क्‍या T+1 निपटान प्रणाली निवेशकों के लिए है फायदेमंद? यहां समझिए पूरा गणित

ट्रेड प्रणाली को छोटा करने से बाजार की लिक्विडिटी और ट्रेडिंग टर्नओवर को बढ़ावा मिलेगा.

  • Team Money9
  • Updated Date - September 22, 2021, 12:12 IST
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सेबी द्वारा जारी होने वाली नई ट्रेड प्रणाली की आलोचना सबसे ज्यादा फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) के द्वारा की जा रही है. PC: Pexels

सेबी द्वारा जारी होने वाली नई ट्रेड प्रणाली की आलोचना सबसे ज्यादा फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) के द्वारा की जा रही है. PC: Pexels

ट्रेड प्रणाली एक फर्म की सिक्योरिटीज को खरीदने की पूरी प्रक्रिया को संदर्भित करता है. यह आर्डर प्लेसमेंट से शुरू होकर फाइनल सेटलमेंट पर खत्‍म होता है. शेयर बाजारों की ट्रेड प्रणाली हर देश में अलग-अलग होती है. भारतीय शेयर बाजार में अभी साल 2021 तक T+2 ट्रेड प्रणाली का पालन किया जाएगा. जिसका मतलब है कि आर्डर प्लेसमेंट से लेकर फाइनल सेटलमेंट तक की समयावधि दो दिनों की है, लेकिन हाल ही में सिक्योरिटीज एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने T+1 ट्रेड प्रणाली लाने की घोषणा कर दी है.

आपको बता दें कि 1 जनवरी, 2022 से मार्केट रेगुलेटर निवेशकों को अपने विवेक पर T+1 ट्रेड प्रणाली का विकल्प चुनने का विकल्प प्रदान करेगा. ट्रेड प्रणाली को छोटा करने के लिए निवेशकों की लंबे समय से मांग के कारण यह बदलाव लाया जा रहा है.

किसी स्क्रिप के लिए T+1 ट्रेड प्रणाली को चुनने के बाद स्टॉक एक्सचेंज को अनिवार्य रूप से न्यूनतम छह महीने की अवधि के लिए इसे जारी रखना होगा. उसके बाद यदि एक्सचेंज T+2 ट्रेड प्रणाली में वापस जाने का इरादा रखता है, तो वह बाजार को एक महीने का अग्रिम नोटिस देकर ऐसा कर सकता है. बाद में कोई भी स्विच (T+1 से T+2 या इसके विपरीत) न्यूनतम नोटिस अवधि के अधीन होगा. साथ ही T+1 और T+2 सेट्लमेंट्स के बीच कोई नेटिंग नहीं होगी.

T+1 ट्रेड प्रणाली से किस प्रकार होगा निवेशकों को फायदा

जैसा कि एक्सपर्ट्स का अनुमान है ट्रेड प्रणाली के समय में नए बदलाव से निवेशकों को कई सारे लाभ मिलने वाले हैं. पहला और सबसे महत्वपूर्ण लाभ रिटेल निवेशकों को यह होगा कि यह निवेशकों को लिक्विडिटी प्रदान करेगा, क्योंकि उन्हें बेचे गए शेयरों के लिए एक दिन पहले अपने खाते में पैसे मिल जाएंगे. साथ ही निवेशकों को एक और दिन के लिए अपनी नकदी से फायदा उठाने का मौका मिलेगा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि T+1 ट्रेड प्रणाली ग्राहकों के लिए मार्जिन की जरूरत को कम करने में भी मदद कर सकती है और इस प्रकार भारत के इक्विटी बाजारों में रिटेल निवेश को बढ़ावा दे सकती है.

