भारत ने अगले 10 वर्षों के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह को मैनेज करने के लिए ईरान के साथ एक समझौता किया है. यह पहली बार है जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह का मैनेज करेगा. बंदरगाह के संबंध में एक समझौते पर पहले 2016 में साइन किए गए थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था. भारत ने चाबहार बंदरगाह के विस्तार को फाइनेंस किया है. भारत इस समझौते के बाद ईरान के चाबहार पोर्ट का प्रबंधन करेगा.
शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल समझौते पर साइन करने के लिए ईरान गए थे. यह यात्रा इसलिए खास है क्योंकि केंद्रीय मंत्री 2024 के व्यस्त लोकसभा चुनाव कार्यक्रम के बीच यात्रा कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा, ‘मंत्री सर्बानंद सोनवाल ने इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम संगठन के बीच चाबहार में शहीद बेहिश्ती बंदरगाह के संचालन के साइन किया.’ उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि यह कॉन्ट्रैक्ट क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देगा.
ट्रांजिट हब बनाना लक्ष्य
भारत का लक्ष्य CIS (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) देशों तक पहुंचने के लिए चाबहार बंदरगाह को इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के तहत एक ट्रांजिट हब बनाना है. INSTC के जरिए भारत, सेंट्रल एशिया और भारत के बीच माल की आवाजाही को किफायती बनाना चाहता है. चाबहार बंदरगाह इस क्षेत्र के लिए एक कमर्शियल ट्रांजिट सेंटर के तौर पर काम करेगा.
ऑरिजनल कॉन्ट्रैक्ट की जगह लेगा नया समझौता
नया समझौता ऑरिजनल कॉन्ट्रैक्ट को रिप्लेस करेगा और यह 10 वर्षों के लिए वैध होगा. मूल समझौते में केवल चाबहार बंदरगाह का शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल शामिल था और इसे हर साल रिन्यू किया जाता था. 2016 में शाहिद बेहस्थी टर्मिनल को विकसित करने के लिए ईरान, भारत और अफगानिस्तान के बीच एक समझौते पर साइन किए गए थे.
भारतीय व्यापारियों को होगा फायदा
चाबहार बंदरगाह पिछले दिनों भारत और ईरान के बीच बातचीत में प्रमुखता से उठा था और बंदरगाह में भारत की भूमिका के विस्तार पर भी चर्चा हुई थी. इसके अलावा, यह बंदरगाह सेंट्रल एशिया में भारतीय व्यापारियों और निवेशकों के लिए भी फायदेमंद रहेगा.
बेहतर कनेक्टिविटी
सोनोवाल ने पहले कहा था कि बंदरगाह मध्य एशियाई क्षेत्र को दक्षिण एशियाई बाजारों से जोड़ता है. यह व्यापार और आर्थिक सहयोग और दोनों भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है. मध्य एशियाई क्षेत्र के ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट क्षमता के साथ-साथ उनके लॉजिस्टिक नेटवर्क में भी सुधार किया जाएगा.
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