अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों (Urban Co-Operative banks) ने आरबीआई (RBI) से गोल्ड लोन पर लगी सीलिंग को दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख रुपए करने की मांग की है. इन बैंकों कहना है कि इससे छोटे कर्ज लेने वाले लोगों की जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी. गोल्ड लोन वह लोन है जो सोने के एवज में दिया जाता है. इस समय अर्बन कोपरेटिव बैंकों (UCBs) को 12 महीनों के लिए बुलेट रिपेमेंट और ईएमआई (EMI) रिपेमेंट स्कीम्स के जरिए गोल्ड लोन देने की मंजूरी मिली हुई है.
क्यों कर रहे मांग?
भारत में गोल्ड लोन का कारोबार तेजी के साथ बढ़कर छह लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. इसमें बैंकों की 80 फीसद और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) की 20 फीसद हिस्सेदारी है. सालाना आधार पर इस कारोबार में 14 फीसद की वृद्धि दर्ज की जा रही है. इस वृद्धि का लाभ उठाने के लिए अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक गोल्ड लोन की सीमा को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.
लोन चुकाने की अवधि
इस बारे में नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज (एनएएफसीयूबी) के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता का कहना है कि यूसीबी की ओर से कई बार किए गए आग्रह के बाद ही आरबीआई ने बुलेट भुगतान सिस्टम की अनुमति दी थी. इसके तहत दो लाख का लोन दिया जाता है, लेकिन उधारकर्ताओं की जरूरत को देखते हुए इसकी सीमा बढ़ाई जानी चाहिए. इसके अलावा रीपेमेंट अवधि भी बढ़ाए जाने की मांग की गई है. बुलेट रीपेमेंट और ईएमआई के लिए भुगतान की अवधि को क्रमशः 24 महीने से बढ़ाकर 36-48 महीने किया जाना चाहिए.
क्या हैं मौजूदा नियम?
आरबीआई के मार्च 2021 के आंकड़ों के अनुसार देश में 1534 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक थे. केंद्रीय बैंक ने साल 2007 में बुलेट भुगतान प्रणाली को मंजूरी दी थी. इसके तहत गोल्ड पर एक लाख रुपए तक का लोन देने का प्रावधान है. हालांकि बाद में साल 2014 में इस लिमिट को बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दिया गया था, जिसमें रीपेमेंट के लिए 12 महीने का वक्त तय किया गया था. उधारकर्ताओं को लोन खत्म होने के समय मूलधन और ब्याज का भुगतान करना होता है. अगर वे मासिक किस्तों यानी ईएमआई के तहत लोन का भुगतान करते हैं तो हर महीने के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाती है.
गोल्ड ज्वेलरी पर लोन में हुआ इजाफा
आंकड़ों के अनुसार कमर्शियल बैंकों के पोर्टफोलियो में गोल्ड ज्वेलरी पर दिए जाने वाले लोन में इजाफा हुआ है. अप्रैल 2023 तक इसमें 20.4 फीसद का इजाफा हुआ है, जिसके चलते ये 89,665 करोड़ रुपए का हो गया है जबकि साल 2022 में ये महज 74,473 करोड़ रुपए का था.