महामारी के दौरान एक्सचेंज ट्रेडेड फंड या ETF की काफी डिमांड देखने को मिली. हालांकि, ETF निवेशकों के लिए नए नहीं हैं, लेकिन लोएस्ट एक्सपेंस रेशियो और लिक्विडिटी के साथ कम्बाइंड यूनिक सेलिंग पॉइंट इसका खास फीचर है जो इसे पॉपुलर बनाता है, खासकर रिस्क से बचने वाले निवेशकों के लिए.
आज, ETF इन्वेस्टर्स को शेयर मार्केट में एक्सपोजर देने के लिए कम लागत वाला तरीका प्रदान करते हैं. वो लिक्विडिटी और रीयल-टाइम सेटलमेंट प्रोवाइड करते हैं, क्योंकि वो स्टॉक की तरह एक्सचेंज पर लिस्टेड है और उसी की तरह ट्रेड करते हैं. ETF एक कम रिस्क वाला इन्वेस्टमेंट है, क्योंकि वो स्टॉक इंडेक्स को मिरर करते हैं, और किसी कंपनी के स्टॉक में निवेश की तुलना में डायवर्सिटी प्रोवाइड करते हैं.
एक निवेशक के रूप में, आपको ETF के माध्यम से कमोडिटीज और इंटरनेशनल इक्विटी जैसी कई दूसरी इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी तक एक्सेस के साथ ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी भी मिलती है. दूसरी ओर, ये हर इन्वेस्टर के लिए आइडियल नहीं हैं क्योंकि इसके साथ कुछ रिस्क भी जुड़े हैं.
इसके अलावा सही ETF चुनने के लिए सामान्य निवेशकों की तुलना में ज्यादा फाइनेंशियल मार्केट की समझ जरूरी है. इसलिए, आपके ETF एसेट को मैनेज करने के लिए फाइनेंशियल मार्केट की अच्छी समझ जरूरी है, क्योंकि इनमें म्यूचुअल फंड के साथ-साथ स्टॉक के फीचर भी होते हैं.
ETF से जुड़े रिस्क फैक्टर्स पर एक नजर
पैसिव इन्वेस्टमेंट का एक हिस्सा होने के नाते, ETF में लोएस्ट एक्सपेंस रेशियो होता है और इसे एक्टिव मैनेज्ड फंड की तुलना में कम रिस्की माना जाता है. हालांकि, कुछ फैक्टर एक पैसिव फंड की परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर भारत जैसे बढ़ते मार्केट में.
कॉन्सेंट्रेशन का रिस्क
NSE निफ्टी और S&P BSE सेंसेक्स दोनों ही ब्रॉड मार्केट-कैप वेटेड इंडेक्स हैं. दूसरे शब्दों में, लार्ज कैपिटलाइजेशन वाले स्टॉक का इन इंडेक्स में प्रोपोरशनली हाइयर वेट होता है. इसका परिणाम एक ऐसे फंड में होता है जो कुछ शेयरों के हायर कॉन्सेंट्रेशन वाले इंडेक्सों को रेप्लिकेट करता है. ऐसे मार्केट में कॉन्सेंट्रेशन रिस्क बढ़ जाता है, जहां केवल कुछ शेयर ही रैली ड्राइव करते हैं.
ट्रैकिंग एरर
ट्रैकिंग एरर एक इंडेक्स के रिटर्न और इसे ट्रैक करने वाले फंड के बीच का अंतर है. कहते हैं, एक बड़ी ट्रैकिंग एरर इंडिकेट करती है कि फंड हायर कैश या एक्सपेंस रेशियो या एक डिफरेंट इक्विटी एलोकेशन के कारण पूरी तरह से इंडेक्स को रेप्लिकेट नहीं कर रहा है. इसकी वजह से ETF के अपने पर्पज से डायवर्ट होने का रिस्क होता है.
सरल शब्दों में कहें, तो प्रोडक्ट सेल करते समय, ETF प्रोवाइडर अक्सर हिस्टॉरिकल इंडेक्स रिटर्न रेफर करते हैं. वास्तव में, निवेशकों को फंड के टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER), ट्रेड एग्जिक्यूशन एक्सपेंस, मैनेजमेंट फीस, फॉरेन करेंसी रेट वोलैटिलिटी और रीबैलेंसिंग कॉस्ट जैसे कई फैक्टर के कारण इंडेक्स के समान रिटर्न प्राप्त करने का अनुमान नहीं लगाना चाहिए.
लिक्विडिटी
ETF के साथ लिक्विडिटी एक चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि उन्हें केवल एक्सचेंजों पर खरीदा और बेचा जा सकता है. पर्याप्त मांग होने पर ही आप सेल कर पाएंगे, और हमेशा ऐसा नहीं होता है, क्योंकि लिक्विडिटी ETF के लिए एक चिंता का विषय है. इसके अलावा ETF, ETF के लिए एक्सचेंज की डिमांड के आधार पर अपने नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर डिस्काउंट या प्रीमियम पर ट्रेड कर सकते हैं.
इन्वेस्टर्स को क्या करना चाहिए?
कॉन्सेंट्रेशन रिस्क से बचने के लिए एक स्ट्रेटजी पेसिव फंडों में इन्वेस्ट करना है, जो इक्वल-वेट इंडेक्सों को ट्रैक करते हैं, जिसमें प्रत्येक स्टॉक का वेट समान होता है. आपकी रिस्क उठाने की क्षमता और एक्सपेक्टेड रिटर्न यह निर्धारित करते हैं कि आप अपने पोर्टफोलियो को एक्टिव और पैसिव फंडों के बीच कैसे एलोकेट करते हैं. यदि आप खुद ये निर्णय नहीं ले पा रहे तो फाइनेंशियल प्लानर की मदद ले सकते हैं.