जब आप बीमार होते हैं तो क्या करते हैं? डॉक्टर के पास जाते हैं प्रिसक्रिप्शन लिखावकर दवाई खरीदते हैं लेकिन कई लोग सीधा खुद ही अपना इलाज करने लगते हैं. इंटरनेट से सर्च करके दोस्तों से पूछा और केमिस्ट की दुकान पर दवाई खरीदने पहुंच गए? ऐसे में कोई दवाई सूट न करे या बीमार का हाल ठीक न हो और मामला बिगड़ जाए तो क्या करेंगे? इसीलिए डॉक्टर की सलाह से ही दवाई लेनी चाहिए. ऐसे ही म्यूचुअल फंड में जब आप निवेश करते हैं तो विशेषज्ञ आपके निवेश की सेहत का ख्याल रखते हैं जिन्हें कहा जाता है है फंड मैनेजर.
ये वो एकसपर्ट हैं जो आर्थिक बाजार और अर्थव्यवस्था को समझते हैं. म्यूचुअल फंड की स्कीम तैयार करते हैं और तय करते हैं कि उनकी स्कीम किन स्टॉक्स या दूसरे एसेट में निवेश करेगी. उनका लक्ष्य होता है कि कैसे रिटेल निवेशकों के लिए रिस्क और रिटर्न में संतुलन रखा जाए ताकि निवेशक को कम रिस्क में ज्यादा रिटर्न की कमाई हो सके. फंड मैनेजर को फंड हाउस का दिल और दिमाग कहा जाता है. फंड मैनेजर अपने रिसर्च, एनालिसिस और अनुभव के आधार पर MF स्कीम तैयार करते हैं. स्कीम में कौन सा स्टॉक कब खरीदा जाए, कब बेचा जाए ये सारे फैसले फंड मैनेजर ही लेता है.
Morningstar Investment Adviser India की सालाना रिपोर्ट बताती है कि भारत में 428 फंड मैनेजर हैं. म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री 44.82 लाख करोड़ रुपए की है और इसमें हो रहे करोड़ों के निवेश को यही फंड मैनेजर हैंडल करते हैं.
फंड मैनेजर का महत्व
फंड मैनेजर मार्केट ट्रेंड, आर्थिक दशा और निवेशक के लक्ष्य के आधार पर निवेश की रणनीति बनाते हैं. फंड मैनेजर की नजर आपके पोर्टफोलियो के प्रदर्शन पर रहती है. अगर आप नुकसान पर बैठे हैं तो रिस्क मैनेजमेंट टेक्नीक का इस्तेमाल करके फंड मैनेजर आपको बेहतर रिटर्न दिलाने की हर संभव कोशिश करता है.
Moneyfront के सीईओ Mohit Gang कहते हैं कि एक अनुभवी फंड मैनेजर पोर्टफोलियो में समय पर फैसले ले सकता है, कदम उठा सकता है, तेजी से अलग कैटेगरी में निवेश बढ़ाता या घटाता है. इन सबसे बढ़कर वह रिस्क को एडजस्ट कर बेहतर रिटर्न दिला सकता है. गंग कहते हैं, निवेशकों के पास नियमित रूप से कैलकुलेशंस के हिसाब से ये सब करने के लिए समय और क्षमता नहीं होती. फंड मैनेजर आंकड़ों और जानकारी के आधार पर फैसले लेते हैं.
फंड मैनेजर बदलने पर आपका निवेश कैसे प्रभावित हो सकता है?
पिछले साल HDFC AMC के शीर्ष फंड मैनेजर और CIO (Chief Investment Officer) प्रशांत जैन ने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया था. इस खबर से निवेशकों में खलबली पैदा हो गई. निवेशकों में इस बात की चिंता थी कि इसका उनके म्यूचुअल फंड के निवेश पर क्या असर होगा?
म्यूचुअल फंड हाउस के फंड मैनेजर में बदलाव से निवेशकों के भरोसे पर काफी असर पड़ सकता है. अमूमन फंड मैनेजर का किसी फंड हाउस से निकलने का असर स्कीम स्ट्रैटजी और उसके रिटर्न पर भी पड़ता है. फंड मैनेजर के बदलने जैसे शॉर्ट टर्म के बदलावों के आधार पर आनन-फानन में स्कीम से निकलने जैसे कदम न उठाएं. निवेशक को अपने निवेश के लक्ष्य को देखते हुए फैसला लेना चाहिए. ये समझें कि निवेश के लक्ष्य और फंड के लक्ष्य आपके रिस्क लेने की क्षमता और वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप हैं या नहीं. फंड हाउस की स्थिरता और रेपुटेशन को ध्यान में रखें. जानी-मानी एसेट मैनेजमेंट कंपनी के पास मैनेजर में बदलाव की स्थिति से निपटने के लिए कारगर व्यवस्था हो सकती है. मैनेजमेंट में बदलाव के असर को लेकर आप उलझन में हैं तो किसी वित्तीय सलाहकार की मदद लें जो आपकी निवेश की खास जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आपको सलाह दे सके.
केवल फंड मैनेजर के नाम पर न जाएं
म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन के लिहाज से फंड मैनेजर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है लेकिन केवल इसके आधार पर निवेश का फैसला नहीं लेना चाहिए. ये याद रखना जरूरी है कि चाहे आप फंड मैनेजर के जरिए निवेश करें या पैसिव फंड के जरिए जिसमें फंड मैनेजर की भूमिका सीमित होती है, कोई भी म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट आपकी पूंजी की सुरक्षा या फिक्स्ड रिटर्न की गारंटी नहीं देता.
म्यूचुअल फंड निवेश चुनते समय स्कीम का पिछला प्रदर्शन, फंड का उद्देश्य एवं रणनीति, एक्सपेंस रेशियो, फंड का साइज, रिस्क मैनेजमेंट, टैक्स देनदारी, डायवर्सिफिकेशन, फंड हाउस की रेपुटेशन और इन्वेस्टमेंट पीरियड जैसी चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए.
मनी9 की सलाह
फंड मैनेजर किसी भी MF स्कीम की सफलता या असफलता के लिए जिम्मेदार होता है. फंड हाउस की स्कीम को चुनने के पहले फंड मैनेजर का अनुभव, उसके जरिए मैनेज की गई स्कीम का रिटर्न और उसके निवेश करने के स्टाइल पर जरूर रिसर्च करें. शॉर्ट टर्म के बजाए लंबी अवधि के परफार्मेंस पर गौर करें.