ग्लोबलाइजेशन के दौर में हम कई विदेशी सामानों से घिरे हुए हैं. हाथ में चीनी फोन, शरीर पर अमेरिकी ब्रांड के जींस-टीशर्ट, पैरों में जर्मनी के जूते. हमें खुद एहसास नहीं हो पाता है कि हम असल में कितने विदेशी माल का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे ही इन्वेस्टमेंट की दुनिया में भी निवेशक विदेशी शेयरों को भुनाने की कोशिश करने लगे हैं.
ऐसा इसलिए कि पोर्टफोलियो में विविधता आती है. एक बाजार की कमजोरी के दौरान दूसरे की मजबूती का फायदा मिल सकता है. विदेशी शेयरों में पैसा लगाना जितना रिस्की होता है, उतने ही अच्छे रिटर्न भी मिलता है.
एक्सिस म्यूचुअल फंड की दिसंबर 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते दशक में निफ्टी ने 10.74 प्रतिशत के दर पर कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) रिटर्न दिए हैं. इस दौरान निफ्टी और MSCI वर्ल्ड (ग्लोबल मार्केट) के 70:30 मिश्रण वाले पोर्टफोलियो ने 12.29 फीसदी का CAGR रिटर्न दिया है.
अमेरिकी बाजार में कई तेजी से उछाल मारने वाली कंपनियां हैं, जो अपने-अपने सेक्टर में बड़े बदलाव लाने के लिए मशहूर हैं. विदेशी प्लेटफॉर्म पर निवेश करने से कमाई के मौके बढ़ जाते हैं. रिटर्न के साथ घरेलू मुद्रा के बदले विदेशी करंसी की महंगाई को भुनाने का मौका भी मिल जाता है.
भारत में बैठा शख्स इन सभी लाभ का हिस्सा कैसे बन सकता है, आइए जानते हैं.
डायरेक्ट इन्वेस्ट करने की सुविधा कुछ वेबसाइटें देती हैं. इसके लिए विदेशी ब्रोकर से पार्टनरशिप वाले घरेलू ब्रोकर के साथ डीमैट अकाउंट खोला जा सकता है. नहीं तो सीधे विदेशी ब्रोकर के साथ भी अकाउंट खोल सकते हैं.
हालांकि, विदेशी शेयरों में खुद से निवेश करना हमेशा आसान नहीं होता. शेयरों के डॉलर के भाव बिकने की वजह से जब इन्हें रुपया में बदला जाता है, तो सौदा महंगा पड़ जाता है. बदलते भाव को मैनेज कर पाना भी शुरुआती निवेशकों के लिए मुश्किल हो सकता है.
एक पॉपुलर तरीका है ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) के जरिए निवेश करना. इसके लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत होती है. ETF में किसी घरेलू या विदेशी ब्रोकर के जरिए इन्वेस्ट किया जा सकता है. इसमें मिनिमम डिपॉजिट बैलेंस का झंझट नहीं होता.
कुछ ETF एक साथ कई मार्केट के स्टॉक अपने कलेक्शन में शामिल करते हैं. इन फंड्स में मार्केट कैप, जगह, निवेश के तरीके और सेक्टर के लिहाज से विविधता पेश की जाती है.
इंटरनेशनल फंड के जरिए निवेश करने के कई लाभ मिलते हैं. इसके लिए आपको कोई डीमैट या ट्रेडिंग अकाउंट बनाने की जरूरत नहीं. इसमें निवेश करते वक्त आपको मुद्रा की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव और इन्वेस्टमेंट लिमिट को लेकर चिंता करने की जरूरत भी नहीं है. जिस फंड के जरिए आप निवेश कर रहे हैं, वह इन सबको मैनेज करेगा.