भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से शैडो बैंकों को बैंक फंडिंग पर अपनी निर्भरता कम करने के दिए गए निर्देश के बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और बैंकों के बीच सह-उधार सौदों में वृद्धि होने की उम्मीद है. चूंकि बैंकों के जरिए धन जुटाना बॉन्ड मार्केट से फंड हासिल करने के मुकाबले आसान है. ऐसे में छोटी और मध्यम आकार की एनबीएफसी को-लेंडिंग (सह-उधार) देना पसंद करेंगी.
श्रीराम फाइनेंस के कार्यकारी उपाध्यक्ष और वित्त उद्योग विकास परिषद (एफआईडीसी) के अध्यक्ष उमेश रेवनकर ने बताया कि को-लेंडिंग के तहत ऋण एनबीएफसी की ओर से प्रदान किया जाता है, जबकि ऋण उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बैंक की होती है. इसलिए इस व्यवस्था के तहत जुटाई गई धनराशि को बैंकों के प्रति एनबीएफसी का एक्सपोजर नहीं माना जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि छोटी एनबीएफसी के लिए जिनके पास बांड के माध्यम से धन जुटाने के लिए बड़ा बैंक बैलेंस नहीं है, यह उनकी फाइनेंसिंग में विविधता लाने का ये सबसे अच्छा जरिया है.
पिछले कुछ वर्षों में एनबीएफसी की ओर से बैंकों से उधार लेने की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वित्तीय वर्षों में, एनबीएफसी को बैंक ऋण ने 18% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की और सितंबर 2023 तक 12.3 ट्रिलियन रुपए हो गया, जबकि सितंबर 2018 तक यह 5.5 ट्रिलियन रुपए था.
विशेषज्ञों का कहना है कि को-लेंडिंग देने से एनबीएफसी को लागत लाभ मिलेगा क्योंकि बांड बाजार से धन जुटाना महंगा होता है. बॉन्ड बाजार हमेशा बैंक ऋण की तुलना में 25-50 बेसिस प्वाइंट महंगा पड़ता है. बड़ी एनबीएफसी के लिए ऋण बाजार पर कब्जा करना आसान है, लेकिन एनबीएफसी के लिए छोटी एनबीएफसी के लिए बॉन्ड के माध्यम से धन जुटाना बहुत मुश्किल है. इसके अलावा एनबीएफसी की फंडिंग में विविधता लाने का एक बेहतर विकल्प है. प्रमाणित ट्रैक रिकॉर्ड वाले बड़े एनबीएफसी को जमा लेने के लाइसेंस का विस्तार करने में मदद मिलेगी.