सरकार ने लोकसभा में बताया है कि सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने पिछले 5 साल में करीब 10.6 लाख करोड़ रुपये का कर्ज राइट ऑफ किया है. राइट ऑफ किए गए कर्ज में से करीब 50 फीसद कर्ज बड़े औद्योगिक घरानों के हैं. सरकार ने यह भी कहा है कि करीब 2,300 कर्ज लेने वालों ने जानबूझकर करीब 2 लाख करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है. इन सभी कर्जदारों के ऊपर 5 करोड़ या उससे ज्यादा की राशि का कर्ज है.
एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने लिखित में जवाब देते हुए कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों और बैंकों के बोर्ड के द्वारा अनुमोदित पॉलिसी के मुताबिक एनपीए के चार साल पूरा होने पर पूर्ण प्रावधान (फुल प्रोविजनिंग) करके बट्टे खाते (राइट ऑफ) में डालकर संबंधित बैंक के बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है. उनका कहना है कि बैंक अपने बैलेंस शीट को साफ सुथरा रखने, कर लाभ प्राप्त करने के लिए नियमित काम के तौर पर एनपीए को बट्टे खाते में डाले जाने के मूल्यांकन और प्रभाव पर विचार करते हैं.
उनका कहना है कि ऐसे में कर्ज को राइट ऑफ करने से उधारकर्ताओं को पुनर्भुगतान के दायित्व से छूट नहीं मिलती है. चूंकि बट्टे खाते में डाले गए कर्ज के उधारकर्ता पर पुनर्भुगतान का दायित्व बना रहता है और बट्टे खाते में डाले गए कर्ज की वसूली की प्रक्रिया चलती रहती है. ऐसे में बट्टे खाते में कर्ज को डालने से उधारकर्ता को लाभ नहीं मिलता है. बैंक विभिन्न तंत्र के माध्यम से वसूली की प्रक्रिया जारी रखते हैं.
उनका कहना है कि सरकार कॉर्पोरेट कर्ज को बट्टे खाते में डाले जाने पर किसी भी तरह की राशि खर्च नहीं करती है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने कर्ज के भुगतान में देरी के लिए उधारकर्ताओं से 5,309.80 करोड़ रुपए की पेनल्टी वसूल की है.