नया मैकेनिज्म तेज और अधिक कैपिटल रोटेशन की सुविधा भी देगा. जिसका एक अच्छा प्रभाव देश के इकनोमिक स्टेटस पर पड़ेगा. नयी ट्रेड प्रणाली की तेज गति का ऑक्शन मार्केट पर भी प्रभाव पड़ेगा. ट्रेडिंग मार्किट में अगर कोई सेलर सेटलमेंट की तारीख तक स्टॉक्स को डिलीवर नहीं करता है. तो उन्हें नीलाम कर दिया जाता है. अभी तक नीलामी का चक्र T+3 दिनों पर है जो कि नए मैकेनिज्म के बाद T+2 दिनों तक कम हो जाएगा.

ट्रेड प्रणाली को छोटा करने से बाजार की लिक्विडिटी और ट्रेडिंग टर्नओवर को बढ़ावा मिलेगा. इस प्रकार ऐसे कई पर्याप्त लाभ हैं जो नयी छोटी ट्रेड प्रणाली से प्राप्त किए जा सकते हैं. हालांकि कुछ चुनौतियां भी हैं जिनका सामना नई ट्रेड प्रणाली को करना पड़ सकता है.

यह होने वाली हैं छोटी ट्रेड प्रणाली की चुनौतियां

सेबी द्वारा जारी होने वाली नई ट्रेड प्रणाली की आलोचना सबसे ज्यादा फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) के द्वारा की जा रही है. क्योंकि टाइम जोन के अलग-अलग होने के कारण एफपीआई (FPI) के लिए फंक्शनल प्रॉब्लम बढ़ सकती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस तरह के ट्रांजीशन को सफल होने के लिए बहुत सटीक और समन्वित बदलावों की जरूरत होगी. वहीं इसमें अधिक समय भी लगेगा. एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि जनवरी 2022 की सेबी की समयसीमा तक ट्रेड प्रणाली को छोटा करने के लिए सभी जरूरी उपायों को शुरू करना और सुव्यवस्थित करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं नज़र आ रहा है.

पहले भी हो चुका है ट्रेड प्रणाली में परिवर्तन

ट्रेड प्रणाली का छोटा होना भारत में पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भारत में 2002 तक T+5 दिन की ट्रेड प्रणाली का चलन हुआ करता था. फिर वर्ष 2003 में ट्रेड प्रणाली को घटाकर T+2 दिन कर दिया गया था. 2003 से अब तक, देश उसी पैटर्न का अनुसरण कर रहा है जिसे 2022 में वैकल्पिक T+1 दिनों के लिए आगे संशोधित किया जाना है.

बाजारों में बदलाव की रहती है गुंजाइश

सभी इंडस्ट्रीज और बाजारों में, वृद्धि और परिवर्तन की गुंजाइश हमेशा रहती है और ट्रेडिंग मार्केट अलग नहीं है. वर्षों से सेबी ने ट्रेडिंग मार्केट की एफिशिएंसी और कामकाज को बढ़ाने के लिए परिश्रम के साथ काम किया है और पूरे बाजार की गुणवत्ता में सुधार किया है.

निवेशकों द्वारा लंबे समय से ट्रेड प्रणाली को छोटा करने की मांग की गई है और उचित विचार-विमर्श के बाद ही सेबी ने इसे आधिकारिक बदलाव के रूप में घोषित किया है, जबकि थ्योरेटिकल रूप से समयावधि में कमी करना ज्यादातर फायदेमंद लगता है. इसकी व्यवहारिकता की जांच 2022 में इसके पूर्ण और व्यावहारिक कार्यान्वयन के बाद ही की जा सकती है.

ट्रेड प्रणाली में नए परिवर्तन को अधिकांश परिवर्तनों की तरह कुछ लाभ और कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, यह समय और आवश्यकतानुसार संशोधनों के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इन्वेस्टमेंट चुनौतियों से पार पाने और सौदे के लाभों को बढ़ाने के लिए बाध्य हैं.

(लेखक मास्टर कैपिटल सर्विसेज के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं, व्यक्त विचार निजी हैं)

Published - September 22, 2021, 12:11 IST