जमा प्राप्त करने के लिए बैंक कॉमर्शियल पेपर्स और सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट जैसे वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग कर रहे हैं. इसका कारण है कि डिपॉजिट ग्रोथ, कर्ज बढ़ने की दर से कम रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अगस्त की बुलेटिन में यह बात कही है. प्राथमिक बाजार में, 2024-25 (9 अगस्त तक) के दौरान 3.49 लाख करोड़ रुपये के जमा प्रमाणपत्र (सीडी) जारी किये गये. यह पिछले वर्ष की इसी अवधि के 1.89 लाख करोड़ रुपये से काफी अधिक है. जमा वृद्धि में कमी और कर्ज बढ़ने की दर में तेजी के बीच बैंक फाइनेंस के वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान दे रहे हैं.
आरबीआई के लेख के अनुसार, 2024-25 (31 जुलाई तक) के दौरान कॉमर्शियल पेपर्स (सीपी) की संख्या भी बढ़ी है. इस दौरान 4.86 लाख करोड़ रुपये के कॉमर्शियल पेपर्स पत्र जारी किये गये, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के 4.72 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. इसका कारण कॉमर्शियल पेपर्स बाजार में एनबीएफसी की उधारी का बढ़ना है.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस महीने मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा में घरेलू बचत के वैकल्पिक निवेश की ओर जाने पर चिंता व्यक्त की थी और बैंकों से अपने बड़े शाखा नेटवर्क का लाभ उठाकर नवोन्मेषी उत्पादों और सेवाओं के माध्यम से जमा जुटाने को कहा था. उन्होंने कहा था कि बैंक डिपॉजिट मांग को पूरा करने के लिए अल्पकालिक गैर-खुदरा जमा और देनदारी के अन्य साधनों का अधिक सहारा ले रहे हैं. यह संभावित रूप से बैंकों में संरचनात्मक नकदी के मुद्दों को सामने ला सकता है.
फिक्स्ड इनकम सेगमेंट को लेकर बुलेटिन में कहा गया है कि घरेलू बॉन्ड यील्ड में तेजी से कमी आई है. यह वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों को शामिल करने, बजट में सकल राजकोषीय घाटे के अनुमान को कम किये जाने तथा कम बाजार उधारी जरूरतों की घोषणाओं से सकारात्मक धारणा को बताता है.
बैंकों में नकदी के बारे में इसमें कहा गया है कि सरकारी खर्च में वृद्धि, बैंकों में मुद्रा की वापसी और रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा परिचालन के कारण यह जुलाई और अगस्त के दौरान अब तक सरप्लस में बनी हुई है.