सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों (MFIs) से छोटी राशि के कर्ज लेने के मामले में तमिलनाडु की जगह अब बिहार ने ले ली है. इस साल मार्च तिमाही में बिहार ने कुल कर्ज में सालाना आधार पर 13.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है. क्रिफ हाई मार्क की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च तक बिहार में कुल 48,900 करोड़ रुपए की राशि का छोटा कर्ज लिया गया जो कुल आंकड़ों का 14.5 फीसदी है. वहीं जबकि तमिलनाडु में 46,300 करोड़ रुपए का छोटा कर्ज दिया गया जो कुल कर्ज का 13.7 फीसदी है.
रिपोर्ट के अनुसार मार्च अंत में एमएफआई का कुल सालाना आधार पर 17.9 की बढ़ोतरी के साथ 3.37 लाख करोड़ रुपए रहा. इस दौरान संपत्ति गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक 90 दिनों से ज्यादा समय से बकाया छोटी राशि के कर्ज का अनुपात मार्च 2023 तक घटकर 1.1 फीसदी हो गया जबकि दिसंबर 2022 में यह दो प्रतिशत था.
शीर्ष 10 राज्यों में अब कुल बकाया कर्ज का 85 फीसदी हिस्सा है. इसमें उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और केरल भी शामिल हैं.रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रति कर्जदाता के हिसाब से बिहार में कर्ज सबसे ज्यादा 27,200 रुपए है जबकि तमिलनाडु में यह 26,600 रुपए है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
बैंकिंग एक्सपर्ट सुरेश बंसल कहते हैं कि बिहार में कम आय वर्ग वाले लोग ज्यादा हैं जो पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में नौकरी या मज़दूरी करते थे. अब ये लोग जागरूक हुए हैं. ज्यादातर लोग स्वावलंबी बनना चाहते हैं जिससे बिहार में कर्ज लेने की दर बढ़ गई है. बंसल इसके अलावा कोविड को भी इसकी बड़ी वजह मानते हैं. उनका कहना है कि महामारी के दौर में बहुत से लोग अपने घरों में वापस आ गए. इनमें से ज्यादातर लोग वापस नहीं लौटे और वहीं रहकर कुछ रोजगार कर रहे हैं इसलिए भी कर्ज लेने में बिहार आगे आ गया है.