बैंकों की तरफ से अपनी ATM बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अगले एक से डेढ़ साल के दौरान बड़ा निवेश किया जा सकता है. इसके तहत पुरानी हो चुकी ATM मशीनों को बदलने के साथ नई मशीनों को लगाया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक बैंक करीब 40 हजार पुरानी मशीनों को बदल सकते हैं और करीब 10 हजार नई ATM मशीनें स्थापित कर सकते हैं. एटीएम मशीन पुरानी होने की वजह से और सर्विसेज में सुधार करने के लिए बैंक एटीएम बदलने की योजना बना रहे हैं.
नए एटीएम लगाने का मकसद बैंक की ब्रांच का बोझ कम करना भी है. फिलहाल कई एटीएम में पैसा निकालने की सुविधा है, जबकि बैकं चाहते हैं कि नए एटीएम में पैसा जमा करने की सुविधा भी दी जाए जिससे ब्रांच जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आए. RBI के आंकड़ों के मुताबिक सभी शेड्यूल बैंकों ने वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 4,452 एटीएम जोड़े है जिससे मार्च 2023 के अंत में एटीएम की कुल संख्या 2,19,513 हो गई है.
व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स ने भी वित्त वर्ष 2022-23 में अपने एटीएम नेटवर्क में 4,292 एटीएम जोड़े हैं, जिससे इनके नेटवर्क में एटीएम की कुल संख्या मार्च 2023 के अंत में 35,791 हो गई थी. गैर बैंकिंग संस्थाओं द्वारा स्थापित, स्वामित्व और संचालित किए जाने वाले एटीएम को व्हाइट लेबल एटीएम कहा जाता है. RBI के भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत गैर-बैंकिंग संस्थाओं को एटीएम संचालित करने की अनुमति है.
एक एटीएम की लागत करीब 3.5 लाख रुपए और एक कैश रीसाइक्लर की लागत करीब 6 लाख रुपए है. मान लिया जाए लगाए जाने वाले 50,000 ATM में से 25 फीसद कैश रीसाय्क्लर हो तो बैंकों का इनके ऊपर कुल पूंजीगत खर्च करीब 2,000 करोड़ रुपए हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक व्हाइट-लेबल एटीएम की संख्या बढ़ने से 2022-23 के दौरान एटीएम की कुल संख्या (साइट और ऑफ-साइट) में 3.5 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
कम होगी बैंको की लागत
बैंकों शाखा एक बिक्री बिंदु बनाना चाहते हैं न कि सेवा बिंदु बनाना है. वो कैश जमा करने जैसी सेवा का भार कम करना चाहते हैं जिससे लागत को कम किया जा सके. एटीएम चैनल को किसी भी स्थान पर छोड़ा नहीं जा सकता है क्योंकि हर दिन लाखों लेन-देन होते हैं. ग्राहक को ब्रांच के जरिए सेवा देने की लागत एटीएम में सेवा देने की लागत की कम से कम तीन गुना है.