संपत्ति खड़ी करना, लंबी अवधि की प्रक्रिया होती है. जितनी लंबे समय तक आप लगातार निवेश करते रहेंगे, आप उतना भी बड़ा फंड तैयार करते जाएंगे. साथ ही, छोटी अवधि में आने वाले उतार-चढ़ाव का भी आप अधिक असर नहीं पड़ेगा. आंकड़े बताते हैं कि, भारी गिरावट की स्थिति में पोर्टफोलियो 60 से 70 फीसदी तक गिर सकता है (Source: NSE). इसलिए, निवेशक को ऐसी रणनीति बनानी चाहिए कि जिससे गिरावट का सामना किया जा सके.
लंबी अवधि का निवेश
इसके लिए एसेट के सही आबंटन पर ध्यान देना चाहिए. इसमें निवेशक विभिन्न असेट क्लास में निवेश करता है. ताकि, किसी एक असेट में आई गिरावट की भरपाई दूसरे असेट से की जा सके. निवेश के इस तरीके में निवेशक को अवसरवादी होना चाहिए. साथ ही हालात को देखते हुए एक असेट क्लास से तुरंत दूसरे असेट क्लास में स्विच कर लेना चाहिए.
एसेट क्लास
आजकल एसेट आबंटन के कई संयोजन मौजूद हैं. ये निवेशक के जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करते हैं. इनमें शेयर, डेट, गोल्ड, कमोडिटी, करेंसी, रियल एस्टेट Real Estate Investment Trusts (REITs), Infrastructure investment trusts (InvITs) वगैरह शामिल हैं. शेयरों पर अच्छे रिटर्न के लिए निवेश किया जाता है, जबकि डेट पर मूलधन को सुरक्षित रखने के लिए और गोल्ड पर रिटर्न व सुरक्षा के लिए पैसा लगाया जाता है. ऐसे ही, शेयर, डेट और आर्बिटेड फंड का भी संयोजन किया जा सकता है. आजकल म्यूचुअल फंड भी विभिन्न तरह के स्कीम पेश करते हैं. लंबी अवधि में मल्टी-असेट अलोकेशन फंड काफी लाभदायक साबित होता है.
हालांकि, असेट आबंटन कहने में तो आसान लगता है, लेकिन करने में कठिन होता है. इसके लिए विभिन्न असेट क्लास की अच्छी जानकारी होनी चाहिए. किस असेट को चुनना है, कितना निवेश करना है, कब प्रवेश करना है और कब निकल जाना है, इन सबकी सही समझ होनी आवश्यक है. सीमित जानकारी वाले निवेशक के लिए स्वयं ही असेट आबंटन रणनीति अपनाना जोखिम भरा साबित हो सकता है. इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए, या फिर विभिन्न म्यूचुअल फंड द्वारा पेश की स्कीमों पर पैसा लगाना चाहिए.
जब वैल्यूएशन बहुत ज्यादा हो तो म्यूचुअल फंड द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले डायनेमिक असेट अलोकेशन फंड को चुनना बेहतर विकल्प हो सकता है.
कुछ म्यूचुअल फंड बेहतर असेट अलोकेशन के लिए क्वांट मॉडल का इस्तेमाल करते हैं. इस मॉडल में विभिन्न ट्रेंड का विश्लेषण किया जाता है और बेहतर असेट अलोकेशन का आंकलन किया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य उतार-चढ़ाव के असर को कम करना होता है. मसलन, जब वैल्यूएशन ज्यादा होते हैं तो इस मॉडल के जरिए इक्विटी पर कम निवेश किया जाता है और डेट पर अधिक निवेश किया जाता है. इससे बाजार की गिरावट में सुरक्षा मिलती है. जब बाजार का वैल्यूएशन कम होता है तो शेयरों पर निवेश किया जाता है.