इस हफ्ते में बाजार (Stock Market) ने एक और नया कीर्तिमान बनाया. बीते साल निवेशकों के लिए जो एक सपना था, अब वो बेंचमार्क पार हो चुका है. ये रफ्तार और ट्रेंड सिर्फ भारत में देखने को नहीं मिल रहे हैं बल्कि पूरी दुनिया में इसका असर है. अमेरिका और चीनी अर्थव्यवस्थाओं में डिमांड बेस्ड महंगाई का दौर देखा जा रहा है. लेकिन भारत, इसके विपरीत, मांग में कमी के बजाय ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण बड़े पैमाने पर 6% महंगाई की दर में इजाफा देखने को मिल रहा है. इस बिंदु पर निश्चित रूप से ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि सप्लाई की कमी के कारण कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है.
ऐसा माना जाता है कि बढ़ती महंगाई एक बेहतर अर्थव्यवस्था का पर्याय है और जब महंगाई थोड़ी अधिक स्तर पर होती है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं तो इक्विटी अच्छा प्रदर्शन करता है. हालांकि आरबीआई का ब्याज दर में इजाफा न करने का फैसला बेहतर साबित हो रहा है.
इस बार महंगाई और बॉन्ड यील्ड के आसपास थोड़ा विरोधाभास देखा जा रहा है, जिसमें पहले इजाफा देखा जा रहा था, अब गिरावट दर्ज हो रही है. बॉन्ड यील्ड के बढ़ने और घटने दोनों के अपने अपने फायदे-नुकसान हैं. इसके अलावा, अन्य दूसरी जगहों पर भी सावधानी के संकेत देखने को मिल रहे हैं, जैसे कि जीएसटी कलेक्शन में गिरावट के रूप में हैं. जीडीपी अनुपात में भारत के कर्ज को बढ़ाने के लिए 1-ट्रिलियन का निशान अब 14 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है.
जबकि ये मैक्रोस पॉजिटिव से खराब आर्थिक दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हैं, पिछले एक साल बाजार जो स्थिर रहा, क्योंकि मैक्रोस की परवाह किए बिना अपना सफर जारी रखा. जो निवेशक पैसा कमाना चाहते थे, जब दूसरों को डर था या जो सभी इशारों को नजरअंदाज करते हुए रैली में फंस गए थे, उन्हें भारी रिटर्न से काफी फायदा हुआ. यह निवेश के हिसाब से शानदार सबक रहा कि कैसे पैसा बनाया जा सकता है.
शेयर मार्केट के साथ जुड़ने के बाद IPOs में जबरदस्त ग्रोथ देखते बन रही है. प्रमोटरों और PE निवेशक को आकर्षक वैल्यूएशन और ब्याज से लाभ मिल रहा है. रिटेल निवेशक ओवर सब्सक्रिप्शन संख्या का गलत अंदाज लगा लेते हैं और मांग से उत्साहित हो जाते हैं. वो इस तथ्य को नजरअंदाज करते है कि कुल आकार का केवल एक छोटा सा हिस्सा रिटेल के लिए अलॉट किया जाता है, जिसका अर्थ ये होता है कि आपूर्ति पहले से ही कम है.
प्रमोटर और PE निवेशक के लिए IPOs तभी तक फायदेमंद साबित होता है जब तक कोई कीमत चुकाने को तैयार रहे. यह पैटर्न रिटेल और इंस्टिट्यूशन निवेशक दोनों के लिए सही है, जो “लिस्टिंग लाभ” के लिए IPO की तलाश में हैं. साथ ही एक प्रीमियम पर एक उपयुक्त खरीदार पोस्ट लिस्टिंग खोजने में लगे रहते हैं. “ग्रेटर फूल थ्योरी” के रूप में गढ़े गए इस शातिर तर्क का मतलब है कि लोग तब तक बढ़ी हुई कीमतों पर बेचने में सक्षम हैं जब तक कि कोई और भी अधिक कीमत पर खरीदने को तैयार है (द ग्रेटर फूल).
यह साइकिल तब तक जारी रहता है जब तक लोग शेयरों में पैसा लगाना जारी रखते हैं.
इस हफ्ते निफ्टी 50 एक सकारात्मक प्वाइंट पर बंद हुआ. लेकिन बाजार 400 अंकों के सीमित दायरे में बंधा रहा. बाजार में कम वक्त में अधिक खरीदारी हो रही है और यह रैली प्रमुख अपट्रेंड की तुलना में धीमी गति से आई है. 15600 जोन से एक मजबूत समर्थन हासिल हुआ है और जब तक यह टूट नहीं जाता तब तक हम व्यापारियों को सर्तक रहने की जरूरत है. 15,950 के स्तर पर निर्णायक रूप से बंद होने पर उम्मीद जताई जा सकती है कि 16200 अंक भी सेंसेक्स भविष्य में हासिल कर लेगा.
इस सप्ताह के अंत तक तिमाही परिणामों में तेजी आने और हालात पूरी तरह से बेहतर होने की संभावना जताई जा रही है. यह देखते हुए कि इंडिया इंक पिछले साल पहली तिमाही में पूरी तरह से लॉकडाउन में गुजरा था, इसलिए उन हालातों में व्यावसायिक गतिविधि को देखते हुए साल-दर-साल आधार पर परिणामों की तुलना करना बुद्धिमानी नहीं मानी जाएगी. नतीजतन, मैनेजमेंट के जरिए दिए गए दृष्टिकोण को सिक्वेंशियल कम्पेरिजन कंबाइंड के आधार पर देखे तो भविष्य को लेकर कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है.
सबसे जरूरी बात है कि निवेशकों को इन स्तरों पर ज्यादा अग्रेसिव होकर खरीदारी नहीं करनी चाहिए, बेंचमार्क इंडेक्स वित्तीय वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 7% लौट रहा है. और ब्रॉड बेस्ड इंडेक्स छप्पर फाड़ कर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस हफ्ते निफ्टी 50 सप्ताहांत में 15923.40 पर 1.49% की बढ़ोतरी के साथ बंद हुआ.
(इस आर्टिकल के लेखक सैमको सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च हेड हैं. ये विचार उनके निजी हैं)