विनायक सप्रेः नौकरी को वनवास मानने और दोहों में मुक्ति ढूंढने वाले निवेशक

विनायक सप्रे से बात करते वक्त कई दफा तो आपको शक होने लगता है कि आप वाकई किसी ऐसे शख्स से बात कर रहे हैं जो एक दिग्गज इनवेस्टर है.

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सापरे कहते हैं कि वित्तीय आजादी का मतलब है कि आप आंकड़ों से मुक्त हो जाएं.

सापरे कहते हैं कि वित्तीय आजादी का मतलब है कि आप आंकड़ों से मुक्त हो जाएं.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

ये संत करीब की पंक्तियां हैं. इनमें कहा गया है कि आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए. इन्हीं शब्दों पर चलते हुए मुंबई के इनवेस्टर, लेखक और शिक्षक विनायक सप्रे ने उम्र के शुरुआती दौर में ही निवेश का सफर शुरू कर दिया था और आज वे पैसे कमाने की आपाधापी से मुक्ति पा चुके हैं.

46 साल के विनायक सप्रे म्यूचुअल फंड्स डिस्ट्रीब्यूटर भी हैं.

दोहों से लगाव

उनका दोहों से इतना लगाव है कि उन्होंने अपनी किताब का नाम ही “दोहानोमिक्स” रखा है.

तो क्या निवेश के सफर में आध्यात्म भी कामयाबी की राह खोल सकता है? अगर आप सप्रे से मिलेंगे तो आपको ये हकीकत जान पड़ेगा.

मोह से दूर

म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर और इनवेस्टर के साथ ही सप्रे का इनमें कोई मोह भी नहीं है. वे आराम से बोलते हैं. कई दफा तो आपको शक होने लगता है कि आप वाकई किसी ऐसे शख्स से बात कर रहे हैं जो एक दिग्गज इनवेस्टर है और इसी से आजीविका कमाता है.

आंकड़ों से ऊपर

वे आंकड़ों और प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठ चुके हैं. वे कहते हैं, “वित्तीय आजादी का मतलब है कि आप आंकड़ों से मुक्त हो जाएं. आंकड़े आपको प्रेरित करते हैं, लेकिन इनसे घमंड, दुख, ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा भी पैदा होती है.”

सप्रे कहते हैं, “वित्तीय आजादी से आपको शांति और खुशी मिलनी चाहिए. आपको इसके लिए बस लगातार निवेश करते रहने की जरूरत है.”

पैसे कमाने के झंझट से मुक्ति

सप्रे के लिए वित्तीय आजादी का मतलब है कि आप पैसे कमाने की आपाधापी से बाहर निकल जाएं और आप पर दूसरों जितना कमाने का दबाव न रहे. वे मानते हैं कि जब तक आप पिछली कमाई से आज की कमाई की तुलना करते रहेंगे तब तक आप वित्तीय रूप से आजादी नहीं हासिल कर पाएंगे.

वे स्टॉक मार्केट की जटलिताओं को नहीं समझते हैं और म्यूचुअल फंड्स या दूसरे निवेश विकल्पों से पैसा इकट्ठा करना चाहते हैं.

मैनेजमेंट ग्रेजुएट सप्रे कहते हैं, “मैंने जल्दी निवेश करना शुरू कर दिया था. अपनी पहली सैलरी के साथ मैंने बैंक में एक रेकरिंग डिपॉजिट शुरू किया था, ये 2000 की बात है. मैंने इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में भी पैसा लगाना शुरू किया. मैं खुशनसीब था कि 2008 तक बाजार एक ही दिशा में आगे बढ़ा.”

जरूरतें, इच्छाएं और इमोशंस

सप्रे हर किसी को जरूरतों और इच्छाओं में फर्क समझने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं, “इमोशंस को कंट्रोल करने के लिए ये बेहद जरूरी है.”

एक दशक पहले अपना कॉरपोरेट जॉब छोड़ने वाले सप्रे ने करीब और रहीम के दोहों के सहारे 50 लाख लोगों को आसान भाषा में वित्तीय साक्षर बनाने की मुहिम शुरू की. वे बीरबल और तेनालीराम की कहानियों का भी इसके लिए इस्तेमाल करते हैं.

निवेश का मुख्य जरिया

विनायक सप्रे ने अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा म्यूचुअल फंड्स से हासिल किया है. वे कहते हैं कि उन्हें कंपाउंडिंग से बड़ा फायदा हुआ है.

उन्होंने इंसेटिव्स और बोनस का इस्तेमाल होम लोन चुकाने में किया है. वे कहते हैं, “मैंने नौकरी को हमेशा वनवास के जैसे देखा है. मैंने माना है कि नौकरी कभी 14 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. मैं खुशनसीब हूं कि मैं इस वनवास से सही वक्त पर निकलने में सफल रहा.”

निवेशकों के लिए सबक

विनायक सप्रे मानते हैं कि आपको वित्तीय दुनिया के बारे में सबकुछ जानने की जरूरत नहीं है. अगर आपको चीजें नहीं पता तो किसी एक्सपर्ट की मदद लीजिए.

वे कहते हैं कि लोग बचकानी गलतियां करके अपनी पूंजी गंवा देते हैं.

Published - June 30, 2021, 01:24 IST