शेयर बाजार में पिछले साल की बड़ी गिरावट से तेज रिकवरी ने रिटेल निवेशकों आकर्षित किया. लेकिन सवाल ये है कि रिटेल निवेशक आगे भी शेयर बाजार में डटे रहेंगे या नहीं? निःसंदेह ही रिटेल निवेशकों के लिए आगे सफर काफी लंबा है. वित्त वर्ष 2020 में भारत में इक्विटी (Equities) और डिबेंचर्स में परिवारों की कुल सेविंग्स का 3.7 फीसदी हिस्सा निवेशित था. वहीं, वित्त वर्ष 2021 में ये बढ़कर 4.8 से 5 फीसदी रहने का अनुमान है. या यू कहें कि वित्त वर्ष 2020 में ये जीडीपी का 0.4 फीसदी था तो वित्त वर्ष 2021 में ये बढ़कर 0.7 फीसदी रहने का अनुमान है. लेकिन अमेरिका से तुलना करें तो वहां ये 36.5 फीसदी है – यानी भारत में भागीदारी बढ़ाने की बड़ी संभावनाएं हैं.
डेटा दर्शाता है कि वित्त वर्ष 2021 में रिटेल निवेशकों की संख्या में 1.42 करोड़ की बढ़त हुई है. अप्रैल से मई 2021 के बीच और 44.70 लाख रिटेल निवेशकों के खाते खुले हैं.
NSE के डेटा के मुताबिक स्टॉक एक्सचेंज पर रिटेल निवेशकों का कुल टर्नओवर मार्च 2020 के 39 फीसदी से बढ़कर 45 फीसदी हो गया है.
ये अनुमान है कि अन्य बचत विकल्पों में घटते ब्याज दर से आम निवेशकों ने शेयर बाजार का रुख किया है. साथ ही, महामारी के संकट में लोग घर पर ज्यादा समय बिता रहे हैं जिससे उनका रुझान इक्विटी में बढ़ा है. ये वो निवेशक हैं जिन्होंने पिछले साल मार्च में सेंसेक्स को 28,265 के स्तर पर देखा था और अब उसे 53,000 की रिकॉर्ड ऊंचाई छूते हुए भी देख रहे हैं.
दलाल स्ट्रीट पर फिलहाल रिटेल निवेशक काफी खुश होंगे – उन्होंने पिछले 15 महीनों में सबसे ज्यादा तेजी देखी है. ये देखना होगा कि रिटेल निवेशकों की भागीदारी सिर्फ थोड़े समय के लिए है या लंबी अवधि में भी उनके निवेश के व्यवहार में बदलाव देखा जाएगा.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि रिटेल निवेशकों की बढ़ती भागीदारी से भारत की इंफ्रा जरूरतों के लिए रिसोर्स का बड़ा पूल तैयार हो सकात है.
वहीं, बाजार में बिग बुल कहलाने वाले राकेश झुनझुनवाला के मुताबिक, ” सिर्फ बुल मार्केट ही चलता नहीं रह सकता, कुछ गिरावट भी आती है. लेकिन छोटी गिरावट से शेयर बाजार में घबराना नहीं चाहिए. भारत में लंबी अवधि में ग्रोथ की उम्मीद बनी हुई है क्योंकि जीएसटी, रेरा, कृषि कानून, खनन से जुड़े कानूनों में रिफॉर्म किया गया है.”