निवेश में इन गलतियों से बचके ! डायवर्सिफिकेशन है जरूरी लेकिन इसमें ये 5 भूल कभी ना करें

Diversification: डायवर्सिफिकेशन का मतलब है सारा पैसा एक जगह ना लगाकर अलग-अलग विकल्पों में लगाना ताकि जोखिम घटे, लेकिन ऐसा करने में कहीं ये गलतियां ना कर बैठें

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ULIP में अच्छा रिटर्न पाने के लिए कम से कम 10 से 15 वर्षों तक रुकने की जरूरत होती है.

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Investment Diversification: फाइनेंशियल प्लानिंग की शुरुआत जितनी जल्दी की जाए वेल्थ उतना बड़ा जमा कर पाते हैं. निवेश में पहला कदम ये है कि आप अपना जोखिम पहचानें – निवेश किए जा रहे पैसे से कितना समय दूर रह सकते हैं यानी आपको इस पैसे की निवेश के समय तक जरूरत ना पड़े, क्या घाटा हुआ तो रिकवरी के लिए समय दे सकते हैं या नहीं. वहीं दूसरा कदम ये कि आप अपने लिए लक्ष्य तय करें. लक्ष्य तय करने में दो पहलू हैं – पहला समय के आधार पर. छोटी अवधि के निवेश करना है तो अलग इन्वेस्टमेंट विकल्प और लंबे समय के लिए करना है तो अलग विकल्प. दूसरा पहलू है इसी लक्ष्य को किसी सपने से जोड़ना – गाड़ी, गिफ्ट, घर, रिटायरमेंट, बच्चों की पढ़ाई.

इस सब के बाद आता है तीसरा कदम जो निवेशक के लिए रिस्क कम करने से लेकर वेल्थ जुटाने का जरिया बनता है. ये है डायवर्सिफिकेशन (Diversification). फाइनेंशियल एडवाइजर्स निवेशक के पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन जरूरी मानते हैं. डायवर्सिफिकेशन का मतलब है सारा पैसा एक जगह ना लगाकर अलग-अलग विकल्पों में लगाना ताकि जोखिम घटे और आपको अगर पैसे निकालने की जरूरत हो तो आप इसका कुछ हिस्सा निकाल सकें. लेकिन इस डायवर्सिफिकेशन में कई गलतियां होने की संभावना रहती हैं.

अगर आप निवेश विकल्पों को नहीं समझते हैं तो आपके एडवाइजर की सलाह जरूर लेनी चाहिए. प्लानिंग करते वक्त डायवर्सिकेशन सही होना चाहिए. इन गलतियों से जरूर बचें – 

1. एक ही AMC के फंड्स में पैसा लगाना

कई बार देखा गया है कि निवेशक का जिस बैंक में खाता है उसी की AMC के सारे फंड्स चुन लिए होते हैं. तो वहीं कई निवेशकों का भरोसा एक ही एसेट मेनेजमेंट कंपनी पर इतना होता है कि वे सभी स्कीमें उसी की चुनना चाहते हैं. ऐसा करने से आपको नुकसान हो सकता है. याद है ना फ्रैंकलिन टेंपलटन के क्रेडिट रिस्क का मामला? हालांकि AMC पूरी तरह फेल नहीं हुई है लेकिन उसी फंड हाउस के सभी क्रेडिट रिस्क फंड में निवेशकों का पैसा अटक गया था. अलग-अलग फंड हाउस और फंड मैनेजर की निवेश स्ट्रैटेजी अलग होती है. इसलिए जरूरी है कि आप AMC के स्तर पर भी डायवर्सिफिकेशन (Diversification) करें.

2. एक ही एसेट क्लास में निवेश करना

डायवर्सिफिकेशन के मुताबिक अपको निवेश का कुछ हिस्सा इक्विटी में, कुछ डेट जैसे सुरक्षित विकल्पों में, महंगाई और संकट की स्थिति में काम आने वाले गोल्ड में और कुछ फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे निवेश विकल्पों में रखना चाहिए. एक ही एसेट क्लास में निवेश से या तो आप महंगाई को मात देने वाले रिटर्न नहीं हासिल कर पाएंगे या फिर जरूरत से ज्यादा ही रिस्क ले लेंगे. सारा पैसा इक्विटी में लगाया तो किसी बड़ी गिरावट के वक्त या तो रिकवरी का इंतजार करना होगा या फिर पैसों की जरूरत होने पर घाटे के साथ समझौता.

3. एक ही सेक्टर में निवेश करना

आपको अगर टेक्नोलॉजी सेक्टर पसंद है तो इसका मतलब ये नहीं कि आप सारा निवेश एक ही सेक्टर में कर दें. आपके निवेश में सिर्फ एक सेक्टर में निवेश से जोखिम बढ़ जाता है. मान लीजिए आपने सारा निवेश एक सेक्टर में किया और कोरोना जैसे किसी ब्लैक स्वान इवेंट ने इसी सेक्टर पर सबसे ज्यादा चोट की तो आपके पैसे पर घाटा होने का खतरा ज्यादा होता है. सही डायवर्सिफिकेशन का मतलब है कि आप अलग-अलग सेक्टर में अपना रिस्क बांट रहे हैं. वहीं आप इसमें मार्केट कैप के लिहाज से भी निवेश बांट सकते हैं. बड़ी कंपनियों में सुरक्षा के लिहाज से और जोखिम क्षमता होने पर बड़े रिटर्न देने वाले स्मॉलकैप में.

4. जरूरत से ज्यादा डायवर्सिफिकेशन

अब जब डायवर्सिफिकेशन (Diversification) पर आए तो इतने शेयरों या इतने फंड में पैसा डाल दिया कि ट्रैक करना ही मुश्किल हो गया. जरूरत से ज्यादा फंड खरीद लेना भी एक बड़ी गलती है. बाजार में कौन से सेक्टर चल रहे हैं, कहां आपका कितना पैसा लगा हुआ है, कहां आपको बदलाव करना है ये फैसले लेना मुश्किल हो जाएगा. फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ढेर सारे फंड खरीदना पूरा बाजार खरीदने जैसा है – आपको बाजार जैसे ही रिटर्न मिलेंगे, बाजार से बेहतर नहीं.

5. निवेश में रीबैलेंसिंग

निवेश लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. ये जिंदगी भर आपका साथ तभी देगी जब आप इसका साथ निभाते चलें. सीधा मतलब ये कि  डायवर्सिफिकेशन में आपको उम्र और जिंदगी के पड़ाव के साथ ही बदलाव करना होगा. 25 साल की उम्र में निवेश शुरू किया तब तय किया डायवर्सिफिकेशन अलग होगा जबकि 45 की उम्र की जरूरतें अलग हैं. इसलिए पोर्टफोलियो की समीक्षा और उस हिसाब से रीबैलेंसिंग जरूरी है. आपकी जिम्मेदारियां बढ़ेंगी, जोखिम लेने की क्षमता कम या बढ़ सकती है, बोनस मिल सकते हैं, लक्ष्य बदल सकते हैं और रिटायरमेंट से लेकर नौकरी जाने की स्थिति तक के लिए तैयारी पूरी चाहिए. इसलिए जरूरी है कि आप समय समय पर अपने पोर्टफोलियो के डायवर्सिफिकेशन में बदलाव करें.

Published - April 28, 2021, 04:27 IST