, अर्थव्यवस्था में मांग सुधार नहीं हो पाया है, एक्सपोर्ट लगातार घट रहे हैं और इंपोर्ट में भी गिरावट देखी जा रही है. ऊपर से चीन के प्रॉपर्टी मार्केट का संकट लगातार गहराता जा रहा है. चीन की दिग्गज इंफ्रा कंपनियां दिवालिया हो रही हैं. ये तमाम कारण हैं जो विदेशी निवेशको को मजबूर कर रहे हैं कि वे चीन को छोड़ दुनिया के दूसरे हिस्सों में निवेश करें.
दुनियाभर में भूराजनयिक तनाव की वजह से भी दुनिया के कई बड़े निवेशकों पर चीन को छोड़कर जाने का दबाव बना हुआ है. चीन पर आरोप है कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध में खुलकर रूस को राजनयिक समर्थन दे रहा है. साथ में ताईवान के साथ चीन के तनाव भी निवेशकों को चीन छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है.