केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने कर्ज धोखाधड़ी मामले में टेलीकॉम कंपनी जीटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और बैंकों के कुछ अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. आरोप है कि मुंबई स्थिति टेलीकॉम कंपनी ने बैंकों के एक गठजोड़ से ली गई 4,063 करोड़ की क्रेडिट सुविधाओं का दुरुपयोग किया है. सीबीआई की ओर से यह जीटीएल के खिलाफ दूसरी एफआईआर है. इससे पहले जनवरी में जांच एजेंसी ने कंपनी के निदेशकों पर बैंकों से 4,500 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था.
एफआईआर के मुताबिक कंपनी का 19 बैंकों के समूह पर 11,263 करोड़ रुपए बकाया है. 2011 में जीटीएल ने ऋण सुविधाओं पर ब्याज और किश्तें चुकाने में असमर्थता व्यक्त की थी. बैंकों ने कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन का सहारा लिया जो कामयाब नहीं हुआ. ऋणदाता बैंकों ने 2016 में रणनीतिक ऋण पुनर्गठन लागू करने का फैसला लिया, जिसमें 11,263 करोड़ रुपए के कुल ऋण में से 7,200 करोड़ रुपए का कर्ज इक्विटी शेयरों में बदल दिया गया, जिसके बाद जीटीआईएल के लिए 4,063 करोड़ रुपए की बकाया राशि बची.
फॉरेंसिक ऑडिट से पता चला है कि जीटीआईएल की ओर से विक्रेताओं को दिए गए धन की एक बड़ी राशि यूरोपीय प्रोजेक्ट्स एंड एविएशन लिमिटेड या जीटीआईएल या चेन्नई नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की एक सहयोगी कंपनी में निवेश की गई थी. जबकि 2011-12 से 2013-14 की इसी अवधि में एडवांस देना था.
सीबीआई प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी के अलावा 13 बैंकों के अधिकारी भी रडार पर हैं. उन पर कंपनी की संपत्ति को गिरवी रखकर कर्ज वसूली न करने का आरोप है. एफआईआर में कहा गया है कि कंपनी के 3,224 करोड़ रुपए के बकाया को बैंकों ने महज 1,867 करोड़ रुपए में रिस्ट्रक्चरिंग कंपनी को सौंप दिया. ऐसा करने वालों में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, आईसीआईसीआई बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, आंध्रा बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, एक्सिस बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और देना बैंक शामिल हैं.
सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक जीटीएल की ऑडिटेड बैलेंस शीट में भी गड़बड़ी देखने को मिली. बैलेंस शीट में 35 साल में 27,729 टेलीकॉम टावर दिखाए गए हैं. अगर एटीसी टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर और वोडाफोन इंडिया लिमिटेड के बीच इसी तरह के सौदे की तुलना की जाए, तो इन टावरों का मूल्य लगभग 10,330 करोड़ है.