सेबी बोर्ड विलय और अधिग्रहण मानदंडों, गोल्ड एक्सचेंजों पर चर्चा करेगा

यह लिस्टेड कंपनियों के टेकओवर को अधिक जटिल बनाता है और निवेशकों को नियंत्रित हिस्सेदारी हासिल करने से भी रोकता है.

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डिजिटल गोल्ड उत्पाद इलेक्ट्रॉनिक रसीदें हैं जो निवेशकों द्वारा सोने में निवेश को साबित करती हैं यह वास्तविक सोना नहीं हैं

डिजिटल गोल्ड उत्पाद इलेक्ट्रॉनिक रसीदें हैं जो निवेशकों द्वारा सोने में निवेश को साबित करती हैं यह वास्तविक सोना नहीं हैं

सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) 28 सितंबर को होने वाली बैठक में कई निवेशक-अनुकूल उपायों (investor-friendly measures) को मंजूरी देने के लिए तैयार है. इनमें लिस्टेड कंपनियों के लिए विलय और अधिग्रहण (M&As) को आसान बनाने और नए जमाने की टेक कंपनियों के प्रमोटरों के लिए सुपीरियर वोटिंग राइट्स (एसवीआर) में बदलाव जैसे कदम शामिल है. इसके अलावा सोशल स्टॉक एक्सचेंज और गोल्ड स्टॉक एक्सचेंज के इस्टैब्लिशमेंट को फैसिलिटेट करना भी शामिल है. इकोनॉमिक टाइम्स ने इस डेवलपमेंट से जुड़े दो लोगों के हवाले से इसे लेकर रिपोर्ट पब्लिश की है.

सेबी बोर्ड ओपन ऑफर के बाद कंपनियों की डीलिस्टिंग की प्रोसेस को आसान बनाने के प्रपोजल पर भी काम करेगी. अधिग्रहणकर्ता (acquirer) को दोनों प्रक्रियाओं को एक साथ शुरू करने की अनुमति देकर सेबी इसे आसान बनाना चाहता है. 2010 में सी अच्युतन की अध्यक्षता वाली टेकओवर रेगुलेशन एडवाइजरी कमेटी ने सिफारिश की थी कि ओपन ऑफर के बाद डीलिस्टिंग की अनुमति दी जाए. सेबी बोर्ड ने उस समय इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया था.

टेकओवर को आसान बनाना

टेकओवर के नियमों के तहत, एक ओपन ऑफर के बाद, इनकमिंग एक्वायरर की हिस्सेदारी 75% या 90% को भी पार कर सकती है. मिनिमम पब्लिक होल्डिंग नॉर्म्स को पूरा करने के लिए, एक्वायरर को 12 महीनों के भीतर होल्डिंग को 75% से कम करना होगा. दूसरी ओर, डीलिस्टिंग नियमों के लिए बायर को कंपनी को प्राइवेट लेने के लिए 90% तक पहुंचने की आवश्यकता होती है. यह लिस्टेड कंपनियों के टेकओवर को अधिक जटिल बनाता है और निवेशकों को नियंत्रित हिस्सेदारी हासिल करने से भी रोकता है.

अधिग्रहणकर्ता को डीलिस्ट करने के इरादे का करना होगा खुलासा

सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों तरह के अधिग्रहण के मामले में अधिग्रहणकर्ता को डीलिस्ट करने के इरादे का खुलासा करना होगा. यदि अधिग्रहणकर्ता डिलिस्टिंग करने का इच्छुक है, तो अधिग्रहणकर्ता की ओर से डिफरेंशियल प्राइजिंग को प्रपोज किया जाना चाहिए – एक ओपन ऑफर प्राइज जो मिनिमम टेकओवर प्राइज से कम न हो और उपयुक्त प्रीमियम के साथ एक हायर प्राइज.

अगर डीलिस्टिंग ऑफर सफल रहता है, तो अधिग्रहणकर्ता को सभी शेयरधारकों को डीलिस्टिंग प्राइज पे करना होगा. हालांकि, अगर यह विफल रहता है, तो सभी शेयरधारकों को ओपन ऑफर प्राइज पे करना होगा. इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स को भी टेकओवर प्राइज और डीलिस्टिंग प्राइज पर अपनी राय देनी होगी. आरबीएसए एडवाइजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर और को-हेड वैल्यूएशन रविशु शाह ने कहा, ‘फ्रेमवर्क में प्रस्तावित संशोधन से अधिग्रहणकर्ता को फायदा होगा.

Published - September 27, 2021, 04:49 IST