पैतृक संपत्ति में महिलाओं का हक - सफर अभी बाकी है

Inheritance Rights: लोगों को ये समझना होगा कि बेटियों को भी फाइनेंशियल स्थिरता के लिए संपत्ति की उतनी ही जरूरत है जितनी बेटों को.

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अदालती मामलों की सुनवाई, दाखिल होने वाले जवाबी हलफनामे, अवमानना के मामलों और ऐसे मामलों पर सम्बंधित विभागों को तुरंत अलर्ट भेजा जाएगा Picture: Pixabay

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Inheritance Rights: विरासत की संपत्ती में महिलाओं को हिस्सेदारी और इसपर पूरी तरह सफाई के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा है. पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पैतृक संपत्ती में बेटियों की हिस्सेदारी को लेकर बड़ी सफाई आई है. हिंदू सक्सेशन एक्ट के तहत अब 9 सितंबर 2005 से पहले जन्म ली हुई बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक मिलेगा, पिता जीवित हों या नहीं. लेकिन क्या अब भी कोई कमियां हैं जिनपर कदम उठाने की जरूरत है?

सुप्रीम कोर्ट की वकील रेखा अग्रवाल मानती हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सफाई आने से एक बड़ा गैप भरा गया है. विरासत में प्रॉपर्टी को लेकर महिलाओं के लिए काफी अस्पष्टता थी. सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कह दिया है कि जन्म तिथि और पिता की मृत्यू हुई या नहीं ये मायने नहीं रखता. पहले सिर्फ बेटों को विरासत में मिली संपत्ति (Inheritance Rights) पर अधिकार था, अब महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है. विधवा होने या शादी ना होने की स्थिति में भी ये नियम लागू होगा और उनकी भी हिस्सेदारी होगी. हालांकि वे मानती हैं कि इसमें अब मानसिकता में बदलाव की जरूरत है. कई बार ऐसा देखा गया है कि परिवार की महिलाओं की जानकारी के बिना ही प्रॉपर्टी बतौर गिफ्ट बेटों को दे दी जाती है, लेकिन महिलाओं को अधिकार सिर्फ पैतृक संपत्ति पर है तो इससे उनके अधिकार पर अंकुश लग जाता है.

महिलाओं को प्रॉपर्टी या घर में मालीकाना हक दिलाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं. इनमें से एक है प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत EWS और LIG फ्लैट के लिए किसी महिला का को-ओनर होना जरूरी है. वैसे ही होम लोन में महिलाओं के लिए ब्याज दर में रियायत रहती है तो वहीं कई राज्यों में स्टैंप ड्यूटी महिलाओं के लिए कम है. लेकिन उत्तराखंड ने हाल ही में ऑर्डिनेंस के जरिए महिलाओं के संपत्ति पर उनका हक दिलाने की कोशिश की है. उत्तराखंड सरकार के ऑर्डिनेंस के मुताबिक अब राज्य की महिलाएं को अपने पति की पैतृक प्रॉपर्टी में भी मालिकाना हक मिलेगा. दरअसल राज्य ने बढ़ते पलायन के मद्देनजर राज्य में रह रही उन महिलाओं के लिए ये फैसला लिया है जो कृषि पर ही निर्भर रह जाती हैं.

रेखा अग्रवाल मानती हैं कि अन्य राज्यों को भी इस तरह के कदम उठाने चाहिए. उनके मुताबिक खास तौर पर उत्तर प्रदेश में ऐसे कई सुधार की जरूरत है.

कहां है गैप?

Inheritance Rights: सभी राज्यों में संपत्ति को लेकर नियम अलग-अलग है. भारतीय संविधान के तहत राज्यों के पास जमीन और उनसे जुड़े अधिकारों को लेकर नियम तय करने का अधिकार है. हालांकि कई वकीलों ने इनमें विरासत को लेकर सामान्यता की मांग उठाई है. रेखा अग्रवाल ने मनी9 से ऐसे ही एक मामले को साझा किया, मामला बुलंदशहर का है जिसमें पिरवार की 3 बेटियों को इसलिए पैतृक संपत्ति नहीं दी जा रही थी क्योंकि वो जमीन कृषि के लिए है और उत्तर प्रदेश के जमीन नियमों के तहत कृषि की जमीन पर उन्हें अधिकार नहीं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की सफाई के बाद इस मामले में उम्मीद जरूर है. रेखा ने बताया है कि वे इसी फैसले के आधार पर अपील करने की तैयारी में हैं.

लोगों में कितनी जागरुकता?
ऐसे कई मामले देखे गए हैं जहां महिलाओं में जागरुकता की कमी की वजह से उन्हें उनका हक नहीं मिला. मसलन कई बार परिजन पिता की मृत्यू पर बेटियों से प्रॉपर्टी पर उनका हक छोड़ने के लिए जोर देते हैं – उन्हें हक त्यागने के लिए कागज पर साइन करवा लिए जाते हैं. रेखा अग्रवाल का सुझाव है कि महिलाओं को अपना हक छोड़ना नहीं चाहिए. हालांकि अगर उन्हें प्रॉपर्टी की जरूरत नहीं तो वे हक (Inheritance Rights) जरूर लें लेकिन बाद में उसे भाइयों या परिजनों को गिफ्ट के तौर पर दे सकती हैं.

महिलाओं को प्रॉपर्टी में हिस्सेदार ना मानना समाज में उन्हें निचले तबके में रखे जाने का प्रमाण है. समाज में उन्हें बराबरी के लिए लोगों को ये समझना होगा कि बेटियों को भी फाइनेंशियल स्थिरता के लिए संपत्ति की उतनी ही जरूरत है जितनी बेटों को. संपत्ति के अधिकार में उनकी हिस्सेदारी ना मानना उन्हें अपनी फाइनेंशियल स्थिरता के लिए किसी और पर निर्भर होने के लिए बाध्य करता है.

Published - March 8, 2021, 10:43 IST