ULIP: फाइनेंशियल प्लानिंग में एक ऐसा निवेश प्रोडक्ट है जो सबको उलझाए रखता है – लेना चाहिए या नहीं. कई लोग ये सोचकर इंश्योरेंस लेने से कतराते हैं कि इसके प्रीमियम पर दिया पैसा वापस नहीं मिलेगा और यही सोचकर ऐसे प्रोडक्ट खरीदते हैं जिनमें इंश्योरेंस के साथ ही इन्वेस्टमेंट भी हो. इस निवेश से उनको भरोसा रहता है कि प्रीमियम का पैसा वापस मिलेगा. लेकिन, फाइनेशियल एक्सपर्ट्स इन्वेस्टमेंट में इंश्योरेंस और इंश्योरेंस में इन्वेस्टमेंट की मिलावट को आपकी फाइनेंशियल सेहत के लिए नुकसानदेह बताते हैं.
मिक्स प्रोडक्ट खरीदने पर वे मानते हैं कि इससे ना इंश्योरेंस की जरूरत पूरी हो पाती है ना निवेश की. लेकिन, अब अगर आपने यूलिप यानी युनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान जैसे मिक्स प्रोडक्ट में निवेश किया है और अपने एडवाइजर की सलाह लेकर सरेंडर करना चाहते तो आपको इसपर कितना चार्ज या पेनल्टी देना पड़ेगा? या हो सकता है, कि कोविड के कारण पड़ी किसी आर्थिक जरूरत के लिए आपको पैसों की जरूरत हो, और इस पैसे को लिक्विडेट करना हो तो सरेंडर वैल्यू क्या होगी?
पहले समझें कि यूलिप एक लंबी अवधि का प्लान है. इसमें निवेश पर कुछ रकम इंश्योरेंस प्रीमियम के लिए कटता है और कुछ रकम निवेश के लिए जाती है. ULIP पर कई तरह के चार्ज लगते हैं जैसे फंड एलोकेशन चार्ज, फंड मैनेजमेंट फीस, पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन फीस. ये कई बार NAV अडजेस्टमेंट या युनिट कैंसलेशन के जरिए लिया जाता है. ये डिडक्शन पहले साल ज्यादा रहता है और समय के साथ घटता है. यानी, लॉक-इन पीरियड खत्म होने तक ये चार्ज घट जाते हैं.
कुल मिलाकर ये कि लॉक-इन तक आपने इस प्रोडक्ट पर लगने वाले अधिक्तर चार्ज, जो फ्रंट लोडेड होते हैं, वो चुका दिए होते हैं. लॉक-इन के बाद निकलने पर आपको ज्यादा फायदा नहीं होगा.
पॉलिसी रोकने के लिए आपको सरेंडर रिक्वेस्ट देना होगा. हर कंपनी सरेंडर पर अलग-अलग चार्ज लगाती है. पॉलिसी रोकने पर आपको सरेंडर वैल्यू मिलती है. ये रकम सरेंडर करने की तारीख पर आपके फंड की वैल्यू के आधार पर तय की जाती है.
लेकिन, ध्यान रहे कि 5 साल के लॉक-इन से पहले आपको कोई रकम वापस नहीं मिलेगी. पॉलिसी की अवधि से पहले आप निवेश रोक सकते हैं. साल 2010 में किए बदलाव के मुताबिक नए ULIP प्लान में लॉक-इन अवधि 3 साल से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया है.
सरेंडर की अर्जी देने के बाद इंश्योरेंस कंपनी डिस्कंटिन्युएंस चार्ज काटेगी. बची हुई रकम को डिस्कंटिन्यूड पॉलिसी फंड में ट्रांसफर किया जाता है जहां इस रकम पर ब्याज की कमाई होती रहेगी. लेकिन, इस रकम पर फंड मैनेजमेंट चार्ज भी लगेगा.