Mutual Funds: कैसे करें न्यू फंड ऑफर (NFO) का चुनाव?

Mutual Funds अपनी स्कीम न्यू फंड ऑफर (NFO) के ज़रिए लॉन्च करते हैं. ये कुछ नहीं बस शुरुआती समय है, जब एक नया फंड निवेशकों की सदस्यता के लिए खुलता है. कई निवेशक इसे शेयर का IPO समझते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. MF की न्यूनतम मूल्य कीमत इक्विटी शेयरों की बात करें तो जिस […]

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म्यूचुअल फंड का नेट एसेट वैल्यू (NAV) फंड के पोर्टफोलियो के प्रदर्शन पर निर्भर करता है.

म्यूचुअल फंड का नेट एसेट वैल्यू (NAV) फंड के पोर्टफोलियो के प्रदर्शन पर निर्भर करता है.

Mutual Funds अपनी स्कीम न्यू फंड ऑफर (NFO) के ज़रिए लॉन्च करते हैं. ये कुछ नहीं बस शुरुआती समय है, जब एक नया फंड निवेशकों की सदस्यता के लिए खुलता है. कई निवेशक इसे शेयर का IPO समझते हैं लेकिन ऐसा नहीं है.

MF की न्यूनतम मूल्य कीमत
इक्विटी शेयरों की बात करें तो जिस कीमत पर निवेशकों को शेयर पेश किए जाते हैं, वह काफी महत्वपूर्ण है. मूल्य की तुलना कंपनी के संभावित कीमत से की जाती है और इससे ही लिस्टिंग के बाद शेयरों का प्रदर्शन तय होता है. Mutual Funds के लिए स्थिति अलग है क्योंकि इसकी अपनी कोई कीमत नहीं होती है. म्यूचुअल फंड का नेट एसेट वैल्यू (NAV) फंड के पोर्टफोलियो के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. यही वजह है कि NFO के लिए 10 रुपए का न्यूनतम मूल्य कुछ अन्य फंड के NAV से बेहतर या बुरा नहीं है. असल में ये इससे कहीं अधिक हो सकता है.

आइए एक आसान उदाहरण की मदद से इसे समझते हैं. एक मौजूदा फंड लेते हैं जिसका NAV 20 रुपए है. इसके पास शेयरों का एक पोर्टफोलियो भी है. अब एक नया फंड 10 रुपए के नए ऑफर (NFO) के साथ आता है. अपनी आसानी के लिए हम ये मान लेते हैं कि नए फंड का पोर्टफोलियो मौजूदा फंड के जैसा ही है. अगर पूरे पोर्टफोलियो का मूल्य 10% बढ़ जाता है, तो नए फंड का NAV 10 से बढ़कर 11 रुपए हो जाएगा. अब मौजूदा फंड का NAV भी 20 से बढ़कर 22 रुपए हो जाएगा. जैसा कि देखा जा सकता है, निवेशक दोनों फंड में एक बराबर प्रतिशत रिटर्न कमा रहे हैं क्योंकि दोनों ही फंड का पोर्टफोलियो एक जैसा है. इसका मतलब है कि नेट एसेट वैल्यू का फंड के रिटर्न पर कोई असर नहीं पड़ता है. असल में, अगर मौजूदा फंड बेहतर परफॉर्म करता है तो NAV में ज़्यादा बढ़ोतरी होगी.

पोर्टफोलियो निर्माण
यही वजह है कि Mutual Funds के लिए पोर्टफोलियो बनाना सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. यह निवेशक के लिए एक और मुश्किल खड़ी करता है जब वे NFO का चुनाव कर रहे होते हैं. मौजूदा फंड के लिए एक पोर्टफोलियो पहले से मौजूद है. इसलिए, निवेशक होल्डिंग्स को देख सकते हैं और फिर अनुमान लगा सकते हैं कि क्या इनमें रिटर्न पाने की क्षमता है या नहीं.

दूसरी ओर, NFO के पास कोई मौजूदा निवेश और पोर्टफोलियो नहीं है, इसलिए निवेशक के पास कोई ऐसा आधार नहीं है जिस पर वो अपने रिटर्न की अपेक्षा के बारे में अनुमान लगा सके. उन्हें पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए फंड मैनेजर का इंतज़ार करना होगा और तब उन्हें देखना होगा कि ये अच्छा काम कर पाएगा या नहीं. इस वजह से NFO में निवेश को लेकर एक संशय पैदा होता है.

कैसे करें फैसला?
निवेशक को अपना निर्णय युनिट्स की वैल्यू के आधार पर नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें मिलने वाले रिटर्न पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. निर्णय करने के लिए पोर्टफोलियो को देखना और इसे कैसे मैनेज किया जाएगा जानना ज्यादा ज़रूरी है क्योंकि इसी के आधार पर सफलता मिलेगी. मूल्य में प्रतिशत वृद्धि भी फैसला करने के लिए एक ज़रूरी पहलू है और इसलिए इस पर ध्यान देना ज़रूरी है.

(अर्नव पंड्या- लेखक Moneyeduschool के संस्थापक हैं)

Published - January 23, 2021, 07:28 IST