Liquid Funds: मई महीने में महामारी का जो रूप देखा गया वो भयावह था. कई राज्यों में लॉकडाउन लगाए गए, लोगों ने मेडिकल जरूरतों से लेकर लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों के कारण घटी कमाई की वजह से कैश सहेजना शुरू किया. इसका असर, उन फंड्स पर भी दिखा जो शॉर्ट टर्म के लिए हैं. इन फंड्स में अक्सर निवेश का कोई लॉक-इन नहीं होता और पैसे निकालने पर बड़े एक्जिट लोड भी नहीं लगते. पैसा निकालने वालों में बड़ी कंपनियां भी शामिल रहीं. अब आप ये सोच सकते हैं कि आपके म्यूचुअल फंड से बड़े रिडेंप्शन होने पर क्या आपके निवेश पर असर पड़ेगा?
चिंता इस बात से पनप सकती है कि पिछले साल अप्रैल में फ्रैंकलिन टेंपलटन इंडिया ने अपने 6 डेट फंड यही वजह बताते हुए बंद किए कि रिडेंप्शन बढ़ने से दबाव बना और वे उतनी जल्दी फंड के ऐसेट को लिक्विडेट नहीं कर पा रहे थे और उन्हें फंड को बंद करना पड़ा.
पहले आंकड़े देख लेते हैं. एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (AMFI) के जारी आंकड़ों के मुताबिक मई 2021 में डेट फंड में 44,512.04 करोड़ रुपये का आउटफ्लो हुआ है. वहीं, इस कैटेगरी से लिक्विड फंड (Liquid Funds) से 45,447.36 करोड़ रुपये की निकासी की गई है और ओवरनाइट फंड से 11,573.01 करोड़ रुपये का आउटफ्लो देखने को मिला. गौरतलब है कि अप्रैल महीने में ही लिक्विड फंड्स में 41,507.47 करोड़ रुपये का निवेश आया था.
ये डेट फंड की वो कैटेगरी हैं जिनमें अकसर लोग इमरजेंसी के लिए पैसा डालते हैं क्योंकि इन फंड्स से पैसा निकालना आसान होता है और रिस्क कम.
अब, आपके निवेश की बात. अगर आपका निवेश भी इन फंड्स में है तो क्या बढ़ती निकासी से आपको चिंता होनी चाहिए? सैमको ग्रुप के रैंक एमएफ (Rank MF) के प्रमुख ओम्केश्वर सिंह का मानना है कि निवेशकों को लिक्विड फंड से बढ़ते रिडेंप्शन से चिंता करने की बात नहीं.
वे कहते हैं, “महामारी के समय में कॉरपोरेट्स को भी अपने बिजनेस के लिए कैशफ्लो की जरूरत रही जिसकी आपूर्ति के लिए उन्होंने लिक्विड फंड्स (Liquid Funds) से पैसा निकाला. बाकी निवेशकों को इससे चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस कैटेगरी का निवेश ऐसे विकल्पों में होता है जिनकी मैच्योरिटी जल्दी होती है. मार्केट रेगुलेटर SEBI ने फ्रैंकलिन मामले के बाद AMC से लिक्विड फंड में अधिकतम 30 दिन की मैच्योरिटी वाले विकल्पों में ही निवेश करने के कहा है. वहीं, ओवरनाइट फंड्स में मैच्योरिटी सिर्फ एक दिन की होती है. मैच्योरिटी की वजह से अन्य निवेशकों को चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि ये बेहद छोटी अवधि के लिए ही है.”
वहीं, इक्विटी फंड्स में रिडेंप्शन भी बिजनेस साइकल की वजह से हो सकता है. ओम्केश्वर सिंह कहते हैं कि निवेशकों को अपने फंड का निवेश साइकल और निवेश की रणनीति समझनी चाहिए. वे कहते हैं कि डेट फंड के प्रदर्शन पर रिडेंप्शन का असर नहीं होगा. वे कहते हैं कि बाजार के रिकॉर्ड स्तर पर होने से मार्जिन ऑफ सेफ्टी कम हो गया है और संभव है कि कई लोग मुनाफा लेने के लिए पैसे निकाल रहे हैं.
गौरतलब है कि, डेट फंड के लिए सेबी ने अधिकतम जोखिम क्षमता के लिए भी नया मैट्रिक्स लाया है – पोटेंशियल रिस्क क्लास मैट्रिक्स. इसके तहत फंड हाउस को पहले ही बताना होगा कि वे कितना रिस्क ले सकते हैं. इसके अंतरगत फंड में इंटरेस्ट रेट से जुड़े जोखिम में क्लास-I का मतलब होगा सबसे कम रिस्क और क्रेडिट रिस्क के हिसाब से क्लास A सबसे कम जोखिम वाला फंड होगा.
वहीं, कई AMC ने गिल्ट और बॉन्ड फंड में कैश का हिस्सा बढ़ाया है. IDFC AMC ने जानकारी दी है कि उन्होंने इस कैटेगरी के एक्टिव फंड में 14 जून 2021 तक 20 से 35 फीसदी कैश हिस्सा रखा है. IDFC AMC के फिक्स्ड-इनकम हेड सुयष चौधरी ने कहा है, “पिछले कुछ दिनों में आंकलन करने के बाद हमने अपने एक्टिव बॉन्ड फंड पोर्टफोलियो में कैश का हिस्सा बढ़ाया है. बॉन्ड यील्ड्स में हाल की गिरावट दिखाती है कि रिजर्व बैंक के उठाए कदम का असर दिख रहा है. वहीं ऊंची महंगाई की आशंका के चलते भी ये कदम उठाना सही लगा”