मोहित ने अपना काम शुरू करने के लिए बैंक से लोन लिया था लेकिन काम चला नहीं. अब वह ईएमआई भी नहीं भर रहे हैं. सोच रहे हैं को एकमुश्त सेटलमेंट कर दूंगा तो फायदा हो जाएगा. मोहित की तरह करोड़ों लोग अपनी जरूरत के लिए लोन लेते हैं. कई बार नौकरी जाने, कारोबार में घाटा होने या बीमारी जैसे हालात खड़े हो जाते हैं. ऐसे में कर्ज लेने वाला व्यक्ति लोन चुकाने की स्थिति में नहीं रहता है. ऊपर से ब्याज और पेनाल्टी बढ़ती जाती है. आदमी कर्ज के जंजाल में फंस जाता है. तब बैंक वन टाइम सेटलमेंट (OTS) ऑफर करते हैं. हाल ही में वित्त मंत्रालय ने पब्लिक सेक्टर बैंकों से 20 लाख से एक करोड़ रुपए तक के लोन डिफॉल्टरों से आपसी सहमति से वन टाइम सेटलमेंट करने का निर्देश दिया है ताकि छोटे फंसे कर्ज को निपटाया जा सके. मोहित इसी OTS की बात कर रहा है, लेकिन क्या OTS के साथ जाना समझदारी है? आइए जानते हैं?
वन टाइम सेटलमेंट (OTS) क्या है?
जब कोई व्यक्ति 90 दिन से ज्यादा यानी तीन महीने से ऊपर लोन की EMI नहीं देता है तो बैंक या वित्तीय संस्थान ईएमआई (EMI) नहीं चुकाने की उससे वजह पूछते हैं. व्यक्ति के दावे को बैंक या फाइनेंस कंपनियां बारीकी से परखती हैं. अगर उन्हें लगता है कि वाकई आपकी क्षमता कर्ज चुकाने की नहीं है तब लोन सेटलमेंट की पेशकश की जाती है.
कितनी मिलती है राहत?
वन टाइम लोन सेटलमेंट में बैंक की कोशिश कम से कम प्रिंसिपल अमाउंट सिंगल पेमेंट में जमा कराकर अकाउंट सेटल करने की होती है. ऐसी स्थिति में बैंक ब्याज, पेनाल्टी या लीगल खर्च माफ कर देते हैं. सेटलमेंट की रकम का फैसला कर्जदार के पैसे चुकाने की क्षमता और परिस्थिति पर गौर करने के बाद लिया जाता है. सेटलमेंट की रकम भरने के बाद टोटल आउटस्टेंडिंग अमाउंट और सेटलमेंट की रकम में जो अंतर आता है उसे बैंक राइट ऑफ करके लोन को बंद कर देते हैं.
उदाहरण के लिए, मोहित ने 2 साल पहले 10 लाख रुपए का लोन लिया था. अभी उसके लोन का कुल बकाया सात लाख रुपए है. उसके ऊपर ब्याज, पेनाल्टी और लीगल खर्च मिलाकर कुल 7.50 लाख रुपए बनते हैं. बैंक वन टाइम सेटलमेंट में मोहित से 5 लाख रुपए जमा करके लोन रफा-दफा करने की पेशकश कर सकता है. बाकी 2.50 लाख रुपए को राइट ऑफ कर देगा और नुकसान के रूप में बही खाते में दिखा देगा.
क्या है जोखिम?
आपको अभी यह सुनने में अच्छा लग सकता है कि 7.5 लाख की जगह 5 लाख ही भरने पड़े हैं, लेकिन लंबे समय में इसके खराब नतीजे होंगे. दरअसल, इस तरह से कर्ज बंद करने पर लोन अकाउंट का स्टेटस ‘क्लोज्ड’ की जगह ‘सेटल्ड’ दिखाएगा. किसी लोन अकाउंट का स्टेटस ‘क्लोज्ड’ तब दिखाता है जब समय पर कर्ज का भुगतान करके लोन बंद होता है. वित्तीय संस्थानों से यह जानकारी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के पास जाएगी. सेटल अकाउंट सामान्य तरह से बंद होने वाला अकाउंट नहीं है. इसलिए इसे निगेटिव माना जाता है जो आपके क्रेडिट स्कोर पर बुरा असर डालेगा. इससे अगले कई सालों तक आपको लोन क्रेडिट कार्ड मिलने में काफी दिक्कतें आएंगी. बैंक लोन देने से मना कर सकते हैं या काफी ऊंची दरों पर लोन देंगे.
और क्या हैं विकल्प?
लोन का वन टाइम लोन सेटलमेंट सबसे आखिरी विकल्प होना चाहिए. इसके अलावा भी कुछ तरीके हैं जिनके सहारे आप कर्ज के जंजाल से बाहर आ सकते हैं. आपके पास कोई सेविंग या इन्वेस्टमेंट हो तो उसका इस्तेमाल पूरा कर्ज चुकाने के लिए करें. रिश्तेदारों या दोस्तों से इंटरेस्ट फ्री लोन लेकर बैंक का बकाया चुकाने की कोशिश करें. कर्जदाता यानी बैंक से लोन रिस्ट्रक्चर के लिए बात करें ताकि आप आसानी से पूरा पैसा वापस कर सकें. बैंक से वन-टाइम सेटलमेंट की जगह लोन चुकाने के लिए कुछ और मोहलत मांगें.
देखा आपने मोहित की लापरवाही कितनी भारी पड़ सकती है. पहली गलती है बिना फाइनेंस कंपनी से बात करे वन-टाइम सेटलमेंट के बारे में सोच लेना. बैंक या फाइनेंस कंपनियां हर मामले में वन-टाइम सेटलमेंट नहीं करती हैं. यही नहीं भविष्य में जरूरत के वक्त लोन मिलने में भी दिक्कत आएगी. मोहित को लोन सेटल करने के बजाए उसे क्लोज करने की कोशिश करनी चाहिए.