निवेशकों के फायदे के लिए SEBI के इन हालिया 9 बदलावों के बारे में आपको पता है?

हालिया वक्त में निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए सेबी (SEBI) ने कई कदम उटाए हैं. यहां हम आपको इन्हीं के बारे में बताने जा रहे हैं.

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image: Pixabay

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SEBI: कोविड-19 संक्रमण फैलना शुरू होने के बाद से बड़ी तादाद में नए निवेशक स्टॉक मार्केट (stock markets) से जुड़ रहे हैं. 2 जुलाई 2021 तक रजिस्टर्ड इनवेस्टर्स की संख्या बढ़कर 7,22,28,575 हो गई है जो कि सालाना आधार पर 41.07 फीसदी की बढ़ोतरी दिखाता है. ये संख्या थाइलैंड, युनाइटेड किंगडम, फ्रांस या सिंगापुर की आबादी से भी ज्यादा है. इस तरह के हालात में मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) की भूमिका काफी व्यापक हो गई है. इसे देखते हुए हालिया वक्त में निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए सेबी ने कई कदम उटाए हैं. यहां हम आपको इन्हीं के बारे में बताने जा रहे हैं.

पीक मार्जिन

रिटेल इनवेस्टर्स को सुरक्षा देने के लिए सेबी (SEBI) ने जुलाई 2020 में पीक मार्जिन नियमों का ऐलान किया था.

SEBI के नोटिफिकेशन के मुताबिक, पीक मार्जिन (Peak Margin) रूल को चार चरणों में लागू किया जाना था.

दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच ट्रेडर्स को कम से कम 25% पीक (अधिकतम) मार्जिन कायम रखना था. दूसरे चरण में मार्च 2021 से मई 2021 के बीच इस मार्जिन को बढ़ाकर 50% कर दिया गया था.

1 जून से लागू होने वाले तीसरे चरण में ट्रेडर्स के लिए 75 फीसदी पीक मार्जिन (Peak Margin) को ब्रोकर के पास रखना जरूरी कर दिया गया है.

आखिरी और चौथे चरण में यानी सितंबर 2021 तक क्लाइंट्स का दिन में ब्रोकर्स के पास 100 फीसदी पीक मार्जिन होना जरूरी होगा.

AT1 बॉन्ड

परपेचुअल बॉन्ड्स इस वक्त सुर्खियों में बने हुए हैं. इसकी वजह यह है कि प्रत्यक्ष या म्यूचुअल फंड्स के जरिए पोर्टफोलियो में इनके एक्सपोजर ने निवेशकों के मन में कई सवाल पैदा कर दिए हैं.

यस बैंक के केस को देखते हुए रेगुलेटर (SEBI) ने इन बॉन्ड्स और इनकी वैल्यूएशन पर गहराई से नजर डाली है. इसका नतीजा ये हुआ है कि म्यूचुअल फंड्स के इन बॉन्ड्स में निवेश को सीमित कर दिया गया है और साथ ही इनकी वैल्यूएशन को लेकर भी बदलाव किए गए हैं.

एडिशनल टियर 1 बॉन्ड्स को AT1 बॉन्ड भी कहा जाता है. इन्हें बैंक जारी करते हैं. ये परपेचुअल बॉन्ड्स का एक उदाहरण हैं. सेबी की रिवाइज्ड गाइडलाइंस के मुताबिक, बासिल III AT1 बॉन्ड्स की रेसीड्युअल मैच्योरिटी 31 मार्च 2022 तक 10 साल होगी.  1 अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 तक ये 20 साल और इसके बाद के छह महीने के लिए 30 साल होगी.

स्किन इन द गेम – प्रमुख कर्मचारी

इनवेस्टर्स के हितों की रक्षा के लिए मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने नियम बनाया है कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के प्रमुख कर्मचारियों की न्यूनतम 20% सैलरी/सुविधाएं म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) यूनिट्स के तौर पर दी जाएं.
नया नियम उन फोरेंसिक रिपोर्ट्स के बाद आया है जिनमें आरोप लगाया गया था कि फ्रैंकलिन टेंपलटन के कुछ उच्च अधिकारियोंऔर उनके परिवार के सदस्यों ने छह स्ट्रेस्ड स्कीमों से अपने इनवेस्टमेंट का एक हिस्सा अप्रैल 2020 में इन स्कीमों से निकासी पर रोक लगाए जाने के ठीक पहले निकाल लिया था.
AMC के प्रमुख एंप्लॉयीज में चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO), चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर (CIO), चीफ रिस्क ऑफिसर (CRO), चीफ इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी ऑफिसर, चीफ ऑपरेशन ऑफिसर, फंड मैनेजर, कंप्लायंस ऑफिसर, सेल्स हेड, इनवेस्टर रिलेशंस ऑफिसर, दूसरे डिपार्टमेंट्स के हेड और एसेट मैनेजमेंट कंपनी के डीलर शामिल हैं.
स्किन इन द गेम- म्यूचुअल फंड हाउस
सेबी (SEBI) ने म्यूचुअल फंड रेगुलेशंस में भी संशोधन किया है. इसमें AMC से कहा गया है कि वे जब भी कोई म्यूचुअल फंड स्कीम लॉन्च करते हैं तब हमेशा एक निश्चित रकम अपने खुद के खाते में भी रखें.
सेबी ने कहा है कि AMC को स्किन इन द गेम के तौर पर इस तरह का निवेश योगदान करना होगा जो कि अलग-अलग अनुपात में होगा. ये म्यूचुअल फंड स्कीम में मौजूद रिस्क पर आधारित होगा.

