सिद्धार्थ बोथरा एक धार्मिक शख्स हैं. लेकिन, उनका धर्म पूंजी की सुरक्षा है. उनका लक्ष्य लंबे वक्त में पूंजी में इजाफा करना है. वे वॉरेन बफेट और उनके सहयोगी चार्ली मंगेर, जॉर्ज सोरोस, माइकल पोर्टर, होवार्ड मार्क्स को फॉलो करते हैें.
बोथरा मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी के फंड मैनेजर हैं. उन्हें स्टॉक चुनने की काबिलियत के लिए जाना जाता है. एक कारोबारी परिवार से आने वाले बोथरा में कारोबारी साइकल्स और स्टॉक्स की समझ प्राकृतिक तौर पर है.
अपने कॉलेज के दिनों से ही इक्विटी रिसर्च पर उन्होंने फोकस शुरू कर दिया था. ऐसे में इस बात में कोई अचरज नहीं होना चाहिए कि उनके प्रबंधन वाले फोकस्ड 25 फंड ने बेंचमार्क सेंसेक्स के मुकाबले 111 बेसिस पॉइंट ज्यादा अच्छा परफॉर्म किया है.
मनी9 ने सिद्धार्थ बोथरा से उनके शेयरों के चुनाव के तरीके और रणनीति को समझने की कोशिश की है. पेश है उनके साथ बातचीत के अंशः
मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी की इनवेस्टमेंट फिलॉसफी क्या है?
हमारी निवेश की फिलॉसफी के केंद्र में पूंजी की सुरक्षा और लंबे वक्त में संपत्ति खड़ी करना है. हमारा मानना है कि लंबे वक्त में पूंजी तैयार करने के लिए कंपाउंडिंग की ताकत और धैर्य की जरूरत होती है साथ ही आपको कैपिटल प्रोटेक्शन को एक धर्म के तौर पर देखना चाहिए.
हम क्वॉलिटी कारोबार और मैनेजमेंट टीमों पर पूरा फोकस करते हैं. हम स्टॉक्स को चुनते वक्त कुछ चीजों पर नजर डालते हैं. इन्हें हम क्वांटिटेटिव और क्वॉलिटेटिव एनालिसिस से तय करते हैं. ऐसे में कई स्टॉक्स के साथ शुरुआत करते हैं और फिर इन्हें अपने पैरामीटर्स के हिसाब से छांटते जाते हैं.
इसके बाद हम इनके प्राइस को और इनमें मिलने वाले रिटर्न को देखते हैं. हम फंड के मैंडेट के मुकाबले 20-24 स्टॉक्स को पोर्टफोलियो में शामिल करते हैं.
क्या आप इस फिलॉसफी पर काम करते हैं कि कुछ ब्लू-चिप स्टॉक्स को ताउम्र होल्ड करके रखना चाहिए?
इसका जवाब हां भी है और नहीं भी. कई दफा कुछ स्टॉक्स लंबे वक्त तक अच्छा प्रदर्शन करते हैं. ऐसी कंपनियों के शेयरों को बेचने का फैसला लेने की प्रक्रिया को बेहतर करने की जरूरत है. हालांकि, इन कंपनियों में भी आपको प्राइस-वैल्यू इक्वेशन को हर तय अवधि में फिर से आकलित करने की जरूरत होती है. साथ ही कई दूसरे फैक्टर्स पर भी गौर करना चाहिए.
आपके इनवेस्टमेंट गुरु कौन हैं और फिलहाल आप कौन सी किताब पढ़ रहे हैं?
हालांकि, कई किताबें और इनवेस्टर्स मौजूद हैं. लेकिन, इनमें सबसे अहम बफेट और मंगेर हैं. इनके लेख, चिट्ठियों और कई किताबों से आपको काफी आइडिया मिलता है. इनसे मुझे अपने विचारों को शक्ल देने में मदद मिली है. इसके अलावा, मैं डैनियल कैनमैन एंड सोरोस की बिहेवियरल फाइनेंस, होवार्ड मार्क्स एंड एनी ड्यूक की अंडरस्टैंडिंग रिस्क, अश्वत दामोदरन की वैल्यूएशंस और माइकल पोर्टर की बिजनेस स्ट्रैटेजीज से काफी प्रभावित रहा हूं.
फिलहाल में रिसर्ड सी कू की द होली ग्रेल ऑफ मैक्रो इकनॉमिक्स और रोरी सदरलैंड की अलकेमी पढ़ रहा हूं.
निवेशकों को आपकी क्या सलाह है?
रिटेल और इंडीविजुअल इनवेस्टर्स में पिछले कुछ वर्षों में काफी उभार हुआ है. आज इनमें से कई बेहद जटिल तरीके से निवेश करते हैं और इनकी निवेश को लेकर जागरूकता और समझदारी काफी उच्च स्तर की है. इसकी मुख्य वजह टेक्नोलॉजी है. साथ ही लोगों की सूचनाओं और रिसर्च तक पहुंच बढ़ी है.
हालांकि, इन्हें क्वालिटी और लंबे वक्त की बिजनेस ओनरशिप के लिहाज से सोचना चाहिए. इसके अलावा, धैर्य और कंपाउंडिंग की ताकत को समझना चाहिए.