म्यूचुअल फंड में दिखने लगे ये संकेत तो पैसे निकालने में है समझदारी, नहीं होगा घाटा

म्यूचुअल फंड में आपने निवेश किया है तो उससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें जान लेनी चाहिए. ये बातें संकते देती हैं कि आपका म्यूचुअल फंड किस दिशा में जा रहा है.

keep these things in mind before investing in passive funds

क्या आपने भी म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) की स्कीमों में पैसा लगा रखा है? अगर हां तो आपने पिछली बार कब अपने फंड के प्रदर्शन को चेक किया था? दरअसल म्यूचुअल फंड स्कीम खरीदते समय लोग इसके तमाम पहलुओं पर ध्यान देते हैं. लेकिन बहुत कम लोग यह देखते हैं कि इससे कब बाहर निकला जाए. म्यूचुअल फंड में आपने निवेश किया है तो उससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें जान लेनी चाहिए. ये बातें असल में निवेशकों को संकते देती हैं कि आपका म्यूचुअल फंड किस दिशा में जा रहा है.

फंड का लगातार खराब प्रदर्शन

होल्डिंग पर हमेशा नजर रखनी चाहिए ताकि अंडरपरफॉर्मर को पहचाना जा सके. अगर बेंचमार्क रिटर्न की तुलना में कोई स्कीम लगातार अंडरपरफॉर्म कर रही है तो उसकी वजह देखनी चाहिए. अगर स्कीम कमजोर लगती है तो उससे तत्काल निकल कर बेहतर परफॉर्मेंस वाली स्कीम में पैसे लगाएं. ध्यान देने वाली बात यह है कि एक या दो तिमाही तक स्कीम की अंडरपरफार्मेंस के आधार पर फैसला ना करें. लांग टर्म के आधार पर निर्णय लें.

फंड मैनेजर्स के हैरान करने वाले फैसले

म्युचुअल फंड में जहां यह आश्वासन होता है कि पैसे की देखभाल के लिए फंड मैनेजर हैं है. वही कई बार फंड मैनेजर के कुछ फैसले के कारण निवेशकों के रिटर्न पर खतरा मंडराता नजर आ सकता है. एसे में फंड में पैसा बनाए रखना समझदारी नहीं.

एसेट साइज

अच्छे रिटर्न के लिए लोग बडे फंड में निवेश करते हैं. लेकिन कइ बार ज्यादा बडा फंड छोटे फंड की तुलना में अच्छी तरह से ट्रेडिंग नहीं कर पाता. इसका कारण होता है ओवरलोड. फंड में ऐसा कुछ संकेत दिखे तो सावधान रहें.

फंड मैनेजर में बदलाव

कुछ फंड सिर्फ फंड मैनेजर की गुडविल और उसके नाम से बिकते हैं. ऐसे में सवाल है कि जब आपके फंड का मैनेजर नौकरी छोड़ दे तो आपको क्या करना चाहिए? इस स्थिति में यह देखना चाहिए कि क्या फंड मैनेजर ही स्टॉक को लेने या छोड़ने के लिए उत्तरदायी था, क्या आपको फंड में वही ये सब काम देखता था? अगर इसका जवाब हां में आता है तो फंड के भविष्य के लिए यह सही संकेत नहीं हो सकता.

स्कीम में बदलाव

तीन साल पहले सेबी ने म्यूचुअल फंड कैटेगरी का रिक्लासिफिकेशन किया था. इसके बाद म्यूचुअल फंडों ने भी स्कीमों में बदलाव किए हैं. उदाहरण के लिए जो डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड था वह पूरी तरह लार्ज कैप इक्विटी फंड हो चुका है. कुछ स्मॉल और मिड कैप फंड पूरी तरह स्मॉल कैप फंड बन गए हैं. अगर यह आपकी जोखिम लेने की क्षमता से मेल नहीं खाता तो उस स्कीम से निकल जाना चाहिए.

मर्जर और एक्विजिशिन

ऐसा भी होता है कि जिस फंड में आपने निवेश किया है, उसका विलय किसी और फंड में हो जाए या उस फंड को कोई और खरीद ले. ऐसे में आपको ध्यान रखना होगा कि इन बदलावों से क्या फंड के परफॉरमेंस पर कोई असर दिख रहा है. क्या उसका परफॉरमेंस पहले से घट गया है? अगर ऐसे संकेत हैं तो आपको फंड को लेकर सावधान हो जाना चाहिए.

Published - July 26, 2021, 05:48 IST