REITs and InvITs में रियायत

सेबी (SEBI) बोर्ड ने न्यूनतम आवेदन मूल्य और कारोबार ‘लॉट’ को लेकर रीट और इनविट नियमनों में संशोधन को मंजूरी दे दी है.

इसमें कहा गया है ‘‘संशोधित न्यूनतम आवेदन मूल्य 10,000 से 15,000 के दायरे में होना चाहिए और संशोधित कारोबारी लॉट एक यूनिट हो सकता है.’’

मौजूदा नियमों के तहत आरंभिक सार्वजनिक निर्गम और अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम के लिये न्यूनतम आवेदन मूल्य इनविट के मामले में कम-से-कम एम लाख रुपये और रीट के लिये 50,000 रुपये है.

वहीं लॉट यानी यूनिट की संख्या के मामले में प्रारंभिक सूचीबद्धता के समय कारोबारी लॉट 100 यूनिट रखी गई है. जबकि अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम के अंतर्गत प्रत्येक लॉट में इतनी संख्या में यूनिट होने चाहिए जितनी कि प्रारंभिक पेशकश के समय थी.

इंडिपेंडेंट डायरेक्टर

एक और प्रमुख घटनाक्रम में सेबी (SEBI) ने स्वतंत्र निदेशकों या इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति, इन्हें हटाने और इनके वेतन-भत्तों को लेकर नियमों में बदलाव किया है. इस तरह से इन निदेशकों पर प्रमोटरों का प्रभाव खत्म करने की कोशिश की गई है.

सेबी ने कहा है कि इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्ति, पुनः नियुक्ति और हटाने का काम एक स्पेशल रेजॉल्यूशन के जरिए होना चाहिए जिसमें प्रस्ताव के समर्थन में 75 फीसदी वोट होने चाहिए. पहले ये सीमा 51 फीसदी थी.

इनसाइडर ट्रेडिंग

इनसाइडर ट्रेडिंग पर लगाम लगाने के लिए सेबी (SEBI) ने इस बाबत जानकारी देने वालों को दिए जाने वाले रिवॉर्ड की रकम बढ़ाने का फैसला किया है. पहले ये रकम 1 करोड़ रुपये थी, जो कि अब बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये कर दी गई है.

एक्रेडिटेड इनवेस्टर

अपनी हालिया बोर्ड मीटिंग में सेबी (SEBI) ने एक्रेडिटेड इनवेस्टर्स के लिए एक फ्रेमवर्क पेश किया है. इसमें हाई-वैल्यू इनवेस्टमेंट व्हीकल्स के लिए रियायतें हैं.

सेबी के कंसल्टेशन पेपर के मुताबिक, एक्रेडिटेड इंडीविजुअल इनवेस्टर ऐसे निवेशक होते हैं जो कि तीन में से कम से कम एक शर्त को पूरा करते हैं. पहला, नेटवर्थ 7.5 करोड़ रुपये हो और इसमें आधी फाइनेंशियल एसेट्स हों.

दूसरा, निवेशक की सालाना कमाई 2 करोड़ रुपये से ज्यादा हो. तीसरा निवेशक की सालाना कमाई 1 करोड़ रुपये हो और नेटवर्थ 5 करोड़ रुपये से ज्यादा हो और इसकी आधी रकम फाइनेंशियल एसेट्स में लगी हो.

इनवेस्टमेंट एडवाइजर एडमिनिस्ट्रेशन एंड सुपरवाइजरी बॉडी

इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स के एजेंडे को निवेशकों के हित के साथ जोड़ते हुए और मिससेलिंग पर लगाम लगाने के लिए सेबी (SEBI) ने BSE एडमिनिस्ट्रेशन एंड सुपरविजन (BASL) को रजिस्टर्ड इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स (RIA) को मान्यता देने का काम सौंपा है.

Published - July 4, 2021, 03:04 